कोटा. भारत में कोई भी खुशी का कार्यक्रम हो या सामाजिक समारोह लोगों को खाना खिलाने की परंपरा (Problem on Serving Food) लंबे समय से चली आ रही है. लेकिन अब इस पर भी एक बड़ा संकट आने वाला है. राजस्थान पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने 14 जुलाई को एक आर्डर निकालते हुए प्लास्टिक कोटेड पेपर इंडस्ट्री से जुड़े सभी प्रोडक्ट पर बैन लगा दिया है. ऐसे में इनके दायरे में प्लास्टिक कोटेड कागज से बनने वाले दोना पत्तल भी आ गए हैं.
अब आम आदमी को किसी भी कार्यक्रम में लोगों को भोजन परोसने में समस्या आ सकती है. क्योंकि प्लास्टिक कोटेड पत्तल दोनों का विकल्प भारत में फिलहाल मौजूद नहीं है. इनके विकल्प के तौर में पेड़ के पत्तों से बने पत्तल दोने को देखा जा रहा है, लेकिन इतनी भारी मात्रा में उनका निर्माण होना भी संभव नहीं है. साथ ही उसके दाम भी कई गुना ज्यादा होंगे. जिसके चलते (Rajasthan Pollution Control Board Order) किसी भी समारोह या शादी में व्यक्तियों को खाना खिलाना भी अब महंगा होने वाला है. वहीं बायोडिग्रेडेबल आइटम में खाना परोसना हर किसी के लिए आसान नहीं है.
सब्सीट्यूट पड़ जाएगा 10 गुना महंगा, हजारों से लाखों तक पहुंचेगाः व्यापारियों का कहना है कि वर्तमान में 40 पैसे की पत्तल और 20 पैसे दोना आ रहा है. साथ ही 40 पैसे का छोटा गिलास प्लास्टिक कोटेड गिलास आ रहा है. इनमें करीब सवा रुपए से डेढ़ रुपए तक का खर्चा आ रहा था, लेकिन बायोडिग्रेडेबल पत्तल ही 10 रुपए ही आ रही है. जबकि 3 रुपए का दोना और गिलास बाजार में उपलब्ध नहीं है. ऐसे में एक आम आदमी को कार्यक्रम करने में 10 गुना से ज्यादा खर्चा पत्तल दोने में करना होगा. इसके अलावा पत्ते से बने पत्तल दोने के दाम भी 6 से 7 रुपए की पत्तल और 2 रुपए का देना है. यह खर्चा भी करीब 10 रुपए के आसपास हो रहा है. धानमंडी इलाके के डिस्पोजेबल आइटम के व्यापारी राजेश अग्रवाल का कहना है कि सब्सीट्यूट के रूप में कई एलुमिनियम व मिट्टी के आइटम है. हरे पत्तल दोने की सब रेंज हमने मंगा ली है, लेकिन यह एक मध्यवर्गीय परिवार की रेंज से बाहर का मामला है. शादी ब्याह में अगर 1000 आदमियों को खाना खिलाने के लिए करीब 15 हजार रुपए के आसपास का डिस्पोजल आइटम आ रहा था. सिंगल यूज प्लास्टिक के दिन होने से यह खर्चा 20,000 के आसपास पहुंच गया है. क्योंकि प्लास्टिक कोटेड पेपर से बने गिलास और चाय के कप इसमें शामिल हो गए थे, जिनका दाम ज्यादा है, लेकिन अब यही पोस्ट 10 गुना बढ़कर डेढ़ से दो लाख रुपए तक पहुंच जाएगी.
इतनी मात्रा में मौजूद भी नहीं हैं स्टील के बर्तनः डिस्पोजेबल आइटम के व्यापारी भगवान खटवानी का कहना है कि ग्रामीण इलाकों में ज्यादा फंक्शन और पार्टियां होती हैं. उन्हें हम शादी समारोह व सम्मेलन में पत्तल दोने नहीं दे पाएंगे. वर्तमान में स्टील के आइटम भी इतनी मात्रा में नहीं है. ग्रामीण इलाकों में जहां हजारों लोगों का भोजन होता है, उनके लिए समस्या हो जाएगी. वहां पर किसी भी समारोह में बड़ी मात्रा में बर्तन लाना संभव ही नहीं होगा. व्यापारियों का कहना है कि केवल मध्यमवर्गीय और आम आदमी ही इससे ज्यादा तक प्रभावित होगा. जबकि मध्यम वर्ग से ऊपर या धनाढ्य लोग कैटरिंग के जरिए भी भोजन करवा सकते हैं. इसमें काफी पैसा खर्च होता है.
प्लास्टिक कोटेड के बिना नहीं बन सकता, करोड़ो का माल बेकार हो जाएगाःव्यापारियों का कहना है कि कप और गिलास बनाने में प्लास्टिक कोटिंग इसलिए भी जरूरी है कि इन्हें गोल कर चिपकाने में वह काफी उपयोग में आती है. क्योंकि कागज को कागज से नहीं चिपकाया जा सकता है. इसीलिए प्लास्टिक कोटिंग जरूरी होती है. वहीं दूसरी तरफ अगर केवल सादा कागज के ही पत्तल दोने बनाए जाएंगे, तो वह काम नहीं आ सकेंगे. उनमें कोई भी लिक्विड सामग्री रखने पर वह बिखर जाएगी. उनमें किसी व्यक्ति को खाना परोसा भी नहीं जा सकता है. गुमानपुरा इलाके के डिस्पोजल आइटम के विक्रेता दीपक गुप्ता का कहना है कि कोटा में करीब 500 से ज्यादा व्यापारी हैं और सभी के पास लाखों रुपए का माल पड़ा हुआ है. सभी को मिलाकर करोड़ों रुपए का माल हमारे पास है. हमारी हालात बिल्कुल बिगड़ी हुई है. हमारे पास अच्छा चलता हुआ धंधा होते हुए भी हम लाखों का नुकसान लगने की स्थिति में आ गए हैं. हमारे पास पड़ा हुआ माल भी बर्बाद होने की स्थिति में है.
सरकार ने पहले क्यों नहीं की घोषणा, हमें भी समय दिया जाएः व्यापारियों का कहना है कि अगस्त 2021 में गजट नोटिफिकेशन केंद्र सरकार ने निकाल दिया था कि सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन कर दिया जाएगा. इस दौरान कोई घोषणा नहीं की गई थी कि पेपर कप इंडस्ट्री से जुड़े उत्पाद भी बंद होंगे. जिसके बाद हमने प्लास्टिक से जुड़े सभी डिस्पोजेबल आइटम खरीदना बंद कर दिया और हमारे पास माल था, उसे भी पूरी तरह बेचकर खत्म कर दिया. इसकी जगह पर हमने पेपर कप इंडस्ट्री से जुड़े आइटम को बड़ी मात्रा में खरीद लिया. कई व्यापारियों ने लोन लेकर भी माल खरीदा है और हमारे पास करोड़ों रुपए का माल पड़ा हुआ है. अब सरकार ने अचानक से 14 जुलाई को इनको भी प्रतिबंधित कर दिया है. जिसके चलते हमारे रोजगार के साथ-साथ इस पड़े हुए माल को बेचने का ही संकट हो गया है. इसको बंद करने के पहले सरकार को हमें 3 से 4 साल का समय देना चाहिए.