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200 रुपए रिश्वत का मामला: 40 साल बाद भ्रष्टाचार के मामले में बरी, हाईकोर्ट से 32 साल बाद अपील का हुआ निस्तारण - 200 रुपए रिश्वत का मामला

200 रुपए घूस लेने के आरोप में चित्तौड़गढ़ एसीबी ने एक व्यक्ति को 4 मार्च, 1982 को गिरफ्तार किया था. इसके करीब 10 साल बाद उसे भीलवाड़ा एसीबी कोर्ट ने 1 साल की सजा सुनाई. इसके खिलाफ उसने राजस्थान हाईकोर्ट में अपील की. तब से लेकर अब तक करीब 32 साल बाद उसे हाईकोर्ट ने बरी किया (Man freed after 40 years in bribe case) है.

Man freed after 40 years in bribe case
200 रुपए रिश्वत का मामला: 40 साल बाद भ्रष्टाचार के मामले में बरी, हाईकोर्ट से 32 साल बाद अपील का हुआ निस्तारण

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Published : May 28, 2022, 11:34 PM IST

जोधपुर. राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर मुख्यपीठ ने ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ पेश अपील को 32 साल बाद निस्तारित करते हुए अपीलकर्ता को एक साल की सजा से बरी करते हुए न्याय प्रदान किया (Man freed after 40 years in bribe case) है. जस्टिस डॉ पुष्पेन्द्रसिंह भाटी की अदालत में अपीलकर्ता प्रकाश मनिहार के अधिवक्ता एमएस राजपुरोहित ने पैरवी की.

अधिवक्ता ने कहा कि वर्ष 1982 में अपीलकर्ता सहायक इंजीनियर आरएसईबी गंगरार में कार्यरत था. इस दौरान एक शिकायत पर एसीबी चित्तौडगढ़ ने 4 मार्च, 1982 को महज 200 रुपए रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार किया था. एसीबी कोर्ट भीलवाड़ा ने मामले पर करीब 10 साल बाद 2 दिसंबर, 1991 को फैसला सुनाते हुए दोषी करार देते हुए एक साल की सजा के आदेश दिये थे. जिसके खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर मुख्यपीठ में अपील पेश की गई थी. हाईकोर्ट में पिछले 32 साल से अपील विचाराधीन है, लेकिन मुकदमे का निस्तारण नहीं हो पाया.

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अधिवक्ता ने कहा कि न्याय में देरी के लिए सुना था, लेकिन इस मामले में तो 32 साल से अपीलार्थी चक्कर काट रहा है. जबकि ट्रायल कोर्ट ने दोषी करार देते हुए समय एसीडी की धाराओं में जिन बिन्दू पर सजा होती है, उनको देखा ही नहीं. एक तो रिश्वत की राशि रंगे हाथों बरामद होना और दूसरा मांग का सत्यापन होना आवश्यक है. इस केस में मांग का सत्यापन हुआ ही नहीं केवल एसीबी ने 200 रुपए दिये थे परिवादी को. वो ही अपीलार्थी से बरामद बताये गये हैं. ऐसे में ट्रायल कोर्ट द्वारा जो सजा दी गई है, वो निरस्त करते हुए बरी किया जाए. हाईकोर्ट ने भी अपने फैसले में माना कि एसीडी के मामले में मांग सत्यापन होना आवश्यक है. लेकिन इस केस में ऐसा नहीं हुआ इसीलिए 2 दिसंबर, 1991 को दिये गये ट्रायल कोर्ट के आदेश को अपास्त करते हुए अपीलार्थी को बरी करने का आदेश पारित किया.

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