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Divya Maderna Vs Beniwal : मारवाड़ की राजनीति में जाट नेताओं के बीच वर्चस्व की जंग, जुबानी हमलों के बीच बेनीवाल को दिव्या मदेरणा की चुनौती

मारवाड़ के जाट वोट बैंक की अहमियत शायद ही किसी राजनीतिक दल से छिपी हो. इस वोट बैंक को साधने के लिए इन दिनों दो राजनेताओं में होड़ सी लगी है. ये हैं ओसियां विधायक दिव्या मदेरणा और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल. जाट वोटों पर धाक जमाने की अंदरखाने की कोशिश अब सार्वजनिक होती नजर आ रही है. शुरूआत दिव्या के खींवसर जाने और वहां चुनौती पेश करने वाली भाषा के इस्तेमाल से (Divya Maderna targets Hanuman Beniwal) हुई, जिसका बेनीवाल ने भी जवाब दिया.

Divya Maderna Vs Beniwal
मारवाड़ की राजनीति में जाट नेताओं के बीच वर्चस्व की जंग, जुबानी हमलों के बीच बेनीवाल को दिव्या मदेरणा की चुनौती

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Published : Jun 4, 2022, 7:03 AM IST

जोधपुर.राजस्थान की राजनीति में मारवाड़ के जाट वोट बैंक की अहमियत को हमेशा से राजनीतिक दलों ने करीब से समझा है. यही वजह है कि जब अटल बिहारी वाजपेयी ने जाट जाति को ओबीसी में शामिल किया, तो राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई. इसके बाद कभी भी किसी मंत्रिमंडल में मारवाड़ के जाट नेताओं को दरकिनार करना किसी भी राजनीतिक दल के लिए मुमकिन नहीं है. इन दिनों मारवाड़ की राजनीतिक में जुबानी हमलों का दौर परवान पर है.

इस बीच परंपरागत मदेरणा परिवार और अपनी पार्टी के लिए जमीन तलाशते हनुमान बेनीवाल के बीच इशारों-इशारों में निशाने साधने की कवायद परवान चढ़ रही है. जाहिर है कि राजस्थान अब पूरी तरह से इलेक्शन मोड में आ चुका है. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है. योजनाओं से लेकर एक-दूसरे पर विफलताओं के आरोप लगाने का सिलसिला भी इसी कवायद का एक हिस्सा है. ऐसे में यह कहना बेमानी नहीं होगा कि कद्दावर मदेरणा परिवार आक्रमक रूख अख्तियार करके ना सिर्फ स्थापित जाट चेहरों को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है, बल्कि खुद के लिए आधार को मजबूत करने की कोशिश भी कर रहे हैं.

जुबानी हमलों के बीच बेनीवाल को दिव्या मदेरणा की चुनौती...

हाल ही में दिव्या मदेरणा ने नागौर जिले के खींवसर विधानसभा दौरे पर एक कार्यक्रम में जिस तरह से बात की, वह यह साफ करता है कि दिव्या अपने दादा परसराम मदेरणा की राजनीतिक विरासत को ना सिर्फ संभालने की तैयारी में है, बल्कि उसे ऊपरी पायदान पर ले जाने का मानस भी बना चुकी हैं. दिव्या मारवाड़ के दिग्गज जाट राजनैतिक परिवार की तीसरी पीढ़ी के रूप में राजनीति के मैदान में हैं. उनका सबसे बड़ा सहारा दादा स्व परसराम मदेरणा व पिता स्व महिपाल मदेरणा का नाम है. हाल ही में सोशल मीडिया पर अपने नाम के साथ पिता महिपाल का नाम भी जोड़ा है.

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राजनीतिक टेंपरेचर नापने पर पर बढ़ी तकरार: दिव्या ने हाल ही में नागौर जिले के खिंवसर का दौरा (Divya Maderna Nagaur visit) किया. खींवसर रालोपा नेता हनुमान बेनीवाल का गढ़ माना ता है. यहां पर पांचोडी गांव में दिव्या ने यह कह कर सबको चौंका दिया कि पिछली बार जब यहां थीं, तो राजनीति का टेंपरेचर नापने आई थीं और नाप भी लिया था. अब आपरेशन करने आई हैं, तो करके ही जाऊंगी. इसका आगाज भी कर दिया है. यानी सीधे-सीधे बेनीवाल को चुनौती. दिव्या ने नागौर के मिर्धा नेताओं के पिछड़ने की बात कही थी. हालांकि इसके बाद बेनीवाल ने भी पलटवार किया और कहा था कि जिन्होंने उनके दादा ​और पिता का इलाज किया, पहले उसका आपरेशन (Beniwal hits back at Divya Maderna) करे. बेनीवाल ने तो दिव्या की जीत में भी अपना योगदान बताया. दोनों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंता गत पंचायत चुनाव के बाद उभरी है. जिसमें खुलकर एक दूसरे को लेकर बयानबाजी हुई. लेकिन अब सार्वजनिक रूप से आमने-सामने आ गए हैं.

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मारवाड़ में जाट नेताओं का वेक्यूम:मारवाड़ की जाट राजनीति के बड़े नाम मिर्धा व मदेरणा परिवार से ही आते रहे हैं. इनके बड़े नेता अब नहीं रहे. दूसरी पीढ़ी के नेता भी सक्रिय राजनीति से बाहर हो चुके हैं. मिर्धा परिवार की तीसरी पीढ़ी में कोई बड़ा नेता नहीं उभरा. बाड़मेर में कर्नल सोनाराम का वर्चस्व कम हुआ तो अशोक गहलोत की मदद से हरीश चौधरी का कद बढ़ा, लेकिन मंत्री पद जाने के बाद से हरीश चौधरी का दायरा पूरी तरह से सीमित हो गया है. इधर मदेरणा परिवार की तिसरी पीढ़ी के रूप में दिव्या ने परिवार की राजनीतिक हैसियत की अहमियत समझते हुए काम शुरू किया है. क्योंकि उन्हें पता है वर्तमान में जाटों में कोई ऐसा नहीं है जिसके इशारे पर क्षेत्र के राजनीतिक समीकरण बदल सकें. जो पहले उनके दादा परसराम मदेरणा व मिर्धा परिवार के नेता किया करते थे.

पार्टी में मौजूद, लेकिन गहलोत से दूरी:दिव्या यह अच्छी तरह से जानती हैं कि जाटों में अशोक गहलोत को लेकर नाराजगी रहती है. आज जो हालात बने हैं, इसके लिए कुछ हद तक गहलोत भी जिम्मेदार हैं. इसलिए उन्होंने कांग्रेस में होते हुए भी गहलोत से दूरी बना रखी है. आलम यह है कि सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाने से वह नहीं चूकती हैं. विधानसभा में गहलोत के विश्वासपात्र मंत्री महेश जोशी को रबड स्टांप तक बता दिया. इतना ही नहीं ​विधायक गिर्राज मलिंगा मामले में डीजीपी की कार्यशैली पर भी सवाल उठाया. आलम यह है कि जोधपुर जिले में मुख्यमंत्री की यात्रा व कार्यक्रम के दौरान सभी कांग्रेसी विधायक नजर आते हैं लेकिन दिव्या कभी भी शामिल नहीं होती हैं. गहलोत के आने पर कभी एअरपोर्ट नहीं आती हैं. यह सीधा संदेश समाज को है कि वह पार्टी में है लेकिन अपने दम पर किसी के सामने झुकती नहीं हैं.

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जोधपुर में भी सब पर भारी:जोधपुर में उनका मुख्यमंत्री गहलोत के खासमखास नेता बद्रीराम जाखड़ से छत्तीस का आंकड़ा बना हुआ है. खुद विधायक होते हुए अपनी मां को जिला प्रमुख बना दिया. जबकि इस पद के लिए जाखड़ की बेटी का नाम लगभग तय था, लेकिन ऐसा दबाव बनाया कि सीएम को पीछे हटना पड़ा. हाल ही में ओसियां के पूर्व विधायक भैराराम सियोल ने यहां तक कह दिया कि दिव्या मदेरणा उन्हें गिरफ्तार करवाना चाहती हैं. सियोल वसुंधरा सरकार में संसदीय सचिव रहे चुके हैं. उन्हें हराकर ही दिव्या विधानसभा पहुंची हैं. जो बताता है कि दिव्या किस आक्रामक तरीके से जाटों में अपनी आक्रामक पहचान बनाने में जुटी हैं.

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