कोटा. गोमूत्र के गुण और इसके लाभ के बारे में तो सभी जानते हैं. आयुर्वेद के जानकार गोमूत्र को एक बेहतरीन औषधि बताते हैं. कई बीमारियों के लिए गोमूत्र रामबाण का काम भी करते है, लेकिन गोमूत्र को पीना सभी के बस की बात नहीं. इससे उठने वाली दुर्गंध और स्वाद के कारण हर कोई इसे पी नहीं सकता है, लेकिन अब ये पुरानी बात हो चली है. अब गोमूत्र को लोग बड़े चाव से पी रहे हैं और उन्हें किसी प्रकार की दुर्गंध या परेशानी भी नहीं हो रही है.
ऐसा इसलिए क्योंकि अब गोमूत्र भी 'फ्लेवर्ड' (Flavored cow urine) बनाए जा रहे हैं. जी हां, कोटा की आधा दर्जन गोशालाओं फ्लेवर्ड गोमूत्र (Flavored cow urine in kota Gaushalas) तैयार किया जा रहा है. गोशाला में गोमूत्र को एकत्रित किया जाता है. उसके बाद उसे बैक्टीरिया फ्री करने के बाद फ्लेवर्ड बनाया जाता है. इससे उसकी दुर्गंध खत्म होने के साथ ही टेस्ट भी बढ़िया हो जाता है. फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार करने की शुरुआत करवाने वाले आईआईटियन डॉ. राकेश चंद्र अग्रवाल का कहना है कि गोमूत्र छह से ज्यादा फ्लेवर में तैयार किया जा रहा है. गोमूत्र के मैंगो, ऑरेंज, पाइनएप्पल, स्ट्रॉबेरी, पान और मिक्स फ्लेवर तैयार किए जा रहे हैं. इस फ्लेवर्ड गोमूत्र को तैयार करने के लिए केमिकल का उपयोग नहीं किया जाता है. फूड ग्रेड कलर और एसेंस से इसे बनाया जाता है जिनका उपयोग फार्मास्यूटिकल कंपनियां दवाएं बनाने में करती हैं.
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उन्होंने कहा कि आयुर्वेद के जिन जानकारों ने गोमूत्र लेने की मांग की है, उन लोगों को यह पीने में अच्छा भी लगता है. खास बात यह है कि लगातार इसकी डिमांड बढ़ भी रही है. आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. तेजेश गोयल का कहना है कि गोमूत्र से सामान्य तौर पर काफी स्मेल आती है, ऐसे में फ्लेवर डालने पर ये स्मेल खत्म हो जाती है और इसका टेस्ट भी काफी अच्छा हो जाता है.
100 लीटर बेच रहे, गोशाला को भी लाभ
फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार कर रहे जितेंद्र कुमार का कहना है कि कोटा की जिन छह गोशालाओं में यह फ्लेवर्ड गोमूत्र तैयार किया जा रहा है उन सभी ने गोशाला को अपना अलग नाम दिया हुआ है. किसी ने संजीवनी तो किसी ने इम्यूनोकोट नाम दिया है. यहां सभी जगह पर करीब 100 लीटर उत्पादन रोज होता है. बूंदी रोड पर नांता नाके पर गोशाला चलाने वाले जितेंद्र गुप्ता का कहना है कि वे करीब 20 लीटर गोमूत्र रोज तैयार करते हैं. इससे करीब तीन से चार हजार रुपए रोज की आमदनी होने लगी है. अब जो गाय दूध नहीं देती है, वह गोमुत्र के जरिए अपना खर्च निकाल ले रही है. इससे गोशाला को भी फायदा हो रहा है.