कोटा. कोरोना मरीजों के लिए ऑक्सीजन संजीवनी है. इसकी आपूर्ति में मरीज के परिजन, अस्पताल का स्टाफ और जिला प्रशासन भी जुड़ा हुआ है, ताकि मरीजों को बिना रुकावट ऑक्सीजन मिलती रहे, इसकी कमी नहीं हो. लेकिन इस ऑक्सीजन सप्लाई के पीछे भी कई हीरो हैं, जो पर्दे के पीछे रहकर ही मरीजों तक इस ऑक्सीजन को पहुंचा रहे हैं. यह कार्मिक ऑक्सीजन प्लांट में 15 से 18 घंटे लगातार ड्यूटी कर रहे हैं, साथ ही केवल खाना खाने के लिए ही यह रुकते हैं या फिर जब समय पूरा हो जाता है, तब ही घर जाने के लिए उठते हैं.
कोरोना काल में पर्दे के पीछे के हीरो... नहीं जा पा रहे हैं घर पर...
प्लांट में लोडिंग-अनलोडिंग के काम में जुटे हुए कार्मिकों का कहना है कि वह एक गाड़ी को लोड करके भेजते हैं, तब तक दूसरी गाड़ी आकर खड़ी हो जाती है. पहले ऐसा नहीं होता था. पहले करीब 300 से 400 सिलेंडर की वह अपने 8 घंटे की नौकरी में भर पाते थे, लेकिन अब यह संख्या दोगुनी हो गई है. ऐसे में उन्हें बिना रुके हुए ही काम करना पड़ रहा है. डबल ड्यूटी करने के चलते उन्हें समय नहीं मिलता है. महज खाने के लिए प्लांट में छूट मिल पा रही है. अधिकांश बार तो केवल घर पर टिफिन लेने जाना हो रहा है. साथ ही रात को भी काफी देर हो जाती है.
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ऐसे में घर भी जाना अधिकांश बार नहीं हो रहा है. वह प्लांट में ही सो कर रात पूरी करते हैं और सुबह जल्दी उठकर दोबारा सिलेंडरों को लोडिंग-अनलोडिंग करने में जुट जाते हैं. कोविड-19 मरीज तक भी आ रहा है खतरा सभी पर प्लांट पर पुलिस बल के अलावा चिकित्सक और ड्रग कंट्रोल ऑफिसर भी तैनात किए गए हैं. साथ ही टीचर्स को भी लगाया हुआ है. यहां पर सिलेंडर रीफिलिंग करवाने के लिए कोविड पॉजिटिव मरीज भी पहुंच रहे हैं. यहां रीफिलिंग, लोडिंग व अनलोडिंग का काम करने वाले लोगों पर भी कोरोना का खतरा बना हुआ है. साथ ही घंटों तक कोविड पॉजिटिव और उनके परिजन भी प्लांट के अंदर-बाहर घूमते रहते हैं. यहां तक कि सिलेंडर की रीफिलिंग हो रही है, वहां भी वे सिलेंडर भरवाने के लिए पहुंच जाते हैं. उनके साथ ही बिलिंग भी होती है. उनसे ही कागज और राशि भी ली जा रही है.
सांसें बचाने की जद्दोजहद... लगातार करना पड़ रहा काम...
हाथों में छाले, दर्द करता है, पूरा शरीर प्लांट में सिलेंडर लोडिंग, अनलोडिंग, ऑक्सीजन रीफिलिंग करने का काम 24 घंटे ही जारी रहता है. यहां पर काम कर रहे कार्मिकों के हाथों में छाले हो गए हैं. यहां तक कि लगातार काम करने से उनके हाथ पैर के साथ शरीर भी दर्द करता हैं. इन लोगों का कहना है कि दर्द होता रहता है, लेकिन मरीजों की मदद के लिए और प्लांट में ड्यूटी होने के चलते वह काम करते हैं. अभी तो उन्हें डबल ड्यूटी भी करना जरूरी बना हुआ है. इनका कहना है कि डबल ड्यूटी करते समय प्लांट के अधिकारी उनका ध्यान भी रखते हैं और समय से उन्हें खाने-पीने को देते रहते हैं. जिससे कि वह काम लगातार करते रहे.
बिलिंग से लेकर ऑक्सीजन रिकॉर्ड रखना भी हुआ टेढ़ी खीर...
प्लांट में काम कर रहे ऑफिस के कार्मिकों का समय भी बढ़ गया है. बिलिंग करने वाला स्टॉफ भी लगातार घंटों बैठा रहता है और लगातार बिलिंग यहां पर होती है. क्योंकि मरीज के परिजन भी यहां पर पहुंच रहे हैं और लंबी कतारें उनकी लगी रहती हैं. पहले जहां पर वह 10 से 15 बिल ही रोज काटते थे, लेकिन अब 300 से ज्यादा बिल रोज काट रहे हैं. जिसके चलते उन्हें लंबे समय तक बैठना पड़ रहा है. यहां तक कि जो स्टाफ बैंक के काम को देखता है, उसका भी काम बढ़ गया है. साथ ही पूरे ऑक्सीजन का स्टॉक मेंटेन करना भी उनके लिए टेढ़ी खीर हुआ है.
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कोटा जिले में पांच ऑक्सीजन प्लांट के जरिए ऑक्सीजन सिलेंडरों की सप्लाई और कोटा शहर में दो कंपनियों के प्लांट ऑक्सीजन की सप्लाई करते हैं. इनमें एक कंपनी का प्लांट डीसीएम रोड पर स्थित है, जबकि दूसरी कंपनी के दो प्लांट कानपुर में हैं. वहीं, लिक्विड ऑक्सीजन भी दो सप्लायर देते हैं, जिनके दोनों ही प्लांट रायपुर में स्थित हैं. इसके अलावा एक फैक्ट्री भीमपुरा में स्थित है. वहां भी 125 सिलेंडर का उत्पादन अभी शुरू हुआ है. इन प्लांटों में करीब 140 से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं.
बिना रुके 15 से 18 घंटे काम... रोज करीब 6000 सिलेंडरों को हो रही लोडिंग, अनलोडिंग...
मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों से लेकर निजी अस्पतालों तक में भी इन प्लांटों से ही ऑक्सीजन की सप्लाई हो रही है. ऐसे में करीब 3000 सिलेंडरों की रोज खपत अस्पतालों में हो रही है. साथ ही करीब 200 से 300 सिलेंडर भी रोज लोग भरवा कर व्यक्तिगत लेकर जा रहे हैं, जो कि अपने मरीजों का उपचार घर पर ही कर रहे हैं. ऐसे में करीब 3000 सिलेंडरों को गाड़ी में लोड करना और उन्हें उतारने की जिम्मेदारी भी इन प्लांटों पर काम रह कर रहे कार्मिकों की ही है, जो कि पूरे जज्बे से अपने काम में जुटे हुए हैं.