कोटा. शहर के नए अस्पताल में राजस्थान में पहली बार वर्चुअल ऑटोप्सी की गई. मेडिकल कॉलेज अस्पताल के अधीक्षक डॉ. सुशील ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रताप कॉलोनी निवासी एक 29 वर्षीय युवक को मृत अवस्था में लाया गया था.
डेड बॉडी का कोविड सैंपल पॉजिटिव मिला. युवक ताथेड़ स्तिथ एक डिपो पर काम करता था, जहां से उसे सीधे हॉस्पिटल लाया गया. परिजनों के मन में शंका थी तो उन्होंने पुलिस को रिपोर्ट दी. कैथून पुलिस ने इस मामले में धारा 174 के तहत मर्ग दर्ज किया और हमें तहरीर दी.
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तय प्रक्रिया के तहत उक्त मरीज की वर्चुअल ऑटोप्सी के लिए फॉरेंसिक मेडिसिन में डॉक्टर विनोद गर्ग, डॉक्टर सचिन मीणा और रेडियोलॉजी डॉक्टर हर्षवर्धन का बोर्ड बनाया गया. बोर्ड अपनी रिपोर्ट पुलिस को देगा. प्रोसीजर के दौरान मृतक के पिता पीपीई किट में मौजूद रहे.
वर्चुअल ऑटोप्सी कैसे होती है...
इसमें सामान्य पोस्टमार्टम की तरह मरीज के शव को चीरा नहीं लगाया जाता, क्योंकि उसके फ्लूड से पोस्टमार्टम करने वाले में संक्रमण का पूरा खतरा होता है. इसी संक्रमण से बचने के लिए वर्चुअल ऑटोप्सी का विकल्प सरकार की ओर से दिया गया है. इसमें डेड बॉडी को बाहरी तौर पर ठीक से निरीक्षण करने के बाद बैग से निकाल कर उसे डिसइंफेक्ट करके फुल बॉडी स्कैन किया जाता है. जिससे शरीर में किसी भी तरह की इंटरनल इंजरी का पता लग जाए.
इसके बाद फिर से बॉडी को डिसइंफेक्ट कर बैग में पैक कर दिया जाता है. नए अस्पताल में रेडियोलॉजी विभाग में यह प्रोसेसर हुआ. इस दौरान मृतक के पिता भी पीपीई किट में मौजूद रहे. बोर्ड अपनी राय एक-दो दिन बाद देगा, लेकिन प्रोसेसिंग तौर पर यह बात सामने आई है कि युवक के दोनों फेफड़ो में गंभीर निमोनिया सिटी स्कैन में दिखाई दिया.