कोटा.कोटा नगर में शामिल हुए कई गांव वन भूमि पर बसे होने का खामियाजा भुगत रहे हैं. कहने को तो यह शहरी सीमा में जुड़कर विकास की दौड़ में शामिल हो गए, लेकिन इन्हें मूलभूत सुविधाएं भी मुहैया नहीं हो सकीं. हालात यह हैं कि जैसे ही गर्मी अपने तीखे तेवर दिखाना शुरु करती है तो डार्क जोन में होने के कारण यह गांव चंबल किनारे बसे होने के बाद भी पेयजल को तरस जाते हैं.
कोटा दक्षिण नगर निगम के वार्ड संख्या 7 की रहने वाली लक्ष्मीबाई अपने पार्षद सोनू भील को इलाके में पेयजल के हालातों से अवगत करवा रही हैं. भूजल स्तर नीचे गिरने के साथ ही इलाके में लगे सभी बोरिंग जबाव दे गए और अब उन्हें डेढ़ किलोमीटर दूर से पानी भरकर लाना पड़ता है. कुछ मकानों में निजी बोरिंग लगी हुई है, जो महीने के 500 रुपए लेकर पीने का पानी उपलब्ध करवाते थे, लेकिन इस बार वह भी समस्या से जुझ रहे हैं. अकेले लक्ष्मी बाई के परिवार को ही इस मुसीबत का सामना नहीं करना पड़ा रहा है, रावतभाटा रोड पर वन भूमि पर बसी 2 दर्जन से अधिक कॉलोनियों की 1 लाख से अधिक आबादी के सामने गर्मी बढ़ने के साथ यह समस्या खड़ी हो गई है.
जनता ने इस समस्या से कई बार पार्षद विधायक और सांसद तक को अवगत करवा दिया, लेकिन समाधान नहीं हो सका. ग्रामीण क्षेत्र के लिए पीएचईडी विभाग की मंडाना बोराबास पेयजल योजना की पाइपलाइन इस क्षेत्र से गुजर रही है, लेकिन योजना ने इन क्षेत्रों के शामिल नहीं होने के कारण लाभ नहीं मिल सका. 7 साल पहले विधायक कोष से एक ट्यूबवेल स्वीकृत हुआ था, जिसकी मरम्मत करवाने का खर्च भी इन लोगों को उठाना पड़ता है.