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कोटा में कोरोना मरीज की रेमडेसिविर की जगह पानी का इंजेक्शन लगाने से मौत, CMHO ने मानी निजी अस्पताल की लापरवाही

कोटा के श्रीजी अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीजों को रेमडेसिविर इंजेक्शन की जगह पानी के इंजेक्शन लगाने से मौत के मामले में डिप्टी सीएमएचओ की अध्यक्षता में चार सदस्यों की कमेटी गठित की है. कोटा सीएमएचओ ने इस मामले में अस्पताल की लापरवाही की बात कही है.

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कोटा में कोरोना मरीज की रेमडेसिविर की जगह पानी का इंजेक्शन लगाने से मौत

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Published : May 19, 2021, 8:00 PM IST

कोटा. झालावाड़ रोड स्थित कोटा हार्ट इंस्टीट्यूट के श्रीजी अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीजों को रेमडेसिविर इंजेक्शन की जगह पानी के इंजेक्शन लगाने से मौत का मामला सामने आया था. जिसके बाद चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ने कार्रवाई शुरू कर दी है. मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. भूपेंद्र सिंह तंवर ने बताया कि इस मामले में अस्पताल की लापरवाही सामने आई है. अस्पताल के खिलाफ जांच की जा रही है.

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जिला कलेक्टर उज्जवल राठौड़ ने अस्पताल के खिलाफ प्रशासनिक जांच के आदेश दिए हैं. एडीएम सिटी आरडी मीणा और मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. विजय सरदाना को 7 दिन में जांच रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है. कोटा पुलिस के डिकॉय ऑपरेशन के दौरान निजी अस्पताल का नर्सिंगकर्मी मनोज कुमार और उसका भाई राकेश जो निजी लैब में काम करता है, रेमडेसिविर इंजेक्शन को मुंह मांगे दाम पर बेचते हुए गिरफ्तार हुए थे. मनोज ने जिन 2 मरीजों के इंजेक्शन चुराए थे. उनमें से महिला माया की मौत हो गई है. जबकि दूसरा मरीज रतनलाल आईसीयू में गंभीर हालात में है.

रेमडेसिविर इंजेक्शन की जगह पानी का इंजेक्शन लगाने से मौत

मेडिकल स्टोर के जरिये नहीं बेचना था इंजेक्शन

सीएमएचओ डॉ. तंवर ने कहा कि रिटेल प्रक्रिया बंद करते हुए सीधे ही स्टॉकिस्ट अस्पताल को ही इंजेक्शन उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए थे. हम शुरू से ही अस्पतालों को यही कहते हुए आ रहे हैं. अस्पताल के डिमांड लेटर के जरिये ही इंजेक्शन जारी किए जाते हैं. इसके बावजूद मेडिकल स्टोर से इंजेक्शन को बेचे जा रहे थे. अस्पताल में मरीजों को सीधे ही इंजेक्शन लगाते हुए ट्रीटमेंट प्रोटोकोल को फॉलो नहीं किया गया. इंजेक्शन की खाली वाइल का संधारण भी नहीं किया जा रहा था.

चिकित्सक के पास डिलीवरी इंप्लीमेंटेशन होना चाहिए था

सीएमएचओ ने कहा कि रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोना में जीवन रक्षक भले ही ना हो लेकिन यह आवश्यक है. इसकी कालाबाजारी बंद करने के लिए सरकार के निर्देशानुसार चिकित्सक के पास डिलीवरी इंप्लीमेंटेशन होना चाहिए था. वह अस्पताल में नहीं किया गया. यह अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही है. इसकी जांच रिपोर्ट आने के बाद नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी. जांच के लिए डिप्टी सीएमएचओ डॉ. घनश्याम मीणा की अध्यक्षता में चार सदस्यों की कमेटी गठित की है. जिसमें एक चिकित्सक और फार्मासिस्ट को शामिल किया गया है.

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