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शहीद भगत सिंह के भतीजे ने किया माचिया किले का अवलोकन...बोले- यह शहीदों का तपस्या स्थल, इस विकसित करना चाहिए - etv bharat Rajasthan news

शहीद भगत सिंह के भतीजे प्रो. जगमोहन सिंह ने गुरुवार को जोधपुर में माचिया किले (Machia Fort in Jodhpur) का अवलोकन किया. इस दौरान उन्होंने देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले सेनानियों को याद करते हुए किले को हिस्टोरिकल साइट के रूप में विकसित करने की बात कही.

Shaheed Bhagat Singh nephew visited Machia Fort
शहीद भगत सिंह के भतीजे ने किया माचिया किले का अवलोकन

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Published : Apr 14, 2022, 7:32 PM IST

Updated : Apr 14, 2022, 8:41 PM IST

जोधपुर. शहीद भगत सिंह के भतीजे प्रो. जगमोहन सिंह ने कहा कि जिन स्थानों पर आजादी के लिए लोगों ने तपस्या की थी, वह तपोवन है. इन जगहों को विकसित करना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी को उनके बारे में पता चल सके. प्रो. जगमोहन सिंह ने गुरुवार को जोधपुर में माचिया बायोलॉजिकल पार्क स्थित माचिया किला (Shaheed Bhagat Singh nephew visited Machia Fort) का अवलोकन करने के दौरान यह बात कही. उन्होंने कहा कि यह देश की विरासत है और इसे हिस्टोरिकल साइट के रूप में विकसित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यहां भी लोगों ने संघर्ष किया था. उनकी तपस्या को लोग याद रखें इसके लिए माचिया किले (Machia Fort in Jodhpur) को विकसित करने का काम सरकार को करना चाहिए.

साल में सिर्फ दो बार लोगो को आने की अनुमति
आध्यात्मिक क्षेत्र पर्यावरण संस्थान समिति के अध्यक्ष रामजी व्यास इस किले को स्मारक बनवाने के लिए प्रयासरत हैं. वर्तमान में यह किला वन विभाग के अधीन है. 15 अगस्त और 26 जनवरी को यहां झंडारोहण के लिए अनुमति मिलती है. इस किले में लगी 32 में से 30 स्वतंत्रता सैनानियों की तस्वीरें इन्होंने ही जगह-जगह से एकत्र कर लगाई हैं. अब राज्य सरकार ने भी माचिया किले को विकसित करने की घोषणा कर दी है. इसके लिए जेडीए ने कार्यों की रूपरखा बनाई है लेकिन वन विभाग के नियम उसमें बाधा बने हुए हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि बायोलॉजिकल पार्क के बीच में होने से यहां लोगों की अनवरत आवाजाही नहीं हो सकती.

शहीद भगत सिंह के भतीजे ने किया माचिया किले का अवलोकन

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32 जनों को दी गईं यातनाएं
1942 में देश में शुरू हुए भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मारवाड़ के विभिन्न कस्बों में अंग्रेजों की खिलाफत कर रहे 32 जनों को माचिया किले में लाकर नजरबंद किया गया था. करीब एक साल तक उन्हें यहां यातनाएं दी गईं. खराब खाना देने के विरोध में सभी सेनानियों ने सात दिनों तक भूख हड़ताल भी की थी. 1943 में भारी बारिश के कारण मचिया किले की दीवार ढहने के बाद यहां बंद सभी कैदियों को बिजोलाई महल ले जाया गया था. आध्यात्मिक क्षेत्र पर्यावरण संस्थान समिति के अध्यक्ष रामजी व्यास और स्वतन्त्रता सेनानी जोरवारमल बोड़ा के परिजनों ने अपने प्रयासों से यहां स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं. उन्होंने यहां 32 में से 30 सैनानियों की तस्वीरें एकत्र कर लगाई हैं. उनका कहना है कि इसे पर्यटन स्थल और स्मारक के रूप में विकसित किया जा सकता है.

Last Updated : Apr 14, 2022, 8:41 PM IST

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