कोटा.हाड़ौती के किसानों ने इस बार 11,5000 हेक्टेयर में लहसुन बोया था. अच्छी उपज भी उनकी हुई. करीब सात लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ फिर भी चेहरे पर चिंता की लकीरें दिख रही हैं, आंखें रुआंसी हैं और भविष्य की चिंता सता रही है (Garlic farmers in Hadoti). उन्हें उपज का दाम नहीं मिला. आशंका है कि इससे लहसुन किसानों को करीब 2600 करोड़ रुपए बीते साल के मुकाबले कम मिलेंगे.
एशिया में सबसे ज्यादा लहसुन का विपणन कोटा की सेठ भामाशाह कृषि उपज मंडी में होता है. इस साल मंडी में औसत भाव बीते साल की तुलना में 65 फीसदी कम है. अगर सब कुछ ठीक रहता, बीते साल के भाव रहते तो इस बार उत्पादित फसल के 4,100 करोड़ रुपए किसानों को मिलते (Garlic Prices in Kota). त्योहारों के इस सीजन में घरों में रौनक होती और इस साल की दिवाली रोशन हो जाती.
उम्मीद के मुताबिक कुछ भी नहीं हुआ. ऐसा नहीं हुआ, किसानों को इस बार के भाव के अनुसार 1500 करोड रुपए से भी कम मिल रहे हैं. जबकि लहसुन उत्पादित करने में ही किसानों को 1750 करोड़ रुपए का खर्चा करना पड़ा है. ये इन किसानों को मिल रहे दाम से भी 250 करोड़ कम है. मंडी भाव के आकलन के अनुसार किसानों को उत्पादित फसल के 250 करोड़ रुपए कम मिलेंगे.
1 से 2 रुपए किलो भी बिका लहसुन:इस बार कोटा की सेठ भामाशाह कृषि उपज मंडी की बात की जाए तो लहसुन के औसत दाम 2,100 रुपए प्रति क्विंटल है. जबकि बीते साल ये भाव 5,800 रुपए प्रति क्विंटल रहे थे. 2021 के न्यूनतम भाव का औसत 3400 और अधिकतम 9300 रुपए प्रति क्विंटल था जबकि इस साल 2022 में न्यूनतम भाव का औसत 1300 रुपए और अधिकतम 5000 रुपए प्रति क्विंटल है.
इसी तरह से बीते साल का न्यूनतम भाव ही 3000 था, जबकि इस बार का न्यूनतम भाव 1100 मंडी के अनुसार है. हालात ये हैं किसानों का लहसुन 1 से 2 रुपए किलो भी बिक रहा है. साल 2021 की बात की जाए तो अधिकतम भाव 10,000 से भी ज्यादा था, जबकि इस साल 2022 में अधिकतम भाव 6,328 रुपए प्रति क्विंटल केवल अप्रैल माह में ही रहा था, ये सितंबर में आते-आते काफी गिर गया है.
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फसल उगाने की लागत से 1750 करोड़:किसानों ने बीते साल के दाम को देखते हुए इस बार 11,5000 हेक्टेयर में लहसुन की फसल को बोया था. यानी करीब 9000 हेक्टेयर ज्यादा बुवाई हुई थी. किसानों की फसल को थोड़ा नुकसान तो बारिश की वजह से हुआ था, लेकिन उपज बंपर हुई. लहसुन के उत्पादन करने में काफी खर्चा भी करना होता है. इसमें एक हेक्टेयर में 1 लाख 50 हजार से 1 लाख 60 हजार रुपए का खर्चा प्रति हेक्टेयर किसानों का होता है. जिसके अनुसार लहसुन को उगाने में, फिर मजदूरी, बीज, खाद, पेस्टिसाइड, निराई, गुड़ाई, कटाई व छटाई सब में करीब 1,750 करोड़ रुपए की लागत आती है.
किसानों को मिलेंगे महज 1500 करोड़:कोटा की कृषि उपज मंडी की बात की जाए तो इस बार औसत भाव अप्रैल से लेकर सितंबर तक 77,0000 क्विंटल लहसुन की आवक हुई है. जिसके दाम 2100 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास मिले है. ऐसे में किसानों को हाड़ौती में उत्पादित हुए 7 लाख मीट्रिक टन के अनुसार करीब 1500 करोड़ रुपए ही मिलेंगे. हालांकि कोटा मंडी के सेक्रेटरी जवाहर लाल नागर का कहना है कि 15 सितंबर के बाद दाम आधे ही रह गए हैं. जहां पर मीडियम क्वालिटी का लहसुन 2000 से 2500 रुपए प्रति क्विंटल बिक रहा था. वो अब 1000 से 1200 रुपए प्रति क्विंटल रह गए हैं. अच्छी क्वालिटी का लहसुन 4 से 5 हजार रुपए क्विंटल था, वो 3 से 4 हजार रुपए क्विंटल रह गया है. ऐसे में अब जो माल मंडी में आ रहा है उसमें दाम और कम किसानों को मिलेंगे.
बीते साल के भाव रहते हैं तो मिलते ही 4100 करोड़:जबकि बीते साल 2021 की बात की जाए तो 1,06000 हेक्टेयर में लहसुन की फसल की थी. जिसका उत्पादन 6,60000 मीट्रिक टन हुआ था. बीते साल कोटा की सेठ भामाशाह कृषि उपज मंडी में 6,28236 क्विंटल लहसुन अप्रैल से सितंबर माह के बीच मंडी में पहुंचा था. जिसका औसत भाव 5800 के आसपास था. ऐसे में बीते साल के भाव से इस बार भी किसानों को पैसे मिलते तो ये करीब 4100 करोड़ के आसपास पहुंचता. जबकि उच्चतम दाम की बात की जाए तो 10 हजार रुपए क्विंटल से ज्यादा भाव भी बीते साल मिले हैं.