जोधपुर.इंदिरा गांधी नहर और सरहिंद फीडर के बीच कॉमन बैंक (Indira Gandhi canal and Sirhind feeder common bank collapse) टूटने से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृह जिला जोधपुर जल संकट से जूझ रहा है. इसके साथ ही मारवाड़ के जैसलमेर, बाड़मेर में भी बरसों पहले जैसे हालात (Water Crisis in Marwar) बन गए हैं. कई इलाकों में तीन से चार दिनों में पानी की आपूर्ति हो रही है. इसके चलते दस नहरी जिलों के साथ-साथ मारवाड़ में हालात कठिन हो गए हैं. सर्वाधिक शहरी जनसंख्या जोधपुर में होने से यहां इसका असर ज्यादा नजर आ रहा है. हालात ये हैं कि जिला प्रशासन ने पानी की चोरी और दुरुपयोग रोकने के लिए रिजर्ववायर पर पहरा बैठा दिया है.
कमोबेश यही हालात जैसलमेर व बाड़मेर में बने हुए हैं. पाली को भी जोधपुर के हिस्से का पानी देने से परेशान बढ़ गई है. जोधपुर शहर के टेल एंड के रहवासी क्षेत्रों में लोग इस परेशानी से त्रस्त हैं. कई जगह प्रशासन को पानी के लिए टैंकर लगाने पड़ रहे हैं. इसके अलावा शहर से जुडे़ गांवों में भी हालात अच्छे नहीं है. जिला प्रशासन का कहना है कि पानी बर्बाद होने से बचाने के लिए तीन से चार दिन में एक बार इसका शिड्यूल जारी किया गया है. कुछ ऐसी ही हालात बीकानेर के हैं जहां तीन दिन में एक बार पानी दिया जा रहा है. जोधपुर के कई हिस्सों में लोग हैंडपंप का पानी पीने को मजबूर हैं क्योंकि टैंकर खरीद कर पानी भरना उनके बूते में नहीं रहा है. मीठे पानी का टैंकर दो हजार रुपए में नहीं मिल रहा है.
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नहर से पहले की स्थिति
जोधपुर में 1996 में नहर का पानी पहुंचा था. इससे पहले यहां पाली के जवांई बांध से पानी आता था. इसके अलावा आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों से पानी की आपूर्ति होती थी. 1996 से पहले गर्मी के दिनों में जलापूर्ति 4 से पांच दिन में एक बार होती थी. हालांकि उस समय शहर की आबादी भी कम थी. नहर का पानी आने के बाद जोधपुर में हर दिन आपूर्ति होने लगी. इसके बाद जब इसी नहर से ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति होने लगी तो जोधपुर शहर की जलापूर्ति में कमी होने लगी. विगत लंबे समय से एक दिन छोड़ कर पानी दिया जा रहा था. गत दिनों शुरू हुए क्लोजर के दौरान भी यह क्रम जारी रहा, लेकिन विभाग हर सात से दिन में एक दिन शटडाउन लेकर पानी बचा रहा था इसके चलते अब पीने योग्य पानी की मात्रा कायलाना व तख्त सागर में अब करीब 125 एमसीएफटी रह गई है.
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पाली को भी जोधपुर के हिस्से का पानी
किसी जमाने में पाली के जवांई बांध से जोधपुर तक पानी आता था लेकिन अब हर साल जवांई बांध में पानी की आवक कम होने लगी है. इसके चलते पाली जिले में जलसंकट बढ़ रहा है. खास तौर से पाली शहर के लिए पानी की परेशानी होने लगी है. पिछले माह से पाली में भीषण जलसंकट के चलते जोधपुर से ही रेल से पानी जा रहा है. प्रतिदिन 40 लाख लीटर पानी पाली में पहुंचाया जा रहा है. यह पानी भी जोधपुर शहर के हिस्से का पानी ही है. जोधपुर कलेक्टर हिमांशु गुप्ता का कहना है कि पाली के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी पानी भेजने के लिए जल की बचत जरूरी है. इस बार लगातार दूसरे साल ट्रेन चलानी पड़ी है.
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बुरे हालात से निपटने की तैयारी
जोधपुर प्रशासन का मानना है कि जब भी इंदिरा गांधी नहर से पानी छोड़ा जाएगा तो वहां से जोधपुर शहर तक करीब 800 कीमी की दूरी से पानी आने में आठ दिन लगेंगे. इसके बाद भी पानी को एकत्र करना पड़ेगा. दो दिन लगातार आवक के बाद ही नियमित आपूर्ति की तरफ बढ़ेंगे. कलेक्टर का कहना है कि हमारी उम्मीद अच्छा करने की है, लेकिन हम तैयारी सबसे बुरे हालात को लेकर कर रहे हैं. क्योंकि पानी छोड़ने के दौरान कहीं पर नहर टूट जाती है तो हमें बचे हुए पानी से ही काम चलाना पड़ता है. इसी हिसाब से हम दस दिन का पानी सहेज कर रखें हैं जिससे तीन से चार दिन के अंतराल में आपूर्ति की जा रही है.
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4 जून तक की गणित बनाई प्रशासन ने
जिला प्रशासन व जनस्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग ने मौजूदा स्थिति में चार जून तक का शिड्यूल जारी किया है. अगर इस दौरान पानी मिलने में और देरी होती है तो भी स्टोरेज से काम चलाया जाएगा लेकिन उस स्थिति में आपूर्ति में कटौती होना तय है. देरी होने पर वर्तमान में 125 एमसीएफटी पानी से बीस दिन तक काम चलाने का प्लान है. जोधपुर शहर को एक बार आपूर्ति में 14 से 15 एमसीएफटी पानी चाहिए होता है. इसमें कटौती कर पाली और अन्य जगह पर पानी भेजा जा रहा है. हालांकि यह भी बताया जा रहा है कि टूटे हुए कॉमन बैंक को दुरुस्त करने का काम लगभग अंतिम दौर में है 24 से 48 घंटे में पानी छोड़ने की तैयारी है.
क्लोजर से निजात की भी तैयारी
जोधपुर पीएचईडी के मुख्य अभियंता नीरज माथुर का कहना है कि हर वर्ष साठ से सत्तर दिन का क्लोजर नहर के रखरखाव के लिए होता है. इस दौरान नहर में पॉन्डिंग कर पानी जमा किया जाता है. अब इंदिरा गांधी नहर मुख्य कैनाल पर ही एक बड़ी डिग्गी बनाने की तैयारी चल रही है जिसमें क्लोजर के दौरान का पानी स्टोरेज हो जाए ताकि इस तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़े.