जोधपुर.देश को आजादी असंख्य लोगों के बलिदान से मिली थी लेकिन इनमे कई नाम गुमनाम ही रह गए. इनके संघर्ष और त्याग के बारे में बहुत से लोग जान ही नहीं सके. राजस्थान में भी ऐसे कई आंदोलनकारी थे जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. आजादी के दीवानों में से एक जोधपुर के बाल मुकंद बिस्सा (Jodhpur freedom Fighter) भी हैं जिन्होंने अंग्रेजों व तत्कालीन सरकार के अत्याचार सहते हुए देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. बिस्सा परिवार का कलकत्ता में रेशमी वस्त्रों का बड़ा व्यापार था. वे मूलत नागौर जिले के डीडवाना के रहने वाले थे.
जोधपुर में आकर उन्होंने व्यापार शुरू किया लेकिन उनपर गांधी जी के स्वदेशी आंदोलन का इतना प्रभाव पड़ा कि उन्होंने अपनी दुकान के कपड़ों की होली जलाई. और तो और पत्नी के रेशमी वस्त्रों को भी उन्होंने जला दिया और फिर खादी धारण कर लिया. इतना ही नहीं वह खादी बेचने के लिए खुद ठेला लेकर घूमते थे. इसके साथ ही बिस्सा आजादी के आंदोलन में कूद पडे़. पूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मारवाड़ में उत्तरदायी शासन की मांग को लेकर लगातार आंदोलन किए. 1940 में मारवाड़ में आततायी शासन को लेकर आंदेालन तेज हो गए थे. जयनारायण व्यास मथुरादास माथुर जैसे नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे. बालमुकंद बिस्सा को जेल से बाहर आंदोलन चलाने की जिम्मेदारी दी गई जिसके चलते उनको भी गिरफ्तार किया गया. तीन माह तक जेल में रखने के बाद सरकार से समझौते के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.
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बिस्सा ने जेल में किया आमरण अनशन, लाठियां मिलीं
1942 की शुरुआत से ही देश में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के प्रयास तेज हो गए थे. गांधी ने बडे़ आंदोलन के लिए रूपरेखा तैयार करनी शुरू कर दी थी. अगस्त में कांग्रेस के अधिवेशन से पहले ही इस पर चर्चा होनी शुरू हो गई, लेकिन मारवाड़ में मई 1942 में आंदोलन का बिगुल बज गया. जयनारायण व्यास सहित कई लोग गिरफ्तार हो चुके थे. अत्याचार के विरोध में बिस्सा ने जेल के बाहर अनशन शुरू कर दिया. इसपर उन्हें भी जेल में डाल दिया गया. जेल में भी आंदोलन हुआ. बंदियों ने सरकार से मांग रखी कि उन्हें कोठरी के बजाय खुले में रखा जाए. इसको लेकर बिस्सा अनशन करने लगे जिसे दबाने के लिए बंदियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया. करीब दस दिन से भूखे बिस्सा उनके निशाने पर थे. उन्हें लाठियां मारी गईं जिससे सिर में गहरी चोटें आईं, लेकिन समय से अस्पताल तक नहीं ले जाया गया. बाद में हालत खराब होने पर जब अस्पताल ले गए तब तक उनकी मृत्यु हो गई.
बिस्सा की शवयात्रा में जमकर हुआ हंगामा, जुटी थी हजारों की भीड़
बालमुकंद बिस्सा का शव तत्कालीन विंडम अस्पताल जो अब महात्मा गांधी अस्पताल है, वहां रखा गया था. जनता को इसकी जानकारी मिलते ही लोग एकत्र होने लगे. शवयात्रा निकलाने की तैयारी की जानकारी सरकार को लगी तो जोधपुर में आने के सभी रास्ते बंद कर दिए गए. इससे लोग और ज्यादा क्रोधित हो गए. सरकार ने आदेश दिया कि शहर की बजाय बाहर के रास्ते से चांदपोल श्मशान तक शव ले जाना होगा. नाराज लोगों ने तोड़फोड़ करना शुरू कर दी. सोजती गेट जलाने के प्रयास हुए. पुलिस ने लाठी चार्ज और फायरिंग भी की लेकिन लोग जुटे रहे. बुजुर्गों की समझाइश पर गतिरोध खत्म हुआ तब कहीं जाकर अंतिम संस्कार हुआ. कहा जाता है कि बिस्सा की अंतिम यात्रा में जो भीड़ जुटी थी वह अकल्पनीय थी.