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दिवाली विशेष : यहां दीपावाली मनाने से पहले किया जाता है पूर्वजों का 'श्राद्ध'

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Published : Oct 27, 2019, 5:48 PM IST

Updated : Oct 27, 2019, 6:08 PM IST

जहां पुरे देश में दिवाली रोशनी और मिठाई के साथ मनाई जाती है, वहीं गुर्जर समाज दिवाली मनाने से पहले अपने पुर्वजों को याद करता है. कोटा जिले के भीतरिया कुंड में दिवाली के अवसर पर गुर्जर समाज एकत्रित होकर सांठ कार्यक्रम का आयोजन करता है. यह कार्यक्रम सामाजिक एकता और समाज में सगंठन की भावना के लिए मनाया जाता है. इसमें सभी समाज के लोग अपने घरों से खाना लाते हैं जिसे एक पात्र में मिलाया जाता है. उसे पूर्वजों को अर्पित कर समाज में बांटा जाता है.

कोटा न्यूज, kota news

कोटा.देशभर में दिवाली के लिए अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित है. वहीं कोटा में गुर्जर समुदाय दिवाली मनाने से पहले एक अनूठी परंपरा का निर्वाह करता है, जिसके तहत दिवाली से पहले पूरा समाज अपने पूर्वजों को याद करता है. जहां भीतरिया कुंड में समाजगण एकत्रित होकर सांठ भरने का आयोजन करते हैं, जिसमें नदी के जल से तर्पण कर पूर्वजों से आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है.

क्या है सांठ भरना

संपूर्ण समुदाय दिवाली की अमावस्या पर सांठ भरने नदी किनारे एकत्रित होते हैं. इसमें सभी गुर्जर परिवार अपने घरों से भोजन बना कर लेकर आते हैं और एक बड़े पात्र में एकत्रित कर गन्ने और घास के पुलों के साथ नदी में विसर्जन करते हैं. साथ ही आपस में दिवाली की बधाईयां भी देते हैं.

कोटा के भीतरिया कुंड में सांठ भरने का आयोजन

गुर्जर समाज के पदाधिकारी ने बताया कि यह उत्सव समाज में बहुत महत्ता रखता है. इसका उद्देश्य है कि समाज के लोग जो नौकरी के लिये इधर-उधर रहते हैं, वह दिवाली के दिन एक जगह एकत्रित होकर एक साथ अपने पूर्वजों का तर्पण करें, जिससे सामाजिक एकता की भावना जागृत होती है.

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साथ ही सगंठन की भावना के साथ-साथ प्रत्येक परिवार के सदस्यों को एक साथ मिलने का अवसर प्राप्त होता है. वर्ष में सब समाज के लोग एक साथ मिलते हैं, तो उसमें प्रेम और निस्वार्थ की भावना बढ़ती है. दिवाली के दिन समाज के लोग मिलकर पूर्वजों को याद करते हैं और आशीर्वाद लेते हैं, इसी को सांठ भरना कहा जाता है.

समस्त समाज का भोजन एक थाली में, एकता का प्रतीक

समाज के लोगों ने बताया कि यहां पर सभी समुदाय के लोग अपने अपने घरों से खाना बनाकर थालियां सजाकर लाते हैं और उस समस्त भोजन को लेकर बड़े बर्तन में इकठ्ठा किया जाता है. सभी परिवारों के भोजन को एक साथ मिलाया जाता है यह एक संगठन का प्रतीक है, फिर उसी प्रसाद को पूर्वजों को तर्पण करके प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं.

सांठ को लेकर दंतकथा है प्रचलित

सांठ आयोजन को लेकर समाज की मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने यज्ञ में गुर्जर कन्या को बैठाकर यज्ञ आरम्भ किया था, इसी बीच ब्रम्हाणी माता ने गुर्जर कन्या को श्राप दिया था. इस श्राप से मुक्ति के लिए आज भी गुर्जर समाज दिवाली पर्व की अमावस्या पर एकत्रित होकर पितरों को तर्पण करते हैं.

पूरी कहानी यह है कि ब्रम्हा जी ने पुष्कर में यज्ञ किया तो वहां पर ब्रम्हाणी की जगह गुर्जर कन्या को बैठा कर यज्ञ प्रारम्भ किया,जब ब्रम्हाणी को इस बात का पता लगा कि मेरी जगह गुर्जर कन्या को बैठाकर यज्ञ संपन्न किया जा रहा है तो उन्होंने वहां आकर गुर्जर समाज को श्राप दिया की तेरी वजह से हमारा विच्छेद हुआ है.

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इसी बीच गुर्जर कन्या ने बोला कि माता आपने बिना सोचे समझे मुझे श्राप दिया है, मैं भी आपको श्राप देती हूं. जब गुर्जर कन्या ब्रम्हाणी माता को श्राप देने लगी तो उन्होंने कहा कि आप मुझे श्राप ना दें, मैं आपको इस श्राप से मुक्ति दिलाना चाहती हुं.

तब ब्रम्हाणी माता ने कन्या को आशीर्वाद दिया कि जब-जब दिवाली की अमावस्या पर समाज के लोग एक साथ एकत्रित होकर जलाशय एक साथ बैठेगा और जलाशयों में विचरण करने वाले जानवर इस भोजन को ग्रहण करेंगे, वैसे-वैसे आपका परिवार बढ़ता जाएगा.

इसलिए गुर्जर समाज में दिवाली के दिन श्राद्ध भी मनाया जाता है, समाज में एकता बनी रहे इसलीए हर साल समाज गण एकत्रित होकर इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है.

Last Updated : Oct 27, 2019, 6:08 PM IST

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