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मजदूर पिता के बेटे-बेटी ने छू लिया आसमां, हासिल किया ये खास मुकाम

अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो विपरित परिस्थितियों में भी मुकाम हासिल किया जा सकता है. कोटा निवासी यश अग्रवाल की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. आटा मिल में काम करने वाले त्रिलोकचंद के बेटे यश अग्रवाल का मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट में चयन हुआ है.

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यश ने ऑल इंडिया 89 रैंक हासिल की है.

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Published : Nov 23, 2020, 5:09 PM IST

कोटा.अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो विपरित परिस्थितियों में भी मुकाम हासिल किया जा सकता है. कोटा निवासी यश अग्रवाल की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. आटा मिल में काम करने वाले त्रिलोकचंद के बेटे यश अग्रवाल का मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट में चयन हुआ है. यश ने ऑल इंडिया 89 रैंक हासिल की है. साथ ही यश ने लॉकडाउन के दौरान अपनी छोटी बहन कीर्ति को भी पढ़ाया तो उसका भी जेईई-मैंस में चयन हो गया. दोनों भाई-बहन की जोड़ी ने कड़ी मेहनत कर यह मुकाम हासिल किया है. कीर्ति ने 88 पर्सेन्टाइल हासिल की है और अब आगरा के दयालबाग इंजीनियरिंग कॉलेज की सिविल ब्रांच में एडमिशन मिला है.

आटा मिल में काम करते हुए पिता त्रिलोकचंद अग्रवाल.

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पिता करते हैं मजदूरी

यश ने बताया कि मेरे पिता त्रिलोकचंद अग्रवाल आटा मिल में मजदूर हैं, जिनकी 8 हजार रुपये महीना पगार है. परिवार में माता-पिता एवं हम तीन भाई-बहिन हैं. मां मीनू अग्रवाल गृहिणी है. परिवार की स्थिति ऐसी है कि कोटा जाकर पढ़ाई करना भी एक सपना लगता था. मेरी रुचि बॉयो में थी और डॉक्टर बनने की ख्वाहिश थी. सभी ने कहा कि नीट की तैयारी के लिए कोटा से अच्छा शहर नहीं है. पापा भी चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं, इसलिए उन्होंने कहा कि चल एक बार कोटा होकर तो आते हैं. दोनों बहनों की स्कूल की एडमिशन फीस जमा कराने से बिल्कुल तंगहाली थी. ट्रेन की रिजर्वेशन जितने भी पैसे नहीं थे, जनरल का टिकट लेकर कोटा रवाना हुए. हम दोनों ट्रेन में कपलिंग पर बैठकर किसी तरह कोटा पहुंचे.

टॉप-3 में रहता था ताकि स्कॉलरशिप मिले

यश ने बताया कि मैंने 10वीं कक्षा 96.6 प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण की थी. आगरा के सेंट जोर्जेस स्कूल ने मुझे कक्षा 3 से लेकर 10वीं तक बिल्कुल निःशुल्क पढ़ाया था. फिर 12वीं कक्षा 97 प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण की. निजी कॅरियर इंस्टीट्यूट में मंथली माइनर टेस्ट में 90 प्रतिशत से ज्यादा अंक एवं टॉप 3 रैंक लाने वाले स्टूडेंट्स को 6 हजार रुपए मासिक स्कॉलरशिप दी जाती है. मैं हमेशा टॉप 3 रैंक में रहता था. इसलिए स्कॉलरशिप के पैसों से कमरे का किराया और खाने का खर्चा निकल जाता था. यश ने बताया कि कोटा में खर्च चलाना मुश्किल था, लेकिन पहले वर्ष स्कॉलरशिप से बहुत मदद मिली. इसके बाद जब दूसरे वर्ष कोचिंग करने की बात आई तो एलन द्वारा मेरी प्रतिभा को देखते हुए 80 प्रतिशत शुल्क में रियायत दी गई. इस सपोर्ट से मुझे फिर से पढ़ने की हिम्मत मिली और मेरा सपना पूरा हुआ. एमबीबीएस के बाद यश कार्डियोलॉजी में स्पेशलाइजेशन करना चाहता है.

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लॉकडाउन का असली फायदा मिला

इस बार पूरी तरह से परीक्षा के लिए तैयार था. फिर कोरोना आ गया, लॉकडाउन लग गया. ऐसे में मैं घर चला गया और वहीं से परीक्षा की तैयारी करने लगा. फैकल्टीज से लगातार संपर्क में था. घर गया तो छोटी बहन कीर्ति ने भी जेईई-मेंस का फार्म भरा हुआ था. लॉकडाउन के दौरान जब खुद पढ़ता तो कीर्ति को भी कैमेस्ट्री और फिजिक्स पढ़ा देता, मेरा भी रिवीजन हो जाता और उसे भी अच्छा लगता. इसके बाद मैथ्स कीर्ति ने यू-ट्यूब से पढ़ी. उसकी भी अच्छी तैयारी हुई और पहले ही अवसर में उसने 88 पर्सेन्टाइल हासिल कर इंजीनियरिंग में एडमिशन ले लिया.

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