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चांदी पर मंदी का असर : हर दिन बदलते भाव का असर चांदी के सिक्कों पर..मांग कम होने से टकसाल 'ठंडी' - jodhpur diwali news

जोधपुर में पुष्य नक्षत्र के दिन भी चांदी के सिक्कों की ज्यादा बिक्री नहीं हुई. सराफा बाजार के पुराने व्यापारी रूपनारायण सोनी का कहना है कि इस बार तो पिछले साल से भी बुरी स्थिति है. सराफा बाजार कोमा में चला गया है.

चांदी पर मंदी का असर
चांदी पर मंदी का असर

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Published : Oct 29, 2021, 7:36 PM IST

Updated : Oct 29, 2021, 10:09 PM IST

जोधपुर. कोरोना काल की दूसरी दिवाली पर भी मंदी का साया है. दिवाली पर आमतौर पर घर-घर में चांदी के सिक्के खरीदे जाते हैं. लेकिन बाजार में रूझान कम होने से इस बार टकसाल में चांदी के सिक्कों की गढ़ाई आधी रह गई है.

आलम ये है कि शहर की सबसे पुरानी सिक्के बनाने की टकसाल में जहां रोजाना 200 किलो चांदी गलाई जाती थी, वहीं इस बार यह आंकड़ा 50 किलो तक रह गया है. जानकार कहते हैं कि कोरोना के कारण बाजार में अब तक मंदी का असर है. इसके अलावा चांदी के भाव भी बहुत तेजी से हर दिन बदल रहे हैं.

जोधपुर में चांदी के सिक्कों की बिक्री मंद

बीते साल चांदी के भाव 47 से 48 हजार रुपये किलो थे, वर्तमान में चांदी का भाव 67 हजार रुपये प्रतिकिलो के आसपास है. हर दिन भाव में उतार चढ़ाव देखा जा रहा है. इसके चलते व्यापारी स्टॉक भी नहीं रख पा रहे हैं. स्थिति ऐसी है कि छोटे व्यापारी जो हर वर्ष 2 से 3 किलो के सिक्के बेचते थे वे 800 ग्राम तक आ गए हैं. उनका कहना है कि भाव में उतार चढ़ाव से नुकसान की आशंका ज्यादा है. कोरोना काल में लगी सभी बंदिशें हटा ली गई हैं लेकिन इसके बावजूद सर्राफा बाजार में तेजी नजर नहीं आ रही है.

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कम हो गया काम

जोधपुर में चांदी के सिक्के बनाने वाले कमल सोनी का कहना है कि बाजार में डिमांड कम होने से टकसाल में काम हो कम हो गया है. ज्यादातर व्यापारी अपनी पुरानी चांदी के सिक्के बनवा रहे हैं. ताकि नुकसान की गुंजाइश कम हो. इस वजह से सराफा बाजार की हालत खराब हो गई है. पुष्य नक्षत्र के दिन भी यहां ज्यादा बिक्री नहीं हुई. सराफा बाजार के पुराने व्यापारी रूपनारायण सोनी का कहना है कि इस बार गत वर्ष से भी बुरी स्थिति है. सराफा बाजार कोमा में चला गया है.

चांदी के त्रिमूर्ति सिक्के

त्रिमूर्ति सिक्का है जोधपुर की पहचान

देश में अन्य जगह पर दिवाली के अवसर पर बनने वाले चांदी के सिक्कों में लक्ष्मी और भगवान गणेश की तस्वीर होती हैं. लेकिन जोधपुर के चित्रों में ज्ञान की देवी सरस्वती को भी शामिल किया गया है. यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है. इसलिए जोधपुर के सिक्कों को त्रिमूर्ति सिक्का भी कहा जाता है.

पूरे मारवाड़ में जाते हैं सिक्के

भीतरी शहर में टकसाल चलाने वाले कमल सोनी बताते हैं कि यह उनकी पुश्तैनी टकसाल है जो 50 साल से चल रही है. जोधपुर की सर्राफा एसोसिएशन यहां बनने वाले सिक्कों की 99 प्रतिशत शुद्धता की गारंटी देता है. जिसके चलते पूरे मारवाड़ में लोग जोधपुर से सिक्के लेकर जाते हैं और बेचते हैं. हालांकि समय के साथ यह कम भी हुआ है.

टकसाल में कम बन रहे सिक्के

इसके अलावा जोधपुर के वे लोग जो बाहर के राज्यों में नौकरी या व्यापार करते हैं, वे यहां से सिक्के लेकर जाते हैं. इसके अलावा बाहरी राज्यों में रहने वाले जोधपुर के ज्वैलर यहां से सिक्के बनवाकर ले जाते हैं. इनमे ज्यादातर चेन्नई, सूरत, हैदराबाद में रहने वाले मारवाड़ी होते हैं. लेकिन बीते समय से इनकी संख्या कम हो गई है.

Last Updated : Oct 29, 2021, 10:09 PM IST

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