कोटा. मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में वन विभाग जल्द ही टाइगर सफारी शुरू करने वाला है. इसको लेकर चार रूट भी (Routes for Jungle Safari in Mukundara) तय कर दिए गए हैं. हालांकि, वन विभाग के अधिकारी यह नहीं बता पा रहे हैं कि सफारी कब से शुरू होगी, लेकिन वर्तमान में जंगल में केवल एक ही टाइगर बाघिन एमटी-4 लाइटिंग मौजूद है. ऐसे में उसी के भरोसे यह सफारी शुरू होगी. इसलिए जंगल सफारी में मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में बाघिन दिखना मुश्किल ही होगा.
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में बहुत कुछ देखने के लिए है. यहां कई जंगली और शाकाहारी जानवर मौजूद हैं. इसके अलावा यहां पर कई प्रजाति के पक्षी मौजूद हैं. उनका कहना है कि 760 वर्ग किमी एरिया में फैले इस रिजर्व में 4 क्षेत्र में जंगल सफारी शुरू की जाएगी. चारों एरिया की अलग-अलग खासियत (Distinguishing Features of Mukundara) और अलग-अलग तरह की वहां पर प्रकृति मौजूद है. यहां घना जंगल, झरना, पहाड़ और चंबल नदी है. साथ ही उन्होंने कहा कि नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी से बाघों को शिफ्ट करने की अनुमति मिलने के बाद दोबारा बाघों की मुकुंदरा में रिलोकेट किया जाएगा.
यह है चार रूट, बाघिन केवल सेल्जर में : वन विभाग के तय 4 रूट में जंगल सफारी बफर जोन में पर्यटकों को सफर करवाएगी. इनमें बोराबांस रेंज में बंधा-बग्गी रोड-अखावा-बलिंडा-बंधा, कोलीपुरा रेंज में नागनी चौकी चैक पोस्ट-कालाकोट-दीपपुरा घाटा-कान्या तालाब-नागनी चौकी चैक पोस्ट, मंदरगढ़ बेरियर-मंदरगढ़ तालाब-केशोपुरा-रोझा तालाब-मंदरगढ़ बेरियर और दरा रेंज में मौरूकलां-बंजर-रेतिया तलाई-पटपडिया-सावनभादो एरिया शामिल है. इन चारों ही एरिया में बाघिन का दिखना मुश्किल होगा, क्योंकि उसे सेल्जर रेंज में छोड़ा गया था. जिसके बाद वह उसी रेंज के आसपास घूम रही है. हालांकि, वन विभाग के अधिकारियों ने यह खुलासा नहीं किया है कि रिजर्व में जंगल सफारी कब शुरू होगी.
2013 में नोटिफाई, 5 साल में बनकर तैयार : मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व की घोषणा 2013 में सरकार ने की थी. इसके 84 वर्ग किलोमीटर के एरिया को पूरी तरह से प्रोटेक्टेड किया गया और सुरक्षा दीवार बनाई गई है. इसके बाद 2018 में ही यहां पर टाइगर को रिलोकेट किया गया था. डेढ़ साल में ही 2020 तक यह आबाद हो गया था. जिसके बाद यहां प्रेबेस बढ़ाया गया. अब करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद भी स्थिति जस की तस सी है. जंगल को अभी भी बाघों का इंतजार है.
रणथंभौर से आए चार टाइगर, एक ही बचा : मुकुंदरा को 2019 में आबाद किया गया था जब रणथंभौर टाइगर रिजर्व से एक बाघ को लाकर छोड़ा गया. इसके बाद फिर दो बाघिन को कुछ अंतराल में लाया गया. इसके बाद एक बाघ रणथंभौर से निकलकर बूंदी के रामगढ़ विषधारी सेंचुरी होता हुआ चंबल नदी के सहारे सुल्तानपुर दीगोद से सीधा मुकुंदरा पहुंच गया. इसके बाद एक बाघ और बाघिन के दो जोड़े बन गए थे. एमटी 1 से लेकर एमटी 4 तक नाम दिए गए. जिनमें एमटी-2 बाघिन ने दो शावकों को जन्म दिया. वहीं, दूसरी बाघिन एमटी-4 के साथ कैमरा ट्रैप में एक शावक नजर आया था. यहां पर बाघों की संख्या बढ़कर 7 हो गई थी, लेकिन अचानक से बाघों की मौत हो गई और कुछ लापता हो गए. अब केवल एक बाघिन लाइटनिंग यानी एमटी-4 यहां पर है. बाघों की मौत के लिए संक्रमण की केनाइन डिस्टेंपर बीमारी को जिम्मेदार बताया गया था.
एक्सपर्ट बोले- टाइगर मॉनिटरिंग व सुरक्षा के लिए सफारी जरूरी : रिटायर्ड डीसीएफ जोधराज सिंह हाड़ा ने बताया कि सफारी टाइगर मॉनिटरिंग और जंगल बचाने के लिए एक अच्छी बात है. इसमें मॉनिटरिंग के लिए विभाग के संसाधनों में बढ़ोतरी हो जाती है और सूचना तंत्र भी मजबूत हो जाता है. कार्मिकों के अलावा अधिकारियों के अतिरिक्त सोर्स भी विभाग के बन जाते हैं. सफारी में जा रहे ड्राइवर, गाइड, टूरिस्ट अच्छा या बुरा जो भी उन्हें नजर आता है, वह जानकारी डिपार्टमेंट के पास आती है. इसके बाद गलतियों में सुधार की गुंजाइश भी रहती है. टाइगर व जंगल के अपराध के बारे में कोई सूचना मिलती है और सुरक्षा भी बढ़ जाती है.