कोटा. पूर्व जासूस होने का दावा करने वाले महमूद अंसारी पाकिस्तान की जेल से भारत लौटकर (Mahmood Ansari Family in Kota) अपने हक के लिए 32 साल तक संघर्ष किया. सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए फैसले के बाद (Supreme Court Order on Spy Condition) महमूद अंसारी चर्चा में आ गए हैं. इसके साथ ही एक बार फिर महमूद अंसारी की जहन में पाकिस्तान जेल में बंद यातनाओं का खौफनाक मंजर उभरने लगा है. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए महमूद अंसारी ने बताया कि पाकिस्तान की जेल में वे साढ़े 13 साल तक रहे.
महमूद अंसारी पाकिस्तान जेल में मिली यातनाओं के बारे में कहते हैं कि वो कभी नहीं भूलने वाले जख्म हैं. पाकिस्तान की जेल में मिली यातनाओं से शरीर खराब हो गया. पाकिस्तान में उन्हें टॉर्चर करने के साथ ऐसा केमिकल पिलाया था, जिसके चलते वतन वापसी के बाद भी औलाद पैदा नहीं कर सके. आज उनके पास एक बेटी फातिमा है, वही उनकी पूरी केयर कर रही है. वे बताते हैं कि पाकिस्तान वे तीन बार मिशन पर गए थे. पहले दो बार तो सही सलामत वापस आ गए, लेकिन तीसरी बार जो सिक्रेट मिशन था, उसे पूरा करने के दौरान पकड़े गए. इसके बाद यातनाओं का सिलसिला शुरू हुआ जो सालों साल चलता रहा.
पाकिस्तानियों ने जेल में टॉर्चर किया... पाकिस्तान से डाक आने के चलते इंटेलिजेंस की नजर पड़ी : महमूद अंसारी की नौकरी डाक विभाग के कोटा जंक्शन पर स्थित (Spy Tortured by Pakistani) रेलवे मेल सर्विस में सोल्टिंग असिस्टेंट के पद पर 1966 में लगी थी. उनके पाकिस्तान से रिश्तेदारों की डाक आती थी. ऐसे में इंटेलिजेंस की नजर उनकी डाक पर पड़ी. जिसके बाद उनका स्थानांतरण जयपुर 12 जून 1972 को करवा दिया. जहां पर उन्हें पाकिस्तान जाकर जासूसी करने के लिए इंटेलिजेंस ने तैयार किया. पहले उन्होंने मना किया, लेकिन बाद में अंसारी तैयार हो गए और उन्हें जयपुर में ही ट्रेनिंग दी गई.
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अंसारी को साल 1976 में तीन बार पाकिस्तान भेजा गया. इंटेलिजेंस की टीम भारत के अनूपगढ़ बॉर्डर तक उन्हें छोड़ कर आती थी, जहां पर पाकिस्तान में रहने वाला गाइड उन्हें लेकर जाता था. गाइड बॉर्डर को पार करा और नजदीकी रेलवे स्टेशन चिस्तियां छोड़ देता था, जहां से वह अपने रिश्तेदार के घर कराची चले जाते थे. अंसारी का कहना है कि कराची में उनके छोटे नाना रहते थे. पहले हिंदुस्तान में ही थे, लेकिन बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए थे. पहली बार वे 3 दिन के लिए गए थे, जिसमें इंटेलिजेंस के लोगों ने अखबार सबूत के तौर पर मंगवाया था. दूसरी बार भी वे 7 दिन के लिए गए थे, यहां पर उन्होंने कोई सैन्य जानकारियां जुटाकर उपलब्ध करवाई थी.
तीसरे सीक्रेट मिशन में पकड़े गए और पूरी लाइफ बदल गई : महमूद अंसारी ने बताया कि 1 दिसंबर 1976 को वह तीसरी बार पाकिस्तान भेजे गए. इस बार मिशन 21 दिन का था. पाक सैन्य ठिकानों के आसपास जाकर काफी जानकारी जुटा ली थी और उसे कोडवर्ड में नोट भी कर लिया था. महमूद अंसारी का कहना है कि गाइड ने धोखा दिया और वापसी के समय बॉर्डर पर पाकिस्तान आर्मी से फोर्ट अब्बास के नजदीक पकड़वा दिया. उन्होंने अपने कोट के कॉलर में सीक्रेट जानकारियां के कागज छुपा रखे थे. यह सब कोडिंग लैंग्वेज में थे, जिससे आर्मी को जासूस होने का पक्का यकीन हो गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इन्हीं सबूतों के चलते पाकिस्तान में उनके छोटे नाना और अन्य रिश्तेदारों को भी परेशान किया और उन्हें भी आर्मी से यातनाएं मिली हैं.
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सर्दी में बर्फ की सिल्ली और गर्मी में बिना पंखे के काल कोठरी में रखा : अंसारी का कहना है कि बॉर्डर पर जासूसी के आरोप में पकड़े जाने के बाद मेरा कोर्ट मार्शल हुआ. पाकिस्तान में आर्मी का शासन था. इसमें मुल्तान आर्मी कैंप में 2 साल बतौर कैदी और जासूसी के आरोप में रहा. मुझे सर्दियों में बर्फ की सिल्ली पर लेटा कर रखते थे और गर्मी में बिना पंखे के काल कोठरी में छोड़ देते थे. हाथ-पैरों में बेड़ियां जकड़ी हुई थी. मुझे खाने के दौरान केमिकल खिला देते थे, जिससे पेट में काफी जलन और गर्मी लगती थी. इससे शरीर पर कई निशान हो गए. इन दो साल की भारी यातना के बाद उन्होंने मेरा इलाज भी करवाया और सेंट्रल जेल बहावलपुर में शिफ्ट कर दिया. बेटी फातिमा का कहना है कि सजा पूरी होने के बाद साल 1989 में अमृतसर वाघा बॉर्डर पर उन्हें छोड़ दिया. जब मेरे पिता यहां पर आए थे, तब बेड़ियों के निशान उनके हाथ, पैर, गर्दन व शरीर पर थे. यह निशान अब जाकर ठीक हुए हैं. उनका शरीर पूरी तरह से कमजोर और टूट गया है. इसी के चलते आज कई बीमारियों ने उनको जकड़ लिया है.
जेलर की मदद से कई लोगों को सजा पूरी होने पर छुड़वाया : महमूद अंसारी का यह भी कहना है कि बहावलपुर जेल में असिस्टेंट जेलर से मेरी जान पहचान हो गई और वह मुझे पेन और कागज (Indian Prisoners in Pakistani Jail) उपलब्ध करवा देते थे. जिनसे मैंने भारतीय कैदियों की काफी मदद की. यह कैदी सजा पूरी होने के बाद भी 5 से 7 साल बंद थे. मैने पाकिस्तान की पंजाब हाईकोर्ट की सर्किट बेंच बहावलपुर को अपील करता था. जिसके बाद रिहाई के आदेश सिंध व पंजाब प्रांत के सेक्रेटरी को न्यायालय ने दिए. वहां से पुशबैक अभियान चलाकर सैकड़ों लोगों को भारत के बॉर्डर में छोड़ दिया गया.अंसारी का यह भी कहना है कि भारत सरकार ने वापस आने पर उनकी मदद नहीं की, जबकि उनके पास पूरे सबूत हैं कि उन्हें जासूसी के लिए ही भेजा गया था.