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कोटा की प्रियंका! सैनिक पति की मौत के बाद टूटता रहा दुखों का पहाड़, समस्याएं अपार... विधवा को सरकार का भी नहीं मिला साथ - जवान की विधवा का दर्द

सरकार भले ही अपने सैनिकों के लिए तत्परता से काम करने के दावे करती हो लेकिन कोटा की प्रियंका की दास्तां उन दावों की बखिया उधेड़ती है. बताती है कि कैसे बड़े नाम वाले जिम्मेदार अपनी जवाबदेही से बचते हैं. कोटा की प्रियंका इसकी एक जीती जागती और सिसकती मिसाल है.

Pain of A Soldier wife
कोटा की प्रियंका!

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Published : Feb 19, 2022, 5:59 PM IST

Updated : Feb 19, 2022, 6:09 PM IST

कोटा.प्रियंका के लिए जून 2018 का वो दिन पहाड़ बन कर टूटा. जब ITBP ( इंडियन तिब्बत बॉर्डर पुलिस) में सब इंस्पेक्टर पति की सड़क हादसे में मौत हो गई. 2 साल की शादी और दुधमुंही बच्ची के साथ जीवन के कठिन सफर पर निकल पड़ने की ये शुरुआत भर थी. आजमाइश अभी बाकी थी.

प्रियंका कोटा स्थित रायपुरा इलाके में रहती हैं. इनकी शादी साल 2016 में अर्धसैनिक बल इंडियन तिब्बत बॉर्डर पुलिस में तैनात सब इंस्पेक्टर हंसराज से हुई. हंसराज हिमाचल में तैनात थे और इंस्पेक्टर बनने के लिए अलवर में ट्रेनिंग को पूरा कर कोटा बेटी वेदांशी और पत्नी प्रियंका को लेने आए थे. तभी कोटा शहर के डीसीएम रोड पर जून 2018 में ट्रोले से दुर्घटना होने के चलते उनकी मौत हो गई.

कोटा की प्रियंका!

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और उम्मीद बार बार दगा देती रही: पति की मौत के बाद अपने भी बेगाने हो गए. ससुराल पक्ष ने उसका साथ छोड़ दिया. जैसे तैसे प्रियंका ने खुद को संभाला और सरकारी टीचर की नौकरी मेहनत से हासिल की. बेटी वेदांशी के लालन-पालन की एक उम्मीद बनी. किस्मत फिर प्रियंका को दगा दे गई और 10 अगस्त 2021 को वो खुद सड़क हादसे का शिकार हो गई. बेगू स्थित स्कूल जाते वक्त जिस ऑटो में वो सवार थी वो पलटा और फिर वो अपने पैरों पर कभी खड़ी न हो सकी. उसकी रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हुआ, ब्लैडर फटा, दिल्ली में ऑपरेशन हुआ लेकिन वो हो न सका जिससे वो सामान्य जिन्दगी जी सके.

उसके शरीर का आधा हिस्सा पैरालाइज हो गया. आज प्रियंका चल फिर नहीं सकती है, अब व्हील चेयर ही उसकी उम्मीद है और उसके पेंटर पिता रामकिशन और मां द्वारकाबाई वो कंधा जो उसको सहारा देते हैं.

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ये मार दोहरी है: प्रियंका के सामने दुश्वारियां कम नहीं. बेटी को पढ़ाना है, उसकी परवरिश करनी है और अपना इलाज भी कराना है. इन सबके लिए पैसे चाहिए. जानती है कि ये सब अकेले नहीं कर सकती. वो भी तब जब चित्तौड़गढ़ जिले के बेगू तहसील के गोविंदपुर गांव नौकरी के लिए जाना असंभव हो. कारण- इलाज कोटा में चल रहा है. छुट्टियां भी खत्म हो गई है.

सवाल पिता की मजबूरी का भी है. जो जैसे तैसे अपना घर चलाते हैं और अब बेसहारा बेटी की जिम्मेदारी भी उठानी है. उनकी बेटी खुद मुख्तार हो सके, अपने पैरों पर खड़ी होने लायक हो इसलिए फिजियोथेरेपी की सलाह दी गई है. इस मद में पिता पूरी जमा पूंजी खर्च कर चुके हैं. अब प्रियंका को भी तनख्वाह नहीं मिलती है. नौकरी भी दांव पर है.

नौकरी की कहानी कुछ यूं है...: हंसराज की मौत के बाद प्रियंका की नौकरी दिसंबर 2018 में थर्ड ग्रेड के पद पर लग गई उनकी ड्यूटी कोटा जिले के लाडपुरा ब्लॉक में ही रामराजपुरा में थी. प्रियंका ने तब भी मेहनत नहीं छोड़ी और वह सेकंड ग्रेड टीचर बनने की तैयारी में जुट गई. इसके बाद में उसका यह सपना भी पूरा हो गया और उसका चयन सेकंड ग्रेड में दिसंबर 2020 में हो गया.

राज्य सरकार ने उसकी पोस्टिंग चित्तौड़गढ़ जिले की बेगू तहसील के गोविंदपुरा गांव में कर दी. प्रियंका का प्रोबेशन 2 साल चलना था, लेकिन 10 अगस्त 2021 को एक्सीडेंट हो गया इसके चलते वह अभी तक भी छुट्टियों पर है. उसकी जो 6 महीने की छुट्टियां थीं वो भी जनवरी में खत्म हो गईं. नियमों का हवाला देते हुए शिक्षा विभाग ने भी उसकी सैलरी रोक दी है.

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गुजारिश सिर्फ इतनी, लेकिन सुने कौन: प्रियंका चाहती है कि उसकी विकट स्थिति में सरकार और महकमा उसका साथ दे. उसका ट्रांसफर कोटा कर दे लेकिन न तो महकमा, न सूबे के मुखिया और न जनप्रतिनिधि ही सुनने को तैयार हैं. उसकी मंशा साफ है इरादे नेक हैं, काम से जी नहीं चुराना चाहती...कहती है कि पास में अगर स्कूल होगा तो कम से कम व्हील चेयर पर ही वो सफर तय कर बच्चों को पढ़ाने चली जाया करेगी.

कहती है - सबसे कह चुकी है कि फौजी की पत्नी हूं, दर्द झेल रही हूं, लेकिन कोई सुनता ही नहीं. इतना ही नहीं कई जनप्रतिनिधियों ने तो मेरा प्रार्थना पत्र ही अस्वीकार कर मुझे लौटा दिया. नेता कह देते हैं कि ट्रांसफर पूरी तरह से बैन है.

पिता करें तो करें क्या: पिता रामकिशन से अपनी बेटी की लाचारी बर्दाश्त नहीं होती. हरेक दिन उसको जिन्दगी की जंग लड़ते देख तड़प उठते हैं. 4 बेटियों और 1 बेटे की जिम्मेदारी पूरी इमानदारी से निभाई . फिर भी उम्र के इस पड़ाव पर ऐसा दुख झेलने को मजबूर हैं. बताते हैं कि बिटिया के इलाज में अब तक 12 लाख खर्च कर चुके हैं. महंगाई के इस दौर में इलाज के लिए दिव्यांग प्रियंका को ऑटो में ले जाना खला तो जैसे तैसे स्कूटी के सहारे सफर तय करवाते हैं.

प्रियंका की ये आपबीती दरअसल, हमारी व्यवस्था पर एक जोरदार तमाचा जड़ती है. सरकारों की नीति और नीयत पर प्रहार करती है जो सैनिक परिवार और उसकी विधवा के लिए हर संभव सहायता का आश्वासन तो देती है लेकिन ऐन मौके पर पीड़ित की आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह जाती है. जो सत्ता के शोरगुल में कहीं गुम हो जाती है.

Last Updated : Feb 19, 2022, 6:09 PM IST

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