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राजस्थान हाईकोर्ट ने संविदा कार्मिकों के सेवा समाप्ति के आदेशों पर लगाई रोक

राजस्थान हाईकोर्ट ने संविदा कार्मिकों को बिना सुनवाई के मौका दिए सेवा से हटाने का मामले दिए गए याचिका पर सुनवाई करते हुए छह साल से कार्यरत संविदा कार्मिक ईसीजी तकनीशियन और् स्वास्थ्य मार्गदर्शक की सेवा समाप्ति के आदेशों पर रोक लगाई है. साथ ही इस संबंध में नागौर सीएमएचओ और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है.

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संविदा कार्मिकों के सेवा समाप्ति के आदेशों पर लगाई रोक

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Published : Jun 16, 2020, 2:01 AM IST

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट जस्टिस पुष्पेन्द्र सिंह भाटी की अदालत ने दो अलग-अलग याचिकाओं की सुनवाई करते हुए पिछले छह वर्षों से कार्यरत संविदा कार्मिक ईसीजी तकनीशियन और स्वास्थ्य मार्गदर्शक की सेवा समाप्ति के आदेशों के क्रियान्विति पर रोक लगाई है. साथ ही राज्य सरकार से जवाब तलब किया है.

चिकित्सा अधिकारी प्रभारी, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नावा शहर (जिला नागौर) के पद पर कार्यरत संविदा कार्मिक कैलाश बलदवाल और गोगराज जाट की ओर से अलग अलग रिट याचिकाए पेश कर बताया कि, याची कैलाश बलदवाल को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नावा शहर में मुख्यमंत्री निशुल्क जांच योजना में ईसीजी तकनीशियन पद पर दिनाक 12.11.2014 को संविदा पर नियुक्त किया गया था. वहीं गोगराज जाट को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नावा शहर में भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना में 'स्वास्थ्य मार्गदर्शक' पद पर दिनांंक 13.12.2015 को सविंदा पर नियुक्त किया गया था. दोनों अपनी संतोषजनक सेवाएं दे रहे थे और वर्तमान में कोरोना महामारी में पुलिस थाना नावां शहर के साथ नाकाबंदी में आदेश दिनांक 23.03.2020 के पालना में अपनी ड्यूटी कर रहे थे. दोनों को अचानक ही बिना किसी नोटिस और बिना सुनवाई के मौका दिए एक आदेश से सेवा से पृथक कर दिया.

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याचीगण के अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने बताया कि याची कैलाश बलदवाल को यह कहते हुए सेवा से पृथक किया गया कि, ईसीजी तकनीशयन का पद राजकीय अस्पताल में अनियमित और स्वीकृत नहीं है. जबकि निदेशालय ने आदेश दिनांक 04.02.2016 से यह आदेशित किया था कि, मुख्यमंत्री नि शुल्क जांच योजना मेंकार्यरत सविंदा कार्मिको को नियमित भर्ती होने तक रखा जाना है. बावजूद इसके मनमाने तरीके से अनियमित बताकर सेवा से पृथक करना गैर कानूनी और असंवैधानिक है.

वहीं अधिवक्ता ने बताया कि याची गोगराज जाट को यह कहते हुए सेवा से पृथक किया गया कि उसके भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना में रहते हुए अस्पताल में पिछले तीन वर्षों में कोई प्रगति नहीं हुई. जबकि वास्तविकता यह है कि अस्पताल में भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत मरीजों को भर्ती करने का कार्य चिकित्सक का होता है. जो चिकित्सक की पर्ची पर ही भर्ती किया जाता है और इस योजना का लाभ लेने हेतु मरीज को 24 घंटे के लिए भर्ती रहना आवश्यक है. ऐसी स्थिति में अस्पताल में भर्ती मरीजों की संख्या कम होने पर याची उत्तरदायी नहीं होकर चिकित्सक उत्तरदायी है.

राज्य सरकार ने दिनांक 23.10.2015 की भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना की मार्गदर्शिका जारी कर रखी है. जिसमें 'स्वास्थ्य मार्गदर्शक' और इस योजना का फायदा लेने के लिए क्लेम प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है. ऐसी स्थिति में याची को बिना उचित सुनवाई के मौके दिए सेवा से पृथक करना गैर वाजिब है.

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याची की ओर से अधिवक्ता खिलेरी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में बहस कर बताया कि याची अल्प वेतनभोगी संविदा कर्मचारी है और बिना जांच किए सेवा से पृथक करना गलत है. हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद सेवा समाप्ति के आदेशों के क्रियान्विति पर रोक लगाते हुए चिकित्सा अधिकारी प्रभारी, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नावा शहर, सीएमएचओ नागौर सहित राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. सरकार की ओर से जवाब के लिए समय चाहा गया जिस पर अगली सुनवाई 14 जुलाई को रखी गई है.

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