कोटा. नेशनल टेस्टिंग एजेंसी हर साल देश की सबसे बड़ी मेडिकल प्रवेश परीक्षा राष्ट्रीय सह-पात्रता परीक्षा (NEET UG 2022) का आयोजन करता है. लेकिन इस साल 17 जुलाई को हो रही यह प्रवेश परीक्षा कई मायनों में बीते सालों से अलग है. बीते सालों में जहां विद्यार्थियों का प्राइवेट मेडिकल सीट पर कम फोकस रहता था. लेकिन रशिया व यूक्रेन युद्ध के बाद यूक्रेन से वापस लौटे स्टूडेंट और भारत सरकार ने कई विदेशी यूनिवर्सिटी में प्रवेश पर पाबंदी लगाने के निर्देश जारी किए हैं. इसके चलते इस बार प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की सूची फुल होगी.
बीते साल जहां नीट यूजी 2021 में 108 नंबर यानी 15 फीसदी अंक लाने वाले विद्यार्थी (Russia Ukraine war impact on studies) को भी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज सीट मिल गई थी. वहीं इस बार ऐसा होना संभव नहीं लग रहा है. विदेशों में एमबीबीएस करने को लेकर इस बार स्टूडेंट ज्यादा रुचि नहीं दिखाएंगे. इसके चलते देश के ही प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में ज्यादा फीस देकर एडमिशन भी लेंगे. इसके चलते क्लोजिंग रैंक बीते साल से ऊपर रह सकती है.
एजुकेशन एक्सपर्ट देव शर्मा ने बताया कि रूस यूक्रेन युद्ध, चीन में कोविड 19 के कारण बनी आपात स्थितियां, आर्मीनिया व किर्गिस्तान के मेडिकल संस्थानों की मान्यता को लेकर उठे प्रश्न चिह्नों के कारण विदेशी मेडिकल संस्थानों से एमबीबीएस डिग्री के प्रति आम सोच में बदलाव आया है. रूस यूक्रेन युद्ध के मध्य गंभीर हालात से गुजरे व यूक्रेन से भारत वापस आए विद्यार्थियों की वर्तमान त्रिशंकु स्थिति को देखते हुए लाखों नीट परीक्षार्थियों ने विदेशी संस्थानों से एमबीबीएस डिग्री प्राप्त करने का विचार बदल दिया है. ऐसे में इस साल विद्यार्थी अच्छे अंकों के साथ नीट यूजी परीक्षा उत्तीर्ण करने में प्रयासरत हैं.
कम फीस के चलते विदेशों का रुखःदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में फीस काफी कम है. बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज में 2 लाथ से 3 लाख रुपये सालाना तक फीस है. राज्य सरकार के मेडिकल कॉलेज और देश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में औसत फीस डेढ़ लाख रुपए के आसपास ही है. जबकि डीम्ड यूनिवर्सिटी या प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में 7 से 8 लाख रुपए सालाना से फीस शुरू होती है. यह 25 से 30 लाख रुपए तक भी पहुंच रही है. उनका औसत करीब 15 लाख के आसपास है.
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नीट में सरकारी सीट नहीं ले पाने वाले अच्छी रैंक के स्टूडेंट्स भी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की फीस नहीं भर पाते हैं. ऐसे में यह स्टूडेंट अगली नीट यूजी की तैयारी शुरू कर देते हैं या फिर दूसरे कोर्सेज में एडमिशन ले लेते हैं. इन स्टूडेंट के प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की सीट छोड़ने पर निचली रैंक वाले स्टूडेंट्स को फायदा मिल जाता है.
595 रैंक वाले को मिली थी सरकारी सीटःभारत में वर्तमान में 612 एमबीबीएस के कॉलेज हैं. इनमें इनमें 92,827 सीट हैं. जिनमें 292 सरकारी और 320 डीम्ड यूनिवर्सिटी या प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं. सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में सीटों का अनुपात देखा जाए तो अभी भी 55 फीसदी यानी करीब 50,500 सीटें हैं. जबकि 45 फीसदी 41,000 सीटें सरकारी गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेजों के पास हैं.
वहीं NEET UG 2021 के रिजल्ट के बाद हुई मेडिकल काउंसलिंग कमेटी की स्टैटिक्स के अनुसार जनरल कैटेगरी रैंक 21,227 थी, जिसमें 595 नंबर नीट यूजी 2021 में स्टूडेंट्स के आए थे. ईडब्ल्यूएस कैटेगरी का 21,238 रैंक थी और ओबीसी में 21,188 थी. इनमें भी 595 नंबर ही थे. एससी कैटेगरी में एक लाख 9,310 रैंक पर 470 अंक आए थे. वहीं एसटी कैटेगरी में 1,30,823 रैंक पर 452 नंबर थे. इन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेज की सीट मिल गई थी. जबकि प्राइवेट कॉलेज में 9,22,000 अंक लाने वाले विद्यार्थी को भी सीट मिल रही थी.
प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में है 7500 करोड़ की सालाना अर्थव्यवस्थाः देव शर्मा ने बताया कि विदेशों में फीस कम होने पर विद्यार्थी NEET UG के आधार पर विदेशों में प्रवेश ले लेते थे. लेकिन अब भारत के ही यूनिवर्सिटी व मेडिकल संस्थानों में एडमिशन लेने के चांस बढ़ गए हैं. विदेश में जाकर एमबीबीएस करने के मामले में स्टूडेंट और माता पिता दोनों ही मानसिक तौर पर तैयार नहीं हैं. ऐसे में प्राइवेट जितने भी संस्थान हैं, उनमें एमबीबीएस की सीटें बेहतर तरीके से भर जाएगी. करीब 50 हजार 500 एमबीबीएस सीटें प्राइवेट संस्थानों में हैं. जिनमें औसत करीब 15 लाख सालाना की फीस है. ऐसे में यह 7500 करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था का मामला है. इसमें से करीब 30 से 40 फीसदी राशि विदेशों में चली जाती थी. यह राशि देश में ही रहती है, तो उन्नति के लिए भी अच्छी बात है.