राजस्थान

rajasthan

ETV Bharat / city

Good News for Achalasia Cardia Patients : जोधपुर AIIMS में 'पोइम' से हुआ भोजन नली से पेट के बीच बाधा का उपचार

भोजन नली से पेट तक पहुंचने में होने वाली बाधा ऐकलेजिया कार्डिया (Achalasia Cardia) का एंडोस्कॉप तकनीक से उपचार की सुविधा जोधुपर एम्स में शुरू हुई है. इसके तहत यहां पोइम (Peroral Endoscopic Myotomy) तकनीक से होने वाले इस उपचार में बहुत छोटा चीरा लगाया जाता है.

Achalasia cardia patients
जोधपुर एम्स

By

Published : Dec 23, 2021, 10:35 PM IST

जोधपुर. भोजन नली से पेट तक पहुंचने में होने वाली बाधा ऐकलेजिया कार्डिया का एंडोस्कॉप तकनीक (Endoscopy Technique for Achalasia cardia) से उपचार की सुविधा जोधुपर एम्स में शुरू हुई है. इसके तहत यहां पोईम (पेरोरल एंडोस्कॉपी मायोटॉमी) तकनीक से होने वाले इस उपचार में बहुत छोटा चीरा लगाया जाता है. जबकि पूर्व में लेप्रोस्कॉपी से सर्जरी करनी पड़ती थी.

इस तकनीक के ​हैदराबाद से आए विशेषज्ञ डॉ. जहीर नबी ने यहां डॉक्टरों के साथ दो दिन की वर्कशॉप में सात मरीजों का इस तकनीक से उपचार किया है. एम्स में अब यह सुविधा नियमित रूप से मिलेगी. कार्यशाला का आयोजन गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग द्वारा किया गया. इसमें डॉ. संजीव मिश्रा (निदेशक, एम्स जोधपुर), डॉ. महेंद्र गर्ग (चिकित्सा अधीक्षक), हैदराबाद के डॉ जहीर नबी, और एम्स जोधपुर और एमडीएम अस्पताल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभागों के संकाय शामिल रहे. ऐकलेज़िया कार्डिया का पहली बार पश्चिमी राजस्थान में इस तकनीक से उपचार किया गया.

पढ़ें:Corona Case in Rajasthan : राजस्थान में कोरोना की तेज रफ्तार, 24 घंटे में मिले 39 पॉजिटिव मरीज

स्फिंगक्टर के बंद होने से होता है ऐकलेज़िया कार्डिया...

डॉक्टरों के अुनसार ऐकलेज़िया कार्डिया एक दुर्लभ रोग है. जिसमें भोजन और तरल पदार्थ मुंह से भोजन नली में तो चले जाते हैं, लेकिन इसके आगे पेट में जाने में परेशानी होती है. आमतौर पर जब भोजन निगला जाता है तो भोजन नलिका के निचले हिस्से में पाया जाने वाला स्फिंगक्टर (मांसपेशी का छल्ला) खुलता है और खाने को पेट में जाने देता है. भोजन नली की तंत्रिका कोशिकाएं स्फिंगक्टर की खुलने और बंद होने की प्रक्रिया को नियंत्रित करती हैं. जो लोग ऐकलेज़िया कार्डिया से पीड़ित होते हैं, उनकी इस काम को करने वाली तंत्रिका कोशिका धीरे-धीरे खत्म हो जाती है. इन कोशिकाओं के न होने से स्फिंगक्टर की प्रक्रिया बाधित होती है. परिणामस्वरूप भोजन नलिका में खाना इकट्ठा होने लगता है. इससे भोजन निगलने में दिक्कत आती है, उल्टी होने लगती है, रात को कफ गिरती है और वजन कम होने लगता है. पोइम तकनीक में एंडोस्कॉपी के साथ एक चाकू होता है जो बहुत छोटे से चीरे से भोजन नली और पेट के बीच के स्फिंगक्टर को नियंत्रित करने वाली मांसपेशियों को बाहर निकालता है. स्फिंगक्टर दुबारा से सही तरीके से काम करने लगता है.

पढ़ें:Maternity Leave for Rajasthan Gov. Employees : महिला कर्मचारियों को सौगात, सरकारी नौकरी से पूर्व संतान होने पर भी मिलेगा मातृत्व अवकाश

पहले बैलून से होता था उपचार...

इससे पहले भोजन नली में इस तरह की परेशानी होने पर बैलून पद्धति से उपचार होता था. जिसमें जहां पर भोजन अटकता था, वहां पर बैलून पहुंचाकर उसे फैलाया जाता था. जिससे आसनी से रास्ता बन जाता है. लेकिन यह अस्थाई उपचार था. कुछ दिन बाद फिर से यह बीमारी होने लगती थी. इसका दूसरा इलाज लेप्रोस्कोपिक सर्जरी है. सबसे पहले जापान में POEM की शुरुआत की गई. इसमें मुंह के जरिए ऐंडॉस्कपी मशीन डालकर वॉल्व को ढीला कर दिया जाता है. इसमें सबसे बड़ा फायदा यह है कि मरीज को किसी भी प्रकार की सर्जरी नहीं झेलनी पड़ती.

ABOUT THE AUTHOR

...view details