इटावा (कोटा) :उपखंड क्षेत्र में अतिवृष्टि और बाढ़ (Heavy Rain And Flood) से हुए नुकसान को लेकर सर्वे (Survey) करवा मुआवजा (Compensation For Heavy Rain) देने के मामले में अब प्रशासन की कार्यप्रणाली (Administration Under Dock) पर सवाल उठने लगे हैं. कांग्रेस (Congress) की देहात जिलाध्यक्ष सरोज मीणा (Saroj Meena) ने भी इटावा में हुए मुआवजा वितरण प्रणाली (Distribution System) को कटघरे में खड़ा करते हुए अपात्र लोगों (Ineligible) को लाभ पहुंचाने के प्रशासन पर आरोप लगाए हैं.
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सरकार के मरहम उठे सवाल
कोटा जिले के इटावा उपखंड क्षेत्र में गत माह आई बाढ़ व अतिवृष्टि (Heavy Rain And Flood) से हुए नुकसान के बाद राज्य सरकार ने बाढ़ प्रभावितों को राहत का मरहम लगाने की कवायद शुरू की थी. इसको लेकर पंचायत समिति क्षेत्र (Panchayat Samiti Shetra) में कानूनगो और पटवारियों से सर्वे करवाया गया. उसी आधार पर परिवारों को मुआवजा राशि भी आवंटित की गई. अब यही मुआवजा राशि का आवंटन स्थानीय प्रशासन के गले की फांस बन गया. पीड़ित परिवार सामने आ प्रशासन की अनदेखी पर सवाल उठा रहे हैं.
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जरूतमंदों को किया दरकिनार
आरोप है कई स्थानों पर जिनके मकान नहीं टूटे हैं उनको तो मुआवजा राशि दी गई. वहीं जिनके मकान पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो गए उन्हें इससे वंचित रखा गया. सरोज मीणा (Saroj Meena) इन्हीं वंचितों की आवाज बन रही हैं. मीणा (Saroj Meena) इटावा पंचायत समिति की प्रधान भी रही हैं. वो स्थानीय प्रशासन पर गंभीर आरोप लगा रही हैं.
उनका आरोप है कि जो लाभार्थी हैं दरअसल, उन्हें तो इसकी जरूरत ही नहीं थी. उन्होंने स्थानीय प्रशासन पर मिलीभगत का आरोप लगाते हुए कोटा कलेक्टर से निष्पक्ष जांच की मांग की है.
मीणा ने लगाया मिलीभगत का आरोप
आरोप लगाया है कि अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए मुआवजे की बंदरबाट की गई. कहा है कि- इटावा उपखंड क्षेत्र में अतिवृष्टि से हुए नुकसान के बाद सर्वे में कई परिवार ऐसे हैं जिनके मकान टूटे थे और उनके नाम छूट गए थे. उनके नाम मुआवजा राशि की लिस्ट में नहीं आए हैं और कई ऐसे परिवार भी हैं जिनके पक्के मकान हैं और जिनके बिल्कुल भी नुकसान नहीं हुआ है उन्हें प्रशासन ने प्राथमिकता के आधार पर प्रभावित मानकर लाभ वाली लिस्ट में शामिल कर दिया है.
इससे पहले भाजपा ने इस प्रकरण को लेकर इटावा उपखंड कार्यालय पर प्रदर्शन भी किया था. वहीं अब कांग्रेस की सरोज मीणा (Saroj Meena) का अपनी सरकार के कारिंदों (Administration Under Dock) पर सवाल उठाना पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाने वाला साबित हो सकता है.