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कोटा: नया गांव आवली रोझड़ी में पेयजल संकट, एक-दो किलोमीटर दूर से लाना पड़ रहा पानी

कोटा में गर्मी शुरू होते ही नयागांव आवली रोझड़ी के निवासी पीने के पानी को तरस रहे हैं. लोगों को एक से दो किलोमीटर से पानी लाना पड़ रहा है. इस इलाके में बोरिंग से पानी की पूर्ति होती है, जिसमें भी पानी सूख गया है. स्थानीय पार्षदों ने इस समस्या के लिए कई बार नगर निगम और यूआईटी के अधिकारियों को अवगत कराया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.

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नया गांव आवली रोझड़ी में पेयजल संकट

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Published : Apr 1, 2021, 11:34 AM IST

कोटा.कोटा नगर में शामिल हुए कई गांव वन भूमि पर बसे होने का खामियाजा भुगत रहे हैं. कहने को तो यह शहरी सीमा में जुड़कर विकास की दौड़ में शामिल हो गए, लेकिन इन्हें मूलभूत सुविधाएं भी मुहैया नहीं हो सकीं. हालात यह हैं कि जैसे ही गर्मी अपने तीखे तेवर दिखाना शुरु करती है तो डार्क जोन में होने के कारण यह गांव चंबल किनारे बसे होने के बाद भी पेयजल को तरस जाते हैं.

नया गांव आवली रोझड़ी में पेयजल संकट

कोटा दक्षिण नगर निगम के वार्ड संख्या 7 की रहने वाली लक्ष्मीबाई अपने पार्षद सोनू भील को इलाके में पेयजल के हालातों से अवगत करवा रही हैं. भूजल स्तर नीचे गिरने के साथ ही इलाके में लगे सभी बोरिंग जबाव दे गए और अब उन्हें डेढ़ किलोमीटर दूर से पानी भरकर लाना पड़ता है. कुछ मकानों में निजी बोरिंग लगी हुई है, जो महीने के 500 रुपए लेकर पीने का पानी उपलब्ध करवाते थे, लेकिन इस बार वह भी समस्या से जुझ रहे हैं. अकेले लक्ष्मी बाई के परिवार को ही इस मुसीबत का सामना नहीं करना पड़ा रहा है, रावतभाटा रोड पर वन भूमि पर बसी 2 दर्जन से अधिक कॉलोनियों की 1 लाख से अधिक आबादी के सामने गर्मी बढ़ने के साथ यह समस्या खड़ी हो गई है.

बोरिंग में भी नहीं आ रहा पानी

जनता ने इस समस्या से कई बार पार्षद विधायक और सांसद तक को अवगत करवा दिया, लेकिन समाधान नहीं हो सका. ग्रामीण क्षेत्र के लिए पीएचईडी विभाग की मंडाना बोराबास पेयजल योजना की पाइपलाइन इस क्षेत्र से गुजर रही है, लेकिन योजना ने इन क्षेत्रों के शामिल नहीं होने के कारण लाभ नहीं मिल सका. 7 साल पहले विधायक कोष से एक ट्यूबवेल स्वीकृत हुआ था, जिसकी मरम्मत करवाने का खर्च भी इन लोगों को उठाना पड़ता है.

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पार्षदों के अनुसार गर्मी के दिनों में इस इलाके में टैंकरों से पानी की सप्लाई होती है, जो आबादी के हिसाब के ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. सरकारी और अच्छे जल स्तर वाले ट्यूबवेलों को दंबगों ने कब्जा कर लिया जो अपनी मर्जी से पानी उपलब्ध करवाते हैं और उसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है. स्थानीय विधायक को भी इस समस्या से अवगत करवाया, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं हो सका.

एक-दो किलोमीटर दूर से लाना पड़ रहा पानी

वैसे तो शहरी सीमा में शामिल हुए नए इलाकों के लिए यूआईटी द्वारा दो नए पंप हाउस का निर्माण कार्य तेज गति से चल रहा है, लेकिन इन्हें पूरा होने भी समय लगेगा. वहीं चंबल के पानी की डिमांड पूरे राजस्थान में है, लेकिन जब चंबल के किनारे रहने वाले लोग ही पेयजल को तरस रहे हो तो यह जलदाय विभाग की कार्यप्रणाली और इच्छा शक्ति पर कई सवाल खड़े करता है. गर्मी की शुरुआत में ही अभी से इन इलाको में जनता पेयजल किल्लत से जुझ रही तो मई जून की भीषण गर्मी के गंभीर हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है.

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