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देश में 'उर्वरक संकट' : चीन से रिश्ते बिगड़ने का असर, DAP उर्वरक की 80 फीसदी तक शॉर्टेज के आसार..बड़े खाद संकट की आहट

रबी के सीजन के लिए इस बार उर्वरक की कमी (fertilizer shortage) से किसान परेशान हो सकते हैं. सरकार भी शायद ही माकूल व्यवस्था कर पाए, हालात विकट हो सकते हैं. क्योंकि डाई अमोनियम फास्फेट (diammonium phosphate fertilizer) की कमी पूरे बाजार में देखी जा रही है. भारत में करीब 20 फीसदी ही DAP निर्माण होता है, बाकी 80 फीसदी आयात होता है. डीएपी की लागत बढ़ने से कंपनियों ने आयात बंद कर दिया है. दूसरी तरफ चीन और भारत के रिश्ते (India China business relations) बिगड़ने से भी ऐसे हालात बन रहे हैं.

देश में हो सकती है डीएपी खाद की कमी
देश में हो सकती है डीएपी खाद की कमी

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Published : Oct 4, 2021, 5:09 PM IST

Updated : Oct 4, 2021, 7:59 PM IST

कोटा. भारत के खाद मार्केट में डाई अमोनियम फास्फेट (diammonium phosphate) यानी डीएपी भारी तादाद में चीन से आयात होता है. भारत में इस खाद का करीब 20 फीसदी हिस्सा ही निर्मित होता है. बाकी के 80 फीसदी के लिए भारत दूसरे देशों पर निर्भर है. लागत अधिक पड़ने से भारतीय कंपनियों ने डीएपी के आयात (DAP import) को सीमित कर दिया है, नतीजन बाजार में डीएपी की भारी कमी हो गई है.

इन हालात के लिए भारत-चीन के बिगड़े हुए रिश्ते भी जिम्मेदार हैं. चीन से आने वाले डीएपी पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी गई है. ऐसे में आयात बुरी तरह प्रभावित हुआ है. भारत की निर्भरता अब यूरोपियन देशों पर ज्यादा हो गई है. जहां से आने वाली डीएपी पर लागत ज्यादा पड़ रही है. जाहिर है कि कंपनियां नुकसान झेल कर डीएपी मंगाना नहीं चाह रही हैं. इसका सीधा असर किसानों पर पड़ रहा है.

चीन से रिश्तों का असर खाद पर पड़ेगा..

किसान खाद के लिए दुकानों पर चक्कर काट रहे हैं. बुवाई के समय ही डीएपी डालना होता है. महंगा होने के कारण कंपनियां इसे खरीद नहीं पा रही हैं. भारत में 40 फीसदी तक डीएपी चीन से आता रहा है. लेकिन चीन से सामरिक खटास बढ़ने का असर व्यापारिक रिश्तों पर भी पड़ा है. दोनों देशों के बीच व्यापार करीब डेढ़ साल से लगभग बंद जैसा ही है. चीन से इंपोर्ट करने पर ड्यूटी बढ़ा दी गई है.

खाद की 80 फीसदी तक रह सकती है शॉर्टेज

अब यूरोपियन देशों से भारत कच्चा माल मंगा रहा है. भारत में ही कुछ फैक्ट्रियों में डीएपी का निर्माण हो रहा है. लेकिन कच्चे माल की कीमतें काफी तेज हैं. भारत सरकार डीएपी के आयात पर सब्सिडी भी नहीं बढ़ा पा रही है. लिहाजा नुकसान उठाती कंपनियों ने डीएपी के आयात को 75 फीसदी तक कम कर दिया है.

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सरकारी लक्ष्य 87 हजार, पिछले साल आया डेढ़ लाख मेट्रिक टन

हाड़ौती संभाग में 11 लाख 85 हजार हेक्टेयर में फसल बुवाई होनी है. इसके अनुसार कृषि विभाग ने 2 लाख 85 हजार मेट्रिक टन यूरिया, 87 हजार मीट्रिक टन डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) और 78 हजार मेट्रिक टन सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) की मांग तय की है, लेकिन फसल के रकबे के अनुसार देखा जाए तो यह मांग काफी ज्यादा हो सकती है.

किसानों को सिंगल सुपल फास्फेट खरीदने की सलाह

पिछले साल हाड़ौती में करीब डेढ़ लाख मेट्रिक टन डीएपी की मांग थी. इतनी मात्रा में डीएपी यहां पर उर्वरक कंपनियों के जरिए पहुंची थी. ऐसे में इस साल भी करीब इतनी ही मांग रहने की संभावना है. वर्तमान में यूरिया 57 हजार मेट्रिक टन, डीएपी 13400 मेट्रिक टन, एसएसपी 42000 मेट्रिक टन उपलब्ध है, जाहिर है कि डीएपी की काफी कमी रह सकती है.

किसानों का चक्कर काटना मजबूरी

खाद विक्रेताओं का कहना है कि कंपनी डीएपी उपलब्ध नहीं करा पा रही है. इसी के चलते शॉर्टेज बनी हुई है. हर किसान को बुआई के लिए डीएपी चाहिए. यूरिया और एसएसपी काफी आ रहा है, लेकिन किसान नहीं ले रहे हैं. कंपनी के प्रतिनिधि कहते हैं कि डीएपी से भरी मालगाड़ी नहीं आ पा रही है. पहले 8 से 10 दिन में मालगाड़ी आ जाती थी, लेकिन काफी समय से नहीं आई है. अगर दो-चार दिन बारिश रुक गई, और डीएपी नहीं मिला तो 5 से 7 दिन में मारामारी शुरू हो जाएगी. कंपनी वाले यह भी कह रहे हैं कि कॉस्टिंग ज्यादा है.

इधर, डीएपी के लिए चक्कर लगा रहे किसानों का कहना है कि है कि वे रोज ग्रामीण इलाकों से कोटा शहर आते हैं. ताकि उन्हें डीएपी उपलब्ध हो जाए, लेकिन डीएपी उन्हें नहीं मिल पा रहा है. खाद दुकानदार भी आश्वासन देते हैं, लेकिन उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं. कुछ किसानों का यह भी कहना है कि जितनी उनको मांग है, उतना उर्वरक नहीं मिल पा रहा है.

किसानों को मिलती है सब्सिडी, POS मशीन से सप्लाई

किसानों को केंद्र सरकार की तरफ से यूरिया, डीएपी और एसएसपी की खरीद पर सब्सिडी दी जाती है, दुकानदार को यह कंपनी के जरिए मिलती है. इसमें आधे दाम पर ही यह उर्वरक सरकार उपलब्ध करा रही है. सरकार ने यूरिया के दाम 267, डीएपी के 1200 और एसएसपी के 275 रुपए तय किये हैं. इतनी ही राशि केंद्र सरकार भी सब्सिडी के तौर पर कंपनियों को देती है. POS मशीन पर किसान का अंगूठा लगने के बाद ही यह उर्वरक उपलब्ध कराए जाते हैं.

चीन से 40 फीसदी तक होता है डीएपी का आयात

2018 से भी ज्यादा हो सकते हैं विकट हालात

वर्ष 2018 में राजस्थान में विधानसभा के चुनाव थे. इसी समय अक्टूबर-नवंबर में किसान यूरिया के लिए लाइनों में लगे हुए थे. खाद दुकानों के बाहर किसानों की लंबी कतारें नजर आई थीं. पर्याप्त मात्रा में यूरिया उपलब्ध नहीं हो पा रहा था. हालात इतने विकट थे कि यूरिया का स्टॉक रखने पर पाबंदी लगा दी गई थी. कालाबाजारी रोकने के लिए कृषि विभाग लगातार मॉनिटरिंग कर रहा था, राशनिंग की तरह किसानों को 2 से 5 कट्टे जमाबंदी के अनुसार उपलब्ध कराए गए थे. ऐसे ही हालात राजस्थान से जुड़े पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में भी थे. वहां भी यूरिया उपलब्ध नहीं हो पा रहा था. ऐसे में इस बार भी डीएपी को लेकर वही हालात बन सकते हैं.

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DAP से सस्ते SSP का उपयोग करें किसान

कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामावतार शर्मा मानते हैं कि इस बार डाई अमोनियम फास्फेट की कमी रह सकती है. वे किसानों को सिंगल सुपर फास्फेट खरीदने की सलाह दे रहे हैं. इसके लिए संगोष्ठी भी आयोजित की जा रही है. ताकि किसान फसल की बुवाई एसएसपी से कर ले. एसएसपी पूरी तरह से भारत में ही तैयार होता है और उसकी कमी भी नहीं है. विभाग किसानों से आग्रह कर रहा है कि वे 3 कट्टे एसएसपी के डालकर बुवाई कर लें, जो कि डीएपी के एक कट्टे के बराबर हो जाता है. इसमें कैल्शियम और सल्फर की मात्रा भी ज्यादा होती है. रामावतार शर्मा की सलाह है कि लहसुन और सरसों में तो 100 फ़ीसदी ही एसएसपी का उपयोग करना चाहिए.

डीएपी की हो सकती है भारी किल्लत

प्रति हैक्टेयर उर्वरक की भूमि को आवश्यकता

फसल यूरिया डीएपी (किलो प्रति हेक्टेयर)
गेहूं 250 180
चना 50 90
सरसों 180 85
धनिया 45 65
लहसुन 275 230
Last Updated : Oct 4, 2021, 7:59 PM IST

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