कोटा: कोरोना महामारी (corona virus) ने पूरी दुनिया में दहशत फैलाई हुई है. भारत में संक्रमितों की संख्या 57 लाख को पार कर गई है. आज पूरा देश कोरोना महामारी से लड़ रहा है. अधिकतर अस्पतालों को कोविड वार्ड में तब्दील कर दिया गया है. देशभर के डॉक्टर कोविड मरीजों की देखभाल में लगे हुए हैं. ऐसे में कोरोना से परे दूसरी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को काफी दिकक्तें आ रही हैं. कोविड-19 संक्रमण के चलते अब दूसरी बीमारियों का इलाज प्रभावित हो रहा है. ऐसे कई मामले कोटा जिले में देखने को मिले हैं.
केंद्र सरकार ने 2025 तक देश से टीबी खत्म करने का संकल्प लिया है. लेकिन अब कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के चलते अन्य बीमारियों की तरह इस अभियान पर भी असर साफ नजर आने लगा है. बीते 5 महीने में कोटा की ही बात की जाए तो 35 फ़ीसदी कम केस सामने आए हैं. जबकि टीबी के मरीज कम्युनिटी में बीमारी को स्प्रेड कर रहे हैं. मरीजों के कम सामने आने के चलते जो कम्युनिटी में टीबी का फैलाव है. उन मरीजों की स्थिति गंभीर होती जा रही है. साथ ही ऐसे मरीजों में कोविड-19 का खतरा भी बढ़ जाता है. लेकिन कोरोना के डर की वजह से टीबी के मरीज अस्पतालों में इलाज करवाने नहीं पहुंच रहे हैं.
टीबी मरीजों के फेफड़े पहले से खराब, ऐसे में खतरा ज्यादा
कोटा मेडिकल कॉलेज में टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेंद्र ताखर का कहना है कि टीबी से ग्रसित मरीजों के फेफड़े पहले से ही कमजोर होते हैं. टीबी की वजह से भी उनके फेफड़ों में रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. मरीजों की इम्युनिटी पहले से काफी कम होती है.
आमतौर पर कोरोना वायरस इंफेक्शन स्वस्थ व्यक्ति में होता है, तो बिना किसी ज्यादा तकलीफ के वे ठीक हो जाते हैं, लेकिन टीबी के मरीजों के लिए यह बीमीर और भी ज्यादा घातक हो जाती है, क्योंकि जिनके फेफड़े पहले से खराब हो रखे हैं, उनमें कोरोना का इंफेक्शन जानलेवा साबित हो सकता है. डॉक्टरों का कहना है कि जो भी व्यक्ति टीबी से ग्रसित हैं, उन्हें अपना खास ख्याल रखना चाहिए.
विभाग कह रहा मरीज डरे हुए, लेकिन जांच भी पूरी नहीं हो रही
क्षय रोग अधिकारी डॉ. आरसी मीणा का कहना है कि मरीजों में पिछले साल से काफी अंतर आया है. यह सब कोविड-19 की वजह से ही हुआ है. अप्रैल और मई में संपूर्ण लॉकडाउन था. मरीज घरों से बाहर नहीं निकल रहे थे. ऐसे में लोग जांच कराने नहीं पहुंचे. अब अनलॉक हो चुका है. इसके बाद भी मरीज डरे हुए हैं. अभी भी मरीज अस्पताल नहीं आ रहे हैं.
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मीणा का कहना है कि मेडिकल स्टाफ और टेक्नीशियनों की ड्यूटी भी कोविड-19 के नमूने लेने और अन्य कार्यों में लगा दी गई है. ऐसे में अस्पतालों का आउटडोर भी कम हो रहा है. जिस से भी बलगम की जांच कम हुई है. लेकिन अब इसको बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं.