जोधपुर.राजस्थान हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश दिनेश मेहता ने याचिकाकर्ता के तर्कों से सहमत होते हुए और पूर्व न्यायिक नजीर को कंसीडर करते हुए महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए याचिकाकर्ता को छह सप्ताह के भीतर नर्स ग्रेड द्वितीय पद पर नियुक्ति देने का आदेश दिया है. साथ ही याचिकाकर्ता को नियम-13 के अनुसार फिटनेस का स्वाथ्य प्रमाण पत्र पेश करना होगा. याचिकाकर्ता को अगर किसी अन्य कारण से योग्य नहीं पाया जाता है तो स्कीपिंग के आदेश भी जारी किए हैं. कार्यवाही को छह सप्ताह के भीतर करने के आदेश दिए हैं.
नर्स ग्रेड द्वितीय भर्ती 2018 मामले में राज्य सरकार द्वारा हाल ही जारी अंतिम वरीयता सूची में स्थान होने के बावजूद विभाग द्वारा जारी नियुक्ति आदेश दिनांक 28 अप्रैल में नियुक्ति नहीं देने पर याचिकाकर्ता कैलाश कस्वां व अन्य ने अधिवक्ता यशपाल खिलेरी के मार्फत रिट याचिका पेश कर न्यायालय को बताया कि याचिकाकर्ता ने ओबीसी वर्ग में 81.034% अंक हासिल किए. जबकि ओबीसी वर्ग का अंतिम कटऑफ 74.42 प्रतिशत रहा. लेकिन याचिकाकर्ता के एक पैर से अपाहिज होने के कारण उसे नियुक्ति देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि विभाग द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड की जांच में उसे दोनों पैरों से डिसेबल पाया गया.
पढ़ें:राजस्थान हाईकोर्ट: कोरोना वायरस के चलते 1 सप्ताह के लिए नहीं होगी मुकदमों की सुनवाई
याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि याचिकाकर्ता दिनांक 03.06.2015 से आज तक GNM नर्स पद सविंदा पर राज्य सरकार के अधीन लूणी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर नौकरी कर रहा है और नर्स की सभी ड्यूटी कर रहा है. उसमें ऐसी कोई अयोग्यता नहीं है कि नर्स की जॉब करने में असमर्थ हो. याचिकाकर्ता नियुक्ति होने पर नियमानुसार स्वास्थ्य प्रमाण पत्र पेश करने को भी तैयार है. अधिवक्ता ने न्यायालय का ध्यान पूर्व न्यायिक फैसलों की ओर दिलाया और कहा कि हाइकोर्ट ने सुनीता कुमारी के मामले में यह तय कर दिया है कि अभ्यर्थी भले ही विशेष योग्यजन श्रेणी में हो लेकिन अपनी स्वयं की कैटेगरी जैसे जनरल कैटेगरी/ओबीसी/एससी/ एसटी वर्ग की लास्ट कटऑफ के अनुसार नियुक्त होने का हकदार है.
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता खिलेरी ने बहस के दौरान बताया कि राजस्थान मेडिकल एंड हेल्थ सुबोर्डिनेट सेवा नियम 1965 के नियम 13 के अनुसार याचिकाकर्ता स्वास्थ्य प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने को तैयार है, लेकिन ये स्वास्थ्य प्रमाण पत्र नियुक्ति आदेश जारी होने के बाद ज्वाइनिंग के समय पेश करना होता है. ऐसी स्थिति में याचिकाकर्ता को नियुक्ति से वंचित रखना असैंवधानिक और विधि विरुद्ध है. बावजूद इसके, याचिकाकर्ता को नियुक्ति नहीं देना मनमाना और भेदभाव पूर्ण है. राज्य सरकार की ओर से राजकीय अधिवक्ता ने बहस कर बताया कि याचिकाकर्ता का मेडिकल करवाने पर उसे एक पैर डिसेबिलिटी नहीं होकर अन्य अयोग्यताएं पाई गई हैं, इसलिए याचिकाकर्ता नियुक्ति पाने के अधिकार नहीं है.