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कोटाः सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित तुहिन बना प्रेरणा का स्त्रोत, हाथ-पांव काम न करने के बावजूद जेईई-मेंस में हासिल की 438 रैंक

पश्चिम बंगाल का छात्र तुहिन डे सबके लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गया है. सेरेब्रल पाल्सी नाम की बीमारी से ग्रसित छात्र तुहिन ने कोटा में रहकर निजी इंस्टीट्यूट से तीन साल तक इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी की और जेईई-मेंस में 438 रैंक प्राप्त की. अब वह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग साइंस एंड टेक्नोलाॅजी (आईआईईएसटी) शिबपुर पश्चिम बंगाल से इनफोर्मेशन टेक्नोलाॅजी की पढ़ाई करेगा. तुहिन के संघर्षों की कहानी जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

Tuhin suffering from cerebral palsy disease
सेरेब्रल पाल्सी बीमारी से ग्रसित तुहिन

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Published : Nov 19, 2020, 8:09 PM IST

कोटा. कुछ कर दिखाने का हौसला हो तो हर बाधा अवसर में बदल जाती है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण बनकर सामने आए हैं सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित छात्र तुहिन डे. कोटा में रहकर निजी इंस्टीट्यूट से तीन साल तक इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने के बाद अब तुहिन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग, साइंस एंड टेक्नोलाॅजी (आईआईईएसटी) शिबपुर पश्चिम बंगाल से इनफोर्मेशन टेक्नोलाॅजी की पढ़ाई करेगा.

सेरीब्रल पाल्सी बीमारी से ग्रसित तुहिन

तुहीन ने जेईई-मेंस में कैटेगिरी रैंक 438 प्राप्त की है. सेरीब्रल पाल्सी तुहिन के शरीर में ऑर्थो ग्रिपोसिस मल्टीप्लेक्स काॅन्जीनेटा विकार है. जिसमें मांसपेशियां इतनी कमजोर होती हैं कि शरीर का भार नहीं उठा सकती. तुहिन न हाथ हिला सकता है और न अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है. सिर्फ गर्दन से ऊपर सिर का हिस्सा सक्रिय रहता है.

स्टीफन हाॅकिन्स मानता है आदर्शः

इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जेईई-एडवांस्ड की तैयारी करने अपने पैत्रिक नगर पश्चिम बंगाल के मिदनापुर से कोटा आए तुहिन ने शारीरिक विकारों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सामान्य विद्यार्थियों के साथ पढ़ाई की और सफलता हासिल की. ख्यातनाम भौतिक विज्ञानी स्टीफन हाॅकिन्स को आदर्श मानने वाला तुहिन उन्हीं की तरह एस्ट्रो फिजिक्स में शोध करना चाहते हैं. हाथ-पैर साथ नहीं देने के बावजूद तुहिन मुंह से मोबाइल और कम्प्यूटर ऑपरेट करते हैं. काॅपी में लिखते भी हैं. यही नहीं सामान्य विद्यार्थियों से ज्यादा बेहतर कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग के बारे में वे जानते हैं.

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तुहिन ने कहा कि कोटा में जो सोचकर आया था वो सबकुछ मिला, जितना सोचा था उससे भी ज्यादा सपोर्ट मुझे मिला. कोचिंग संस्थान ने पूरी तरह से ध्यान रखा. न केवल निशुल्क पढ़ाया, मुझे लाना-ले जाना, रहना और मेरी पढ़ाई से संबंधित हर बात का ध्यान निजी कोचिंग के निदेशक नवीन माहेश्वरी ने रखा. समय-समय पर काउंसलिंग होती रही. मेरे लिए सामान्य बच्चों के साथ क्लास में अलग से टेबल चेयर का प्रबंध करवाया, मुझे क्लास तक लाने और ले जाने के लिए हेल्पर भी रहते थे.

कोटा आने के पीछे तुहिन ने बताया कि उसने खुद इंटरनेट पर देश में बेस्ट इंजीनियरिंग कोचिंग के लिए कोटा का चयन किया. पहले कोटा और फिर यहां के इंस्टीट्यूट के बारे में इंटरनेट पर जानकारी ली और कोटा में कोचिंग में एडमिशन लेने का मन बनाया. इस बारे में अपने माता-पिता को बताया. तुहिन ने कहा कि यहां देश के बेहतरीन इंस्टीट्यूट हैं और अच्छे रिजल्ट आ रहे हैं. यहां के टीचर्स भी बेस्ट हैं.

न्यूरोपैथी से इलाज भी करवायाः

निजी इंस्टीट्यूट के सहयोग से तुहीन का इलाज भी करवाया गया. न्यूरोपैथी के जरिए मुंबई के विख्यात डाॅ. लाजपत राय मेहरा के मुम्बई स्थित सेंटर में इलाज करवाया. इसके बाद डाॅ. लाजपत राय मेहरा की ओर से प्रशिक्षित टीम के सदस्यों ने तुहिन को थैरेपी दी और परिजनों को थैरेपी देना सिखाया. तीन साल तक कोटा में रहने के दौरान इलाज के बाद अब थैरेपी परिजनों की ओर से जारी रखी जाएगी. इस थैरेपी के बाद तुहिन ने शरीर में बदलाव भी महसूस किया.

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आगे की पढ़ाई के लिए स्काॅलरशिपः

तुहिन कोटा से अपना सपना पूरा कर के जा रहा है. ऐसे में अब आगे की यात्रा में भी कोचिंग तुहिन का सहारा बनेगा. कोचिंग द्वारा उपलब्ध करवाई गई व्हील चेयर उसका सहारा बनेगी, ताकि आगे काॅलेज में आने-जाने में कोई समस्या नहीं हो. माता-पिता को भी परेशान नहीं होना पड़े. निजी कोचिंग ने तुहिन को तीन साल तक निशुल्क कोचिंग दी. यही नहीं तुहिन के संघर्ष और जज्बे को देखते हुए अब निजी कॅरियर इंस्टीट्यूट द्वारा गुदड़ी के लाल स्काॅलरशिप के तहत तुहिन को आगे की पढ़ाई के लिए आगामी चार सालों तक प्रतिमाह स्काॅलरशिप भी दी जाएगी.

दो बार नेशनल अवार्ड जीतेः

11 मार्च 1999 में जन्मे तुहिन ने कक्षा 9 तक आईआईटी खड़गपुर कैंपस स्थित सेंट्रल स्कूल में पढ़ाई की और एनटीएसई में भी स्काॅलर बना. सी, सी++, जावा, एचटीएमएल लैंग्वेज में प्रोग्रामिंग भी सीखा हुआ है. पश्चिम बंगाल राज्य सरकार ने कई पुरस्कार दिए. इसके अलावा मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से साल 2012 में बेस्ट क्रिएटिव चाइल्ड अवार्ड और 2013 में एक्सेप्शनल अचीवमेंट अवार्ड दिया गया. दोनों पुरस्कार राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने तुहिन को दिए.

इसके अलावा कोटा में शिक्षक दिवस के अवसर पर 2018 में आयोजित कार्यक्रम में शिक्षा-संघर्श और शौर्य के सम्मान के तहत केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने भी तुहिन को सम्मानित किया. इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी कोटा दौरे के दौरान तुहिन के हौसले को सराहा.

पिता समीरन डे प्रॉपर्टी एजेंट के रूप में छोटा सा व्यवसाय करते थे, पिछले कुछ सालों से तुहिन के साथ हैं, ऐसे व्यवसाय छूटा हुआ है. मां सुजाता डे गृहिणी हैं. पिता समीरन ने बताया कि तुहिन के इलाज में भी कोई कमी नहीं छोड़ी. कोलकाता और वैल्लूर में कई सालों तक इलाज करवाया. वर्तमान में कैलीपर्स बदलते हैं. अब तक 20 ऑपरेशन हो चुके हैं. हड्डियों को सीधा रखने के लिए प्लेट तक डाली गई.

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तुहिन की मां सुजाता ने बताया कि कोटा में जो साथ मिला उसे जीवनभर नहीं भूल सकेंगे. यदि हमें यहां इतना साथ नहीं मिलता तो शायद तुहिन का सपना पूरा नहीं होता. तुहिन को परीक्षा देने जाना हो या रोजाना इंस्टीट्यूट जाना हो हर जगह आने-जाने के लिए संस्थान ने गाड़ी और तुहिन को संभालने के लिए स्टाफ की व्यवस्था की.

तुहिन सभी के लिए प्रेरणा

तुहिन हम सबके लिए सीख है. उसका हौसला प्रेरणा देता है. ये बताता है कि कुछ भी असंभव नहीं है. इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने तक चार साल के लिए एलन स्काॅलरशिप देगा.

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