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रियलिटी चेक: अभिभावकों की जुबानी- ज्यादातर नियमों में फेल दिखी कोटा में बाल वाहिनी बसें और ऑटो

प्रदेशभर में ईटीवी भारत बच्चों की स्कूल बसों का रियलिटी चेक कर रहा है. जिससे स्कूल बसों की हकीकत सामने आए. वहीं दूसरी तरफ ईटीवी भारत ने अभिभावकों की स्कूल बसों को लेकर क्या है पीड़ा, क्या किस तरह से परिजनों पर स्कूल प्रशासन दबाव बनाता है, फीस और बस लगाने को लेकर परिजनों की क्या समस्या है...देखिए कोटा से स्कूली बच्चों के परिजनों से बातचीत.

Reality check kota, स्कूल बसों का रियलिटी चेक

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Published : Sep 7, 2019, 11:39 PM IST

कोटा. ईटीवी भारत प्रदेश भर में बाल वाहिनियों का रियलिटी चेक कर रहा है. आज हमारी टीम कोटा शहर में रियलिटी चेक करने पहुंची है. कोटा में बाल-वाहिनियों की हकीकत जान हम हैरान रह रह गए.

सबसे पहले हमारी मुलाकात सतीश वैष्णव से हुई. वैष्णव बताते हैं कि उनका बच्चा निजी स्कूल में पढ़ता है. जिस वैन से हमारा बच्चा स्कूल जाता था उसमें बच्चों को ठूंस-ठूंस कर क्षमता से अधिक भरकर ले जाया जाता है. सतीश कहते हैं कि वैन चालक ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में ओवरलोड बच्चों को भरते हैं. उन्हें हर समय किसी अनहोनी डर सताता रहता है.

रियलिटी चेक:

सतीश कहते हैं चालक के तेजी से ब्रेक लगाने के चक्कर में एक बार मेरा बेटा गिर भी चुका है. इसके चलते अब मैं उसे खुद ही स्कूल छोड़ता हूं और लेकर आता हूं. मैं खुद इसलिए परेशान हो रहा हूं, क्योंकि वैन में सुरक्षा ही नहीं है. स्कूल संचालक और वैन चालक इस तरफ ध्यान दें.

इसी तरह से डॉ. अमित गौतम बताते हैं कि बाल-वाहिनियों में बच्चे सुरक्षित नहीं हैं. जो वाहन बच्चों को स्कूल लाने ले जाने में प्रयोग किए जा रहे हैं. उनमें दोनों तरफ जालिया तक भी नहीं लगी हुई है. ऑटो चालक तेजी से चलाते हैं और अचानक ब्रेक लगाते हैं, जिससे बच्चे अंदर अन्य बैलेंस हो जाते हैं. एक बार मेरा बेटा स्कूल से आते समय गिर चुका है. उसके चेहरे और सिर पर चोट लगी थी.

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डॉ. अमित कहते हैं कि स्कूल प्रबंधन भी बाल वाहिनी के लिए जागरूक नहीं हैं. स्कूल प्रबंधन भी जिम्मेदारी बाल वाहिनी के लिए नहीं समझते है. इनकी मॉनिटरिंग भी ठीक से नहीं हो रही है. जब कोई दुर्घटना हो जाती है तो उसके बाद लोग कुछ दिन हल्ला करते हैं. फिर उसके बाद लीपापोती हो जाती है. ऐसा ही कुछ दर्द कोटा की रहने वाली भारती का भी है. भारती कहती हैं कि बच्चों को पीछे ऑटो में बैठाया जाता है. स्कूल बसों में फायर फाइटिंग सिस्टम नहीं होते हैं. ड्राइवर और कंडक्टर के संपर्क नंबर के हमारे पास नहीं होते हैं. ऐसे में कई समय जब बच्चा देरी से हो जाता है, तो हम परेशान होते रहते हैं.

फुल स्पीड में दौड़ती हैं बाल वाहिनी:

हमने और भी कुछ लोगों से जनना चहा तो मीनाक्षी ऑटो में तो आगे ड्राइवर के पास में भी बच्चों को बैठा लिया जाता है. स्कूल से जब बात कि जाती है तो वह जिम्मेदारी लेने से ही मना कर देते हैं, कहते हैं कि हम किसी को अलाउ नहीं कर रहे हैं. इसी तरह स्कूल किसी तरह की बस या वैन भी नहीं संचालित कर रहा है. ऑटो या वैन चालक भी फुल स्पीड में वाहन चलाते हैं.

सुधार की जरूरत:

यह दर्द सिर्फ इन लोगों का ही नहीं बल्कि और भी तमाम लोगों का है जो अपने नौनिहालों को लेकर चिंतित है. यानि हमारी पड़ताल में कुछ बाल वाहनियों को छोड़कर ज्यादातक में खामियां नजर आई और बच्चों के अभिभावक असंतुष्ट. यानि की हमारी पड़ता में सामने आया कि बच्चों को सुरक्षित यातायात का वादा देने वाली बाल वाहिनियों की हालत खस्ता है. सैकड़ों कमियां मौजूद हैं जिनमें सुधार की जरूरत है.

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