रामगंजमंडी (कोटा). 8 मार्च एक ऐसा दिन है जिसे महिला दिवस के नाम से जाना जाता है. महिला सशक्तीकरण के लिए कई प्रकार के दावे और वादे किए जाते हैं. लेकिन वह पूरे होते नहीं दिखते.
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष शिक्षा विभाग की ओर से स्कूलों में बच्चों के लिए पोषाहार योजना व दुग्ध योजना चलाई जा रही है. जिसके तहत काम करने वाली महिलाओं को सरकार द्वारा महज 30 रुपए प्रतिदिन मानदेय मिलता है. कई बार हम देखते है कि अगर पोषाहार को बनाने में कोई चूक होती है तो उच्च अधिकारियों की गाज सीधे उसे बनाने वाली महिलाओं पर गिरती है. ऐसे में सरकार को इन पर ध्यान देना चाहिए.
भविष्य को खाना खिलाने वाली खुद दो वक्त के खाने की मोहताज मानवाधिकार, न्यूनतम मजदूरी, जीवन स्तर, आर्थिक आत्मनिर्भरता जैसे बड़े-बड़े आदर्शों- वाक्यों से अपने आपको गरीब हितैषी और काम के बदले सम्मानित पारिश्रमिक देने वाली सरकार को बार-बार सदन में प्रश्न उठाकर अवगत कराने के बावजूद भी आजतक कुक कम हेल्परों को वर्तमान में सबसे कम या यूं कहें कि ना के बराबर मानदेय दिया जा रहा है .
सबसे पहले आना और आखिर में जाना
ये कुक कम हेल्पर समस्त स्कूलों में हेडमास्टर से पहले आती हैं. इनके जिम्मे काम होता है जिसमें साफ-सफाई करना, पानी भरना, दूध गर्म करना, सब्जी काटना और भोजन बनाना इत्यादि. आखिर में विद्यालय के ताले लगाने का काम भी इन्हें के जिम्मे होता है.
स्कूल में खाना बनाती कुक कम हेल्पर मानदेय के नाम पर मात्र 1320 रुपए
इस तरह लगभग 6-8 घंटे कठिन परिश्रम करने वाली इनको मानदेय के नाम पर मात्र पहले 1200 रुपए दिए जाते थे. जिसमें वृद्धि करते हुए सरकार ने गत वर्षों में 1320 रुपए कर दिए. यही नहीं इसके बदले में सरकार ने इनकी सर्दी, गर्मी, दीपावली और किसी भी कारण से 4-5 दिन के अवकाशों का मानदेय भी काटने के निर्देशित किया हुआ है.
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हमारी मजबूरी है - कुक कम हेल्पर
आज प्रदेश में लगभग सरकारी स्कूलों में दो-तीन लाख कुक कम हेल्परों को घर में दो समय का खाना पीना मुश्किल से ही हो रहा है. पोषाहार बनाने वाली मनभर ने बताया कि स्कूल से हमें 1320 रुपए महीना मिलता है. जिसमें भी अगर छुट्टी हो जाए तो उस दिन का पैसा काट लिया जाता है. वहीं, राधाबाई ने बताया कि सरकार 1320 रुपए ही मानदेय देती है. इन पैसों से घर नहीं चलता हमारी मजबूरी है जो हम यहां काम करती हैं.
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर न जाने कितने कार्यक्रम होते हैं. महिला सशक्तिकरण की बड़ी-बड़ी बातें भी होती हैं, लेकिन वादों-इरादों की ज़मीनी हक़ीक़त आपके सामने है. राजस्थान के सरकारी स्कूलों में दो-तीन लाख कुक कम हेल्परों की पीड़ा ये है, कि वो बच्चों को पोषाहार तो खिला रहे हैं, लेकिन खुद दो वक्त की रोटी का भी बमुश्किल जुगाड़ कर पा रहे हैं.