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Special : कारीगरों की बेजोड़ कारीगरी से राजस्थानी कशीदाकारी को मिली विदेशों में पहचान

राजस्थानी कशीदाकारी विदेशों में राजस्थान कला के रंग जमा रहा है. यहां के स्थानीय कारीगर के बेजोड़ हुनर का नतीजा है कि बर्लिन, जर्मनी सहित कई देशों में यहां की कशीदाकारी से बने उत्पादों की भारी मांग है. यहां की हुनर को विदेशों तक पहुंचाने का श्रेय नंदा बोहरा को जाता है, जिन्होंने ना सिर्फ इस कला को पहचान दिलाई बल्कि कशीदा करने वाली महिलाओं को आत्मनिर्भर भी बनाया.

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राजस्थानी काशीदाकारी की विदेशों में भारी डिमांड

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Published : Oct 7, 2021, 9:46 PM IST

Updated : Oct 7, 2021, 10:46 PM IST

जोधपुर.राजस्थान अपने पर्यटन के लिए देश-विदेश में बखूबी जाना जाता है. इसके साथ ही अब राजस्थानी कशीदाकारी भी धीरे-धीरे अपनी पहचान बना रही है. ये कारीगरों की उम्दा हुनर और काबिलियत का ही नतीजा है कि राजस्थानी कशीदाकारी से जुड़े उत्पादों की विदेशों में भारी मांग है. वहीं उनकी हुनर को जोधपुर की नंदा बोहरा पंख दे रही हैं.

राजस्थानी कशीदाकारी (Rajasthani embroidered) को क्षेत्रीय भाषा में तारातारी के नाम से भी जाना जाता है. जब ये आर्ट विदेशों तक पहुंचा तो इसे राजस्थानी एशियन आर्ट (Rajasthani Asian Art) से पहचान मिली. इस आर्ट को जोधपुर की नंदा बोहरा नई उंचाइयां प्रदान कर रही हैं. लंबे समय से इस काम में जुटी नंदा ने अपना एक स्वयंसेवी सहायता समूह बनाकर न केवल इस हुनर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी है बल्कि उन्होंने महिलाओं को रोजगार भी प्रदान किया है.

राजस्थानी कशीदाकारी की विदेशों में भारी डिमांड

देवीफेयर के नाम चल रहे इस समूह के उत्पाद जर्मनी सहित अन्य देशों में एक्सपोर्ट किए जा रहे हैं. नंदा बोहरा कहती हैं कि राजस्थानी एशियन आर्ट हमारे यहां के महिलाओं के हाथ का हुनर है. हमने इसे निखारा है. जिसके चलते राजस्थानी यह कला को विदेशों तक पहुंच रही है. नंदा बोहरा के प्रयास ने कला के माध्यम से आज कई महिलाओं को आत्मनिर्भर बना दिया है.

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जैसमलेर की नंदा बोहरा इस काम से बीस साल से जुड़ी हैं. उनके पिता भी यही काम करते थे. वह जोधपुर आई तो भी इस काम को करती रही. पहले सीमित क्षेत्र तक काम था लेकिन जब जर्मनी की महिला मित्र ने उसकी कला को पहचाना और हाथ थामा तो उसे पहचान मिल गई.

पूरा आर्ट वर्क हाथ से होता है

नंदा बोहरा बताती है कि यह राजस्थानी आर्ट पूरा हाथ का काम होता है. इसमें मशीन का इस्तेमाल नहीं होता है. महीन कशीदाकारी सुई धागे की मदद से होती है. वे अलग अलग डिजाइन तय कर काम महिलाओं को देती हैं, जो इसे अलग अलग चरणों में पूरा करती है. उनके समूह की महिलाओं में पाक विस्थापित महिलाएं भी हैं. जो पाकिस्तानी कशीदाकारी भी करती हैं.

राजस्थानी कशीदाकारी

एक-एक उत्पाद को तैयार करने में 7 से 15 दिन लग जाते हैं. वह बताती है कि यह एक अलग तरह का आर्ट है. जिसके लिए एक खास तरह के हुनर होने की आवश्यकता है. यह हमारे यहां की परंपरागत आर्ट है. जिसमें मंडला (Mandala art), चोकड़ा और कच्छी जैसी डिजाइन देख कर इसे आकर्षक बनाया जाता है. इसमें वास्तुकला को जोड़कर तोरण भी बनाए जाते हैं. जिसमें कांच का उपयोग होता है.

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नंदा कहती हैं कि हमारा प्रयास होता है कि रंगों के माध्यम से सकारात्मकता दशाई जाए. विदेशों की ऐसी कई संस्थाएं हैं, जो इसमें हमारी मदद करती है. विदेशों में इसकी बहुत डिमांड है. हाल ही में 2000 योगा मैट के आर्डर भी हमने बर्लिन एक्सपोर्ट किए हैं.

धागे की रंगाई भी खुद करते हैं

नंदा बोहरा बताती हैं कि यह इतनी कलरफुल आर्ट है. इसके लिए धागे जुटाने भी बहुत मेहनत काम होता है. ऐसे में ज्यादातर धागों वे खुद की रंगती है. इसमें भी वह केमिकल प्रयोग नहीं करती है. कुछ कशीदाकारी में धागों के साथ वायर का भी उपयोग करती है. वह खुद सारी सामग्री अपने समूह की महिलाओं को वितरित करती है. नंदा के साथ काम करने वाली शबनम समधानी बताती है कि घर का काम खत्म करने के बाद वह आसानी से दो से तीन घंटे यह मंडला कारीगिरी का काम करती है. जिसके बदौलत वह काफी खर्च निकाल लेती हैं.

Last Updated : Oct 7, 2021, 10:46 PM IST

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