कोटा. देशभर में नींबू के दाम बढ़ने के चलते हड़कंप मचा हुआ है. नींबू के दाम जहां पर 50 से 60 रुपए किलो हुआ करते थे. अब यह 4 से 5 गुना बढ़े हुए हैं. करीब 250 से 300 रुपए किलो तक दाम बढ़ गए हैं. जबकि नींबू साल भर (cultivate lemon throughout the year) की जाने वाली फसल है. किसान नींबू को तीन बार सालभर में उत्पादित कर सकता है, लेकिन यह काफी मुश्किल भी माना जाता है. इसके तीन सीजन मृग, अंबे और हस्त बहार (mrig, Ambe and Hasta bahar are three seasons of lemon harvest) शामिल हैं.
कोटा के नींबू वर्गीय फसलों के सेंटर फॉर एक्सीलेंस "सिट्रस" के एक्सपर्ट ने नींबू के पौधरोपण से लेकर उत्पादन तक की पूरी जानकारी ईटीवी भारत के साथ साझा की है. इसमें सिट्रस के हॉर्टिकल्चर डिप्टी डायरेक्टर एस्सेल जांगिड़ का कहना है कि गर्मी में आने वाली फसल के सीजन को अंबे बहार कहा जाता है. जबकि सर्दी में होने वाली फसल को मृग बहार कहा जाता है. हस्त बहार को मेंटेन करना किसानों के लिए मुश्किल होता है. ज्यादातर किसानों का फोकस अंबे और मृग पर ही होता है.
पढ़ें.नींबू को लगी महंगाई की नजर, किचन से बनाई दूरी...पेट्रोल-डीजल से भी ढाई गुने बढ़े दाम
इस तरह से करते हैं बहार को मैनेज
उपनिदेशक जांगिड़ का कहना है कि अंबे बहार में जनवरी या फरवरी में करीब एक माह खेत या नींबू के बगीचे का पानी रोकना पड़ता है. ताकि पूरा एरिया शुष्क हो जाए. पानी नहीं होने की वजह से पेड़ के पत्ते गिर जाते हैं और उनके लिए पतझड़ जैसा सीजन हो जाता है. इसके बाद मार्च के सीजन में फ्लॉवरिंग शुरू होती है. कुछ दिन बाद फल भी आ जाते है. इसके बाद ड्रिप तकनीकी या दूसरे तरीके से पानी पहुंचाया जाता है. जिससे फल बड़ा होने लगता है. उसके बाद अप्रैल से जून तक फसल ली जा सकती है. एसएल जांगिड़ का मानना है कि वर्तमान में अंबे बहार का परिस्थिति तंत्र थोड़ा बिगड़ गया है. इससे उत्पादन भी तटीय क्षेत्रों में ही ज्यादा होता है. जहां पर साइक्लोन की वजह से नींबू की फसल की फ्लावरिंग में दिक्कत आ गई थी और वह नष्ट हो गई थी. अब जो भी उत्पादन बचा है, उसमें फल आ गए हैं. फ्रूट्स अब बड़े होकर मार्केट में करीब 20 से 30 दिन के बीच में आएंगे.
राजस्थान में ज्यादा फोकस मृग बहार पर
जांगिड़ के अनुसार मृग बहार की फसल के लिए मई अंत और जून में बगीचे का पानी रोक दिया जाता है. इसमें जुलाई में फूल आना शुरू होता है. इसके बाद फल आते हैं. इसके बाद मानसून सक्रिय होने पर पानी खेतों में पहुंच जाता है .साथ ही ड्रिप तकनीक के जरिए पानी पहुंचाया जाता है. फल बड़ा होने लगता है. इसका उत्पादन अक्टूबर अंत से नवंबर व दिसंबर तक चलता है. राजस्थान में इस फसल पर ही ज्यादा ध्यान दिया जाता है. ज्यादा गर्मी होने के चलते मई-जून में पानी भी जमीन में नहीं रहता है. ऐसे में दोबारा जुलाई में फल और फूल आने लगते हैं.
पढ़ें.यहां नींबू हुआ घी के दाम के बराबर...400 रुपए किलो बिका, भाव सुन लोगों को लग रहा झटका
यह मौसम के अनुसार सतत प्रक्रिया है. ऐसे में इस फसल के लिए जुलाई के बाद सितंबर तक पर्याप्त पानी बारिश से मिल जाता है. साथ ही सर्दी के सीजन में तापमान भी नींबू के लिए जरूरी तापमान के आसपास ही प्रदेश में रहता है. जबकि हस्त बहार में अक्टूबर-नवंबर में पानी को खेत में रोका जाता है. उसके बाद में जनवरी-फरवरी में फूल और फल आने लगते हैं. बाद में मार्च और अप्रैल में उत्पादन हो जाता है. हस्त बहार पर ज्यादा किसान ध्यान नहीं देते हैं. क्योंकि मावठ के सीजन में सर्दी होने के चलते खेत को शुष्क रख पाना काफी मुश्किल है.