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स्पेशल: गरीबों की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए 'समर्पण', कोटा की दो बहनों ने उठाया मदद का बीड़ा

देश तरक्की की नई इबारतें लिख रहा है लेकिन शहरों से दूर स्थित ग्रामीण इलाकों में आज भी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का हाल कुछ ठीक नहीं है. ऐसे में कोटा की दो बहनें अपनी संस्था 'समर्पण' के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य का स्तर सुधारने का प्रयास कर रहीं हैं. अब तक राजस्थान, उत्तराखंड और महाराष्ट्र के 41 स्कूलों में 11000 स्कूली बच्चों को सहायता पहुंचाई जा चुकी है.

Two sisters of Kota raised help for education of poor
कोटा की दो बहनों ने उठाया गरीबों की शिक्षा के लिए मदद का बीड़ा

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Published : Aug 19, 2020, 2:26 PM IST

कोटा.जिले की दो बहनें शहर से दूर स्थित गांवों में शिक्षा की अलख जगा रहीं हैं. बच्चों को स्कूल ड्रेस, बैग, स्टेशनरी बांटने के साथ ग्रामीणों को स्वास्थ्य संबंधी किट भी बांट रहीं हैं. अपनी संस्था 'समर्पण' के माध्यम से वे विभिन्न शहरों के स्कूल व गांवों में मदद पहुंचा रहीं हैं. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने गृह जिले कोटा को ही चुना. इस पूरे अभियान में दोनों बहनें करीब चार साल से जुटी हुई हैं.

कोटा की दो बहनों ने उठाया मदद का बीड़ा

कोटा की डॉ. रूमा और डॉ. मेघा को अधिकांश लोग नहीं जानते, लेकिन वह शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति देश भर के लोगों को जागरूक करने का काम कर रही हैं. डॉ. मेघा सिविल सर्विसेज में हैं और उनकी बड़ी बहन डॉ. रूमा पेशे से डॉक्टर हैं. दोनों बहनें राजस्थान, उत्तराखंड और महाराष्ट्र के 41 स्कूलों में 11000 स्कूली बच्चों की मदद अपने एनजीओ समर्पण के जरिए कर चुकी हैं. इसके लिए उन्होंने सबसे पहले अपने गृह जिले कोटा को ही चुना था. इसमें मां मंजू भार्गव भी पूरा योगदान देती हैं.

शहर के तलवंडी इलाके निवासी दोंनो बहनों का जन्म कोटा में ही हुआ था. यहीं से स्कूलिंग भी की. इसके बाद डॉ. रूमा ने कर्नाटका से मणिपाल डेंटिस्ट्री की पढ़ाई की. साथ ही दिल्ली से पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा इन पब्लिक हेल्थ भी किया. इसके बाद वे सिंगापुर गईं और एमबीए किया और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ कई प्रोजेक्ट पर भी काम किया. बाद में कुआलालंपुर में इंटरनेशनल रेड क्रॉस में भी कुछ दिन सेवाएं दीं. वर्तमान में वह मुंबई में हैं और समर्पण का पूरा काम वहीं से संचालित कर रही हैं.

गरीब स्कूली बच्चोंं को बांटे बैग व स्टेशनरी

उनकी छोटी बहन डॉ. मेघा ने मुंबई से डेंटिस्ट्री की पढ़ाई की. सिविल सर्विसेज में उनका चयन हुआ और वह इंडियन रेवेन्यू सर्विस में हैं. वर्तमान में मुंबई में वह इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में डिप्टी कमिश्नर के पद पर तैनात हैं. उनके पिता रामानंद भार्गव इंस्ट्रूमेंट लिमिटेड से सेवानिवृत्त हुए हैं. वहीं मां मंजू निजी स्कूल में प्रिंसिपल रह चुकी हैं.

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स्कूल की दयनीय स्थिति देखी तो बनाया एनजीओ
डॉ. रुमा और डॉ. मेघा कुछ साल पहले कोटा आईं थी. यहां उन्होंने अपने पैरेंट्स के साथ लाडपुरा ब्लॉक के कुछ स्कूलों को देखा तो मदद करने का निश्चय किया. उसके बाद 2016 में समर्पण संस्था बनाई जिसके जरिए ग्रामीण और आदिवासी बच्चों को स्वास्थ्य और शिक्षा देने शुरू की थी. इस कार्य में उनकी मां रिटायर्ड शिक्षिका मंजू भार्गव भी सेवाएं दे रही हैं. डॉ. मेघा का कहना है कि उनकी पूरी पढ़ाई कोटा में हुई है. जिले के एजुकेशन सिटी के नाम से जाना जाता है, लेकिन शहर से 20 किलोमीटर दूर के स्कूलों के हालात काफी खराब थे. इसे दुरुस्त करने के लिए ही प्रयत्न किए जा रहे हैं.

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साफ पानी से लेकर सोलर लालटेन तक की व्यवस्था
डॉ. मेघा भार्गव बताती हैं कि शिक्षा को सुदृढ़ करने के लिए कई प्रयास कोटा के लाडपुरा एरिया में किए गए हैं. करीब 25 से ज्यादा स्कूलों में संस्था की ओर से सेवाएं दी गईं हैं. हजारों स्कूली बच्चों को स्कूल ड्रेस व स्वेटर दिए गए हैं. वहीं साफ पानी के लिए 25 स्कूलों में वाटर प्यूरीफायर भी स्थापित किए गए हैं. कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व क्षेत्र में आने वाले कोलीपुरा गांव में भी 65 परिवारों को सोलर लालटेन उपलब्ध करवाए गए हैं ताकि बच्चे घर पर भी पढ़ सकें. अब चिन्हित कर जीर्णशीर्ण अवस्था में मौजूद स्कूलों को सुदृढ़ करवाने, उनमें नए कमरे बनवाने का संकल्प लिया गया है. स्टूडेंट्स को 1 साल की कॉपी-किताबें और स्टेशनरी व स्कूल बैग देने का लक्ष्य है.

कोरोना काल में भी लोगों तक पहुंचाई मदद

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गर्मी में बच्चे स्कूल मिस नहीं करें इसलिए लगाएंगे सोलर पैनल
समर्पण संस्था से जुड़े लोग किसी भी सेवा कार्य को शुरू करने के पहले उसकी योजना बनाते हैं. उसके लिए डाटा जुटाया जाता है, उसके बाद ही काम शुरू किया जाता है. यह भी ध्यान रखा जाता है कि किन लोगों को पहले मदद की जरूरत है. डॉ. मेघा बताती हैं कि करीब 600 स्कूल राजस्थान में ऐसे हैं जहां बिजली नहीं है. इस कारण बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं. इसके लिए संस्था की ओर से राजस्थान के कोटा जिले में बतौर पायलट प्रोजेक्ट 3 स्कूलों में सोलर पैनल लगाकर इलेक्ट्रिसिटी दी जाएगी. इसका प्रस्ताव उन्होंने सरकार को भेजा है.

अस्पताल में जाकर संस्था के सदस्यों ने की मदद

सिविल सर्विसेज और डॉक्टर भी जुड़े, SHG से भी मदद की शुरुआत
'समर्पण' के तहत काफी संख्या में बिजनेसमैन, डॉक्टर, शिक्षक और सिविल सर्विसेज से जुड़े लोग भी शामिल हैं. 'समर्पण' की संस्थापक रूमा भार्गव की मां मंजू भार्गव के साथ बच्चों को पढ़ाने वाले कई शिक्षक व शिक्षिकाएं भी शामिल हैं. संस्था ने हाल ही में नॉर्थ ईस्ट के अरुणाचल प्रदेश में अपनी योजना शुरू की है. इसके तहत उन्होंने सेनेटरी पैड बनाने की मशीन ग्रामीणों को सौंपी है. ग्रामीणों द्वारा बनाए हुए सेनेटरी पैड खरीद कर वहां की स्थानीय महिलाओं को वितरित किए गए हैं. इस पर डॉ. रूमा भार्गव का कहना है कि लॉकडाउन में लोगों का रोजगार चला गया था, इस स्कीम के जरिए उन्हें काम भी मिल गया है.

कोरोना काल में भी लोगों तक पहुंचाई मदद
कोरोना संक्रमण के दौरान भी उनकी संस्था ने मुंबई, बेंगलुरु, दिल्ली, जोधपुर, उज्जैन, लातूर में खाने के पैकेट वितरण किए हैं. इसके अलावा झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को राशन किट, सैनिटाइजेशन के लिए साबुन, मास्क भी दिए. श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में भी मजदूरों की मदद संस्था की ओर से की गई. बच्चों के लिए दूध के पैकेट और पोषक आहार भी काफी मात्रा में लोगों तक पहुंचाए गए हैं. 'समर्पण' से जुड़े वॉलिंटियर्स अभी भी इस काम में लगे हुए हैं.

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