जोधपुर.खुद में अनुशासन हो तो जीवन में किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है. ऐसा ही कर दिखाया है जोधपुर के मोगड़ा ग्राम पंचायत के लोगों ने. इस गांव में कोरोना की जंग लगभग जीत ही ली है, लेकिन यह संभव होना इतना आसान नहीं था. कोरोना की दूसरी लहर के चलते भारत के ग्रामीण इलाकों में संक्रमण बहुत तेजी से फैला.
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अप्रैल के अंतिम सप्ताह में जब संक्रमण अपनी रफ्तार पकड़ रहा था तो उस समय जोधपुर के मोगड़ा ग्राम पंचायत जिसमे 4 गांव मोगड़ा कल्ला, मोगड़ा खुर्द, शेखा नाडा और श्री राजस्व नगर भी दूसरी लहर से अछूता नहीं रहा. इस 15 हजार की आबादी वाले ग्राम पंचायत में जब संक्रमण फैला तो 10 दिनों में ही 8 मृत्यु हो गई. जिसमे एक ही दिन में 3 मृत्यु हो गई. इसके चलते गांव में डर का माहौल बन गया. लगभग हर परिवार के किसी ना किसी सदस्य को बुखार, सर्दी, जुखाम जैसी बीमारियों ने घेर लिया.
जब कोरोना संक्रमण गांव में बढ़ा तो चिकित्सा की प्राथमिक सुविधा का अभाव भी ग्रामीणों को महसूस होने लगा. मोगड़ा ग्राम पंचायत के 4 गांव के बीच सिर्फ एक स्वास्थ्यय केंद्र हैं. जिसमें एक एएनएम नियुक्त है. उसकी भी फील्ड में ड्यूटी होने के कारण उप स्वास्थ्य केंद्र पर अधिकतर समय ताला लगा रहता है. पूर्ण रूप से चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण कोरोना के लक्षण दिखाई देने पर कोरोना जांच के लिए तक दूसरे ग्राम पंचायत के गांव सालावास जो कि 10 किलोमीटर दूर है जाना पड़ता है. 15 हजार की आबाादी वाले इस गांव में ना तो बेड की व्यवस्था है ना ऑक्सीजन ना ही एंबुलेंस.
ऐसे में जब कोरोना संक्रमण से लोग गंभीर रूप से ग्रसित होने लगे और ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ी तो यह सुविधा जुटाने में ग्रामीण नाकामयाब रहे. गांव के सरपंच का कहना है की हमने 1 लाख रुपए तक देकर ऑक्सीजन की व्यवस्था करने का प्रयास किया पर हम ऑक्सीजन का एक सिलेंडर भी नहीं जुटा पाए. इस कारण गांव के कई युवाओं को भी हमने खो दिया. इस गांव को जोधपुर का मुख्य विश्वविद्यालय जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय द्वारा स्मार्ट विलेज स्कीम के तहत गोद भी ले रखा है.
ग्रामीणों की माने तो इस स्कीम में विकास कार्यों के नाम पर विश्वविद्यालय द्वारा सिर्फ गांव में पौधारोपण ही हुआ है. ऐसे में मजबूर होकर ग्रामीणों ने आत्मनिर्भर बनने की राह पकड़ी. जो कार्य और सुविधाएं सरकार प्रशासन को करनी चाहिए थी वे हम खुद जुटाने में लग गए, लेकिन इस आत्मनिर्भर के अनूठे प्रयोग ने मिशाल कायम कर दी है. आज गांव के सरपंच और ग्रामीणों के प्रयास से यह ग्राम पंचायत कोरो ना को हराने में कामयाब रहा है. पिछले 10 दिनों में एक भी नया संक्रमित नहीं मिला है. यह सब संभव हो पाया इस ग्राम पंचायत के सरपंच और युवा साथियों कड़ी मेहनत और जन सहयोग से. ग्रामीणों को सरकारी अमले में सिर्फ ग्रामीण विकास अधिकारी आशा सहयोगिनी का ही सहयोग मिला है.
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गांव वालो का स्व लॉकडाउन:
भयावह स्तिथि को देखते हुए गांव के सरपंच और ग्रामीणों ने पहल की ओर आगे आए , पंचायत स्तर पर बैठक ली और पूरे ग्रामपंचायत में लॉकडाउन लगवाने का फैसला लिया. यह फैसला उन्होंने 10 मई को लिया और 11 मई को लॉकडाउन लगाया गया. इसमें मोगाड़ा ग्राम पंचायत (4 गांव) जो कि 12 से 15 किमी तक फैला है. पूरी तरह से सील किया गया. आने जाने का सिर्फ एक मार्ग ही रखा गया बाकी रास्तों पर बेरिकेडिंग और जहां बेरिकेटिंग नहीं हो सकती थी वहां जेसीबी से गड् खोद कर रास्ते बन्द किए गए.
बनाई ' वॉरियर 25' युवाओं की टीमः
गांव में युवाओं की एक टीम बनाई गई. जिसे वॉरियर 25 कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. जिनके आईडी भी बनाई गई. जिन्हे अलग-अलग 5 ग्रुपों में विभाजित किया गया. जो कि अलग-अलग शिफ्ट में गांव के एक मात्र प्रवेश द्वार पर अपनी ड्यूटी देते हैं हर आने जाने वाली की एंट्री रजिस्टर कि जाती है. टेंप्रेचर चैक किया जाता है और सैनीटाइज करवा कर ही गांव में प्रवेश दिया जाता है. गांव में किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित कर रखा है. बहुत आवश्यक कार्य होने पर ही गांव के व्यक्ति को बाहर जाने की अनुमति दी जाती है.
जारी किए ग्रामीण स्तर पर हेल्प लाइन नंबर
गांव के सरपंच के द्वारा हेल्प लाइन नंबर जारी कर रखे है और एक कंट्रोल रूम भी स्थापित किया गया है. हेल्प लाइन नंबर में एक कंट्रोल रूम के नंबर है. सरपंच और स्वास्थ्य केंद्र के नंबर है. जो कि 24 घंटे अवेलेबल रहते हैं. ग्रामीणों को ना सिर्फ स्वास्थ्य बल्कि किसी भी तरह की समस्या आने पर इस पर कॉल करते ही मदद पहुंचाई जाती है.
स्थापित किया वेलनेस सेंटरः
गांव के ही विद्यालय में ग्रामीणों ने एक वेलनेस सेंटर स्थापित किया है. जिसमें बेड कि व्यवस्था भी ग्रामीणों ने ही कि है. एक कंस्ट्रेटर मशीन भी अपने स्तर पर अरेंज की है. गांव से बड़ा अस्पताल दूर होने कारण इमरजेंसी कि स्थिति होने पर इस वेलनेस सेंटर पर ही मेडिकल सुविधाओं को जुटाई गई है. जिससे तुरन्त प्राथमिक चिकित्सा सुविधा दी जा सके. ग्रामीणों ने कंस्ट्रेटर मशीन तो जुटा ली पर गांव में डॉक्टर ना होने के कारण इसको ऑपरेट करने के लिए इन युवाओं को यू ट्यूब और टेलीफोनिक का ही सहारा है. जो कि एक बहुत बड़ा रिस्क है, लेकिन इसमें भी उन्हें आत्मनिर्भर बनने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.