जोधपुर. देश भर में दशहरे का त्योहार शुक्रवार को उल्लास के साथ मनाया जाएगा. हालांकि वैश्विक महामारी को देखते हुए इस बार भी बड़े आयोजन नहीं हो पाएंगे, लेकिन फिर भी गली-मोहल्लों में दशहरे का त्योहार धूमधाम से मनाया जाएगा. दशहरे पर जहां लोग रावण दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व मनाते हैं तो वहीं एक ऐसा समाज भी है जो लंकापति के दहन पर शोक में डूब जाता है.
जी हां, रावण के वंशज गोधा श्रीमाली समाज के लोग इस दिन को शोक के रूप में मनाते हैं. दशहरे के मौके पर रावण दहन के बाद इस समाज के लोगों की ओऱ से रावण दहन के धुएं को देखकर स्नान करते हैं और उसके पश्चात अपनी जनेउ को बदल कर खाना खाते हैं. दशहरे के दिन शोक मनाने वाले सभी श्रीमाली समाज के लोग अपने आप को रावण के वंशज बताते हैं. मान्यता के अनुसार जब त्रेता युग में रावण की शादी हुई थी उस समय रावण बारात लेकर जोधपुर के मंडोर में आए थे जहां रावण का विवाह मंदोदरी से हुआ था उसके पश्चात बारात में आए कुछ लोग यहीं पर बस गए. ऐसे में खुद को रावण के वंशज बताने वाले श्री माली समाज के लोग इस दिन को शोक के रूप में मनाते हैं.
पढ़ें.Special : आधुनिकता की होड़ में फीकी पड़ रही गुलाबी नगरी की चमक, धूमिल हो रही ऐतिहासिक विरासत
जोधपुर के सूरसागर स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग की तलहटी में वर्तमान समय में रावण का मंदिर भी बना हुआ है यह मंदिर कई साल पुराना है और श्रीमाली समाज के कमलेश दवे ने इस मंदिर को बनवाया था और उनकी ओर से दशहरे के दिन इस मंदिर में रावण की भव्य पूजा-अर्चना भी की जाती है. गोदा गोत्र के श्रीमाली ब्राह्मणों की ओर से मंदिर यह बनवाया गया है.