कोटा. एमबीएस अस्पताल में कैंसर रोग विभाग में बीते 13 सालों से लीनियर एक्सीलेटर मशीन (Linear accelerator machine for Kota MBS Hospital) को लगाने के लिए प्रयास जारी हैं. हाल ही में स्मार्ट सिटी के तहत फंड भी स्वीकृत हो गया था, लेकिन अब यह प्रोजेक्ट फेल हो गया है. इसके लिए नगर विकास न्यास के अभियंताओं ने सर्वे भी कर लिया था, लेकिन प्रोजेक्ट की कॉस्ट दोगनी होने के चलते स्मार्ट सिटी ने इस कार्य के लिए बढ़ा हुआ फंड देने से मना कर दिया है. इसी के चलते अब यह प्रोजेक्ट वापस अधरझूल में चला गया है.
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ विजय सरदाना का कहना है कि स्मार्ट सिटी के तहत यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल से लीनियर एक्सीलेटर मशीन के लिए बजट मांगा था. स्मार्ट सिटी के तहत 15 करोड़ रुपए स्वीकृत भी हो गए थे. इसके लिए यूआईटी के अभियंताओं ने पहले से बनकर तैयार बंकरो की डिजाइन भी देख ली थी, जिसे भी फिट मान लिया था. हालांकि अब बजट बढ़ाने के लिए स्मार्ट सिटी को लिखा है. उनकी अगली बोर्ड की बैठक में ही तय होगा कि बजट मिलेगा या नहीं. अगर इससे बजट नहीं मिलता है तो आगे जाकर दोबारा पीपीपी मोड पर तैयारी की जाएगी.
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बजट कम पड़ गया है इसलिए अधर में प्रोजेक्ट
लीनियर एक्सीलेटर मशीन की कीमत करीब 16 करोड़ रुपए (Price of Linear accelerator Machine) है. इसके अलावा उसके साथ लगने वाली अन्य मशीनें करीब 9 करोड़ रुपए की हैं. ऐसे में बिल्डिंग और अन्य सुविधाओं के लिए भी खर्च होगा. इसके लिए भी 5 करोड़ रुपए की जरूरत है. इस तरह कुल बजट करीब 30 करोड़ रुपए का होगा.
अधरझूल में कैंसर मरीजों के लिए रेडिएशन थेरेपी की लीनियर एक्सीलेटर कस्टम ड्यूटी और जीएसटी पड़ रही भारी
लीनियर एक्सीलेटर और उसके साथ स्थापित होने वाली अन्य मशीनें विदेश से ही आयात होंगी. इसकी लागत करीब 15 करोड़ है. इस पर 27.7 फीसदी कस्टम, 18 फीसदी जीएसटी, इंपोर्ट और एक्साइज ड्यूटी लगेगी. इस तरह करीब 45 फीसदी राशि टैक्स की होने के चलते मशीन की लागत बढ़ गई है.
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2 महीने पहले हुई मीटिंग के बाद नहीं मिला कोई जवाब
कोटा दौरे पर आए यूडीएच के सेक्रेटरी भवानी सिंह देथा के साथ मेडिकल कॉलेज प्रबंधन की बैठक हुई थी. इसमें बजट बढ़ाने की मांग भी की गई थी. उस बैठक में देथा ने अतिरिक्त बजट नहीं होने की बात कही थी. बाद में मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने बढ़ी हुई राशि के लिए पत्र लिखा था. अभी तक उसका कोई जवाब नहीं मिला है.
इंजीनियर ने बताया था बंकरों को अनुकूल
यूआईटी के अभियंताओं ने एमबीएस अस्पताल में पहले से बनकर तैयार बंकरों को अनुकूल बताया है. इसके अलावा निर्माण को हटाने के लिए कहा था. ऐसे में निर्माण दोबारा नए सिरे से करवाना था. इसके लिए भी करोड़ों रुपए के बजट की आवश्यकता थी. इस लीनियर एक्सीलेटर सेंटर का रास्ता भी बदल कर रेजिडेंट हॉस्टल के सामने से बनाना था. इसमें पेशेंट फेसिलिटी एरिया, वेटिंग एरिया, गार्डन बनाने थे.
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कंप्यूटर तय करता है रेडिएशन
लीनियर एक्सीलेटर मशीन के जरिए कैंसर के मरीजों के प्रभावित एरिया पर रेडियो तरंगों से सिकाई की जाती है. इस मशीन में सीटी स्कैन की गाइडेंस से रेडिएशन दिया जाता है. अमूमन जब सिकाई में रेडियो तरंगे कैंसर प्रभावित क्षेत्र में छोड़ी जाती है, तो मरीज की त्वचा जल जाती है. नई तकनीक की मदद से उन किरणों पर अधिक फोकस किया जा सकेगा और मरीज की त्वचा भी नहीं जलेगी. इसमें मरीजों के दूसरे टिश्यू खराब नहीं होते, केवल कैंसर की सेल्स पर रेडिएशन होता है. जबकि एमबीएस अस्पताल के कैंसर विभाग में वर्षों पुराने मैथड कोबाल्ट थैरेपी से कैंसर मरीजों को रेडिएशन दिया जा रहा है.
13 साल से इंतजार, दो बार पीपीपी पर भी कोशिश
एमबीएस अस्पताल में ही वर्ष 2008 में एक फर्म ने पीपीपी मोड पर लीनियर एक्सीलेटर लगाने का अनुबंध कर लिया था. उसने काम भी शुरू कर दिया था. इस दौरान बंकर और कुछ निर्माण भी उसने कर दिया था, लेकिन बाद में फर्म ने कार्य अधूरा छोड़ दिया और उसकी सिक्योरिटी भी जप्त हो गई. करीब 80 लाख रुपए का निर्माण करवा दिया था. इसके बाद एमबीएस अस्पताल प्रबंधन ने दो बार पीपीपी मोड पर लीनियर एक्सीलेटर को लगाने का प्रयास किया. लेकिन सफलता नहीं मिली.