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SPECIAL: सारी दुनिया का बोझ उठाने वाले 'कुलियों' के सामने भूखे मरने की नौबत

देशभर में कोरोना वायरस के चलते लगाए गए लॉकडाउन की वजह से मजदूरों की रोजी-रोटी खतरे में हैं. इनमें रेलवे स्टेशनों पर काम करने वाले कुली भी शामिल हैं. रेलवे की भाषा में सहायक कहे जाने वाले इन 'कुलियों' के बिना रेलवे स्टेशन की कल्पना भी नहीं की जा सकती. लेकिन अब कोटा सहित देश भर के रेलवे स्टेशनों पर दिन-रात काम करने वाले इन कुलियों की आजीविका खतरे में पड़ गई है. अब जब ट्रेनें ही नहीं चल रहीं तो भला इनकी कमाई कैसे होगी?

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लॉकडाउन के बिगाड़ी कुलियों की आर्थिक स्थिति

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Published : May 13, 2020, 12:27 PM IST

कोटा.कोरोना संक्रमण रोकने के लिए रेल यातायात को बंद कर दिया गया. इसका असर रेलवे की आमदनी पर तो पड़ा ही है, लेकिन एक तबका ऐसा भी है. जिसका ट्रेन चलने से ही परिवार चलता है. यह तबका है कुलियों का. जो यात्रियों का सामान स्टेशन के बाहर से ट्रेनों तक पहुंचाते हैं. ट्रेन का सिग्नल हरा होने पर सामान लेकर प्लेटफार्म पर सरपट दौड़ने लगते हैं. प्लेटफार्म दर प्लेटफार्म यह यात्रियों का बोझा सिर पर ढोते हैं. लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही ट्रेनें भी बंद पड़ी हैं. ऐसे में ट्रेनों में लोगों का सामान चढ़ाने-उतारने वाले कुलियों के पास अब कमाई का कोई जरिया नहीं बचा है.

लॉकडाउन के बिगाड़ी कुलियों की आर्थिक स्थिति

पड़ोसियों से मांगकर खाया खाना

पड़ोसियों से पैसे मांग कर काम चलाना पड़ा, क्योंकि जेब में पैसे नहीं थे. बच्चों को खाना खिलाना भी जरूरी था. अब जब यह स्टूडेंट स्पेशल ट्रेन चली है, तो इससे कुछ पैसा मिल रहा है. जिससे हम कर्ज चुका पाएंगे. लेकिन जब फिर से ट्रेन चलना बंद हो जाएगी तो परिवार के लिए खाना कहां से लाएंगे. अपना दर्द साझा करते हुए ये बात कोटा स्टेशन पर स्पेशल ट्रेन में बच्चों का सामान लाने ले जाने का काम कर रहे कुली शरीफ खान ने कही.

सारी दुनिया का बोझ उठाने वाला दबा बोझ तले

बड़ा परिवार है कैसे चलाएं

कुली स्वरूप सिंह का कहना है कि पहले जब ट्रेनें चल रही थी कि तब 500 से 800 रुपए कमा लेते थे. वहीं जो जवान कुली हैं, वह थोड़ा सा ज्यादा पैसा कमा लेते थे. लेकिन 40 दिनों से ट्रेनें बंद रही. इसके चलते एक रुपए की भी आमदनी नहीं हुई.

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कुलियों की नहीं होती बचत की आदत

कुली वर्ग कभी भी बचत नहीं पाता है. जो कमाता है, वहीं खाता है. कुलियों का कहना है कि परिवार बड़ा है. इसके चलते जो कुछ बचा हुआ था, वह भी खत्म हो गया. अब 3 तारीख से यह ट्रेन चली है, इससे कुछ पैसा हमें मिल रहा है, जो राहत दे रहा है. हालांकि देशभर में अब गिनती की ही ट्रेनें नहीं चल रही है. इसके न जाने कितने कुलियों के घर के चूल्हे ठंठे पड़ गए हैं.

खाने के पड़े लाले तो पड़ोसियों से लिया उधार

नहीं मिली कोई सरकारी सहायता

कोटा स्टेशन के ही कुली जमील का कहना है कि उन्हें अब तक किसी तरह की कोई सरकारी सहायता भी नहीं मिली है. हालांकि एक बार स्टेशन प्रबंधन ने उन्हें बुलाया था और 10 किलो आटा और 1100 रुपए दिए थे. लेकिन उससे भी हम कब तक खा सकते हैं. जमील का कहना है कि सरकार को हम लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए, क्योंकि हम भी तो मजदूर वर्ग से ही आते हैं.

41 में से 10 कुली ही बचे

कोटा रेलवे जंक्शन पर 41 कुली रजिस्टर्ड हैं. जो यात्रियों के सामान को ट्रेनों तक पहुंचाने का काम करते हैं. लेकिन इनमें से लॉकडाउन के चलते भूखे मरने की नौबत आने पर 31 कुली अपने गांव को लौट गए. जबकि 10 कुली कोटा में ही थे, जो अब स्टूडेंट स्पेशल ट्रेनों में जा रहे छात्र-छात्राओं के सामानों को ट्रेनों तक पहुंचाने के काम में जुट गए हैं.

कोचिंग छात्र का सामान ढोता कुली

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गौरतलब है कि मजदूरों की तरह इन लोगों के लिए भी समस्या पूरे देश भर में खड़ी हो गई है. हालांकि कोटा में अधिकांश कुली अपने घरों को लौट गए, लेकिन जो कुली कोटा में है. उनको 3 मई से रोजगार जरूर मिल गया है, क्योंकि कोटा से स्टूडेंट स्पेशल ट्रेनें चल रही है. लेकिन कुलियों का कहना है कि अब उनका रोजगार संकट में ही रहेगा, क्योंकि इमरजेंसी में भी लोग यात्रा करने से घबराएंगे. यहां तक की कोरोना के डर से कोई भी उन्हें अपना सामान छूने देने से भी हिचकिचाएगा. अब ऐसे तमाम कुली सूने रेलवे स्टेशनों पर दोबारा सिग्नल के हरे होने, यानी ट्रेनों की आवाजाही शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं.

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