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जिसकी तलवार के सामने नहीं टिक सकीं थीं तोप-मशीनगनें, ऐसे थे 'हाइफा हीरो' मेजर दलपत सिंह

इजरायल में हर साल 23 सितंबर को हाइफा हीरो दिवस मनाया (Haifa Hero Major Dalpat Singh Shekhawat) जाता है. आज ही के दिन इजरायल के शहर हाइफा को जर्मनी और तुर्की से आजादी मिली थी. ये आजादी जोधपुर के वीर ने तलवारों और भालों के दम पर दिलवाई थी. पढ़िए हाइफा हीरो के नाम से जाने वाले मेजर दलपत सिंह की कहानी...

Haifa Hero Major Dalpat Singh Shekhawat
मेजर दलपत सिंह हाइफा हीरो

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Published : Sep 23, 2022, 6:24 AM IST

जोधपुर.भारत और इजरायल के रिश्ते आज से नहीं बल्कि बरसों से घनिष्ठ रहे हैं. चीन के साथ युद्ध में इजरायल ने ही भारत की मदद की थी. दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्तों की एक वजह जोधपुर से जुड़ी है. जोधपुर के वीर मेजर दलपत सिंह ने तलवारों और भालों के दम पर इजरायल के शहर 'हाइफा' को तुर्की और जर्मन से आजादी दिलवाई थी. जिसके बाद मेजर दलपत सिंह को 'हाइफा हीरो' का नाम (Story of Haifa Hero) दिया गया.

प्रथम विश्वयुद्ध 1914-18 के दौरान इजरायल के शहर 'हाइफा' को धुरी राष्ट्र तुर्की और जर्मन सेना ने अपने कब्जे में ले लिया था. इस शहर को जोधपुर लांसर के मेजर दलपत सिंह की पलटन ने तलवारों और भालों के दम पर शहर को आजादी दिलवाई थी. जिसके चलते मेजर को 'हाइफा हीरो' की का नाम दिया गया है. इजरायल में 23 सितंबर को 'हाइफा हीरो दिवस' भी मनाया (Haifa Hero Day) जाता है. शहर के हाइफा चौक में एक शिलालेख भी लगा है.

ऐसे मेजर दलपत सिंह शेखावत कहलाए 'हाइफा हीरो'

तलवार-भाले से किया बंदूक, तोप का मुकाबला:दरअसल बंदरगाह होने से ब्रिटेन के लिए हाइफा बहुत महत्वपूर्ण (Battle of Haifa) शहर था. जिसपर तुर्की और जर्मन सेना ने कब्जा कर लिया था. ब्रिटिश राज के आदेश पर जोधपुर लांसर सैन्य टूकड़ी जो विश्वयुद्ध में लड़ रही थी, उसे हाइफा को आजाद करवाने का आदेश मिला. इस दल का नेतृत्व मेजर दलपत सिंह कर रहे थे. उनके पास हथियारों में तलवार और भाले ज्यादा थे. इनके बूते उन्होंने तुर्की और जर्मन सेना से लोहा लेने की ठानी.

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मेजर दलपत सिंह के नेतृत्व में पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू हुई. लेकिन लगातार गोलीबारी के चलते सफल (Haifa Hero Major Dalpat Singh Shekhawat) नहीं हुए. इसके बाद उन्होंने रास्ता बदलकर पहाड़ के पीछे से चढ़ना शुरू किया. जर्मन और तुर्की सैनिक इस बात से बेखबर थे. इसके बाद मेजर के नेतृत्व में लड़ाई हुई. मशीनों के सामने तलवारें चलीं. 23 सितंबर 1918 के दिन कुछ घंटों में ही मेजर दलपत सिंह की पलटन ने ऑटोमन सेना को घुटनों पर ला दिया था. लेकिन इस युद्ध में खुद दलपत सिंह घायल हो गए थे. पलटन हाइफा जीत तो गई पर मेजर शहीद हो गए. इस युद्ध में कुल आठ भारतीय सैनिक शहीद हुए थे.

सेना के साथ मेजर

इजरायल में हर वर्ष दिया जाता है सम्मान :इस युद्ध में भारतीय सैनिकों की संख्या काफी कम थी. लेकिन अपनी बहादुरी और सही नेतृतव के बल पर उन्होंने हाइफा पर कब्जा वापस जमा लिया. इस युद्ध में उन्होंने 1350 जर्मन व तुर्क सैनिकों को बंदी बना लिया. इसमें 35 अधिकारी भी शामिल थे. बड़ी संख्या में हथियार भी एकत्र किए गए. 23 सितंबर को इजरायल के हाइफा में इस दिन भारतीय सैनिकों को सम्मान (Major Dalpat Singh Sacrifice Day) दिया जाता है. महज 26 वर्ष की उम्र में शहीद हुए मेजर दलपत सिंह के प्रति आज भी वहां के लोग कृतज्ञता रखते हैं. दिल्ली के त्रिमूर्ति भवन के सामने लगी एक मूर्ति मेजर दलपत सिंह की है. इसके अलावा लंदन की रॉयल गैलेरी में भी उनकी मूर्ति लगी हुई है.

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हाइफा हीरो को मिला मिलिट्री क्रॉस सम्मान :मेजर दलपत सिंह शेखावत का जन्म 26 जनवरी 1892 (Who was Haifa Hero) को देवली हाउस, जोधपुर की वर्तमान एमबीएम इंजीनियरिंग विश्विविद्यालय परिसर में हुआ था. मेजर दलपत सिंह शेखावत रावना राजपूत समाज से आते हैं. उनके पिता सेना में थे और पोलो के जाने माने खिलाड़ी थे. दलपत सिंह की उच्च शिक्षा इस्टबर्न कॉलेज इंग्लैंड में हुई. 18 वर्ष की आयु में पिता कर्नल हरिसिंह की तरह वे भी सेना में भर्ती हो गए. उनकी नियुक्ति जोधपुर लांसर में हुई थी. हाइफा की लड़ाई से पहले मेजर ने 4 अगस्त 1914 को फ्रांस के विरुद्ध भी लड़ाई में भाग लिया था. हाइफा युद्ध के लिए उन्हें ब्रिटेन ने मरणोपरांत मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया था.

पाठ्यक्रम में शामिल की गई थी शौर्य की गाथा : समाज के प्रदेश मंत्री दुर्गासिंह चौहान का कहना है कि इजराइल में हाइफा हीरो को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. लेकिन अपने देश में ऐसा नहीं हुआ. राजस्थान में एक बार उनकी गाथा शामिल की गई थी. जिसे बाद में हटा दिया गया था. उनका कहना है कि हमारे बच्चों को हमारे शूरवीरों की शौर्य गाथा से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.

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