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Major Shaitan Singh: परमवीर चक्र विजेता को आज याद कर रहा है हिन्दुस्तान, 114 सैनिकों के साथ 1300 चीनी सैनिकों से किया था मुकाबला - सेना मुख्यालय

मेजर शैतान सिंह भाटी ( Major Shaitan Singh) को आज देश याद कर रहा है. उनकी 59वीं पुण्यतिथि पर पावटा स्थित मेजर शैतानसिंह सर्किल पर सेना और पूर्व सैन्य अधिकारियों ने बड़े सम्मान के साथ मेजर शैतानसिंह को याद किया.उनके स्मारक पर पुष्पचक्र भेंट किया गया. आज ही के दिन उन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था. 1962 के भारत-चीन युद्ध में कुमाऊं रेजिमेंट के महज 114 सैनिकों को लीड करते हुए 1300 चीनी सैनिकों से लोहा लिया था. मरणोपरांत (Posthumus) अद्मय साहस के लिए उन्हें परमवीर चक्र (Paramveer Chakra) से नवाजा गया.

Major Shaitan Singh
परमवीर चक्र विजेता को आज याद कर रहा है हिन्दुस्तान

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Published : Nov 18, 2021, 8:52 AM IST

Updated : Nov 18, 2021, 2:26 PM IST

जोधपुर:मारवाड़ के वीर सैनिकों की कहानियां हर जगह मशहूर हैं. ऐसे ही एक वीर थे भारतीय सेना के मेजर शैतानसिंह भाटी. जिन्हें 1962 के भारत चीन युद्ध (1962 Sino-Indian War) के बाद देश के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र (Paramveer Chakra) से नवाजा गया. यह सम्मान उन्हें इसलिए दिया गया क्योंकि उन्होंने महज 114 सैनिकों के साथ सीमित संसाधनों के बूते 1300 चीनी सैनिकों से लोहा लिया.

चुश्लू सेक्टर (Chushul Sector) में रेजांग्ला (Rezang La) में हुए भीषण युद्ध (1962 War) में मेजर भाटी (Major Shaitan Singh Bhati) वीरगति को प्राप्त हुए थे. इस लड़ाई में रेजीमेंट के इक्का दुक्का सैनिक ही बचे थे. मेजर और उनके साथियों के शव तीन महिने बाद मिले. इसकी सूचना एक गढहरिए ने सेना को दी थी. बर्फ में दबे होने की वजह से शव सुरक्षित थे.

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शव ने बताई जाबांजी की कहानी

शव जिन हालातों में मिला उससे अंदाजा लगाया जा सका कि मेजर ने किस तरह दुश्मनों के दांत खट्टे किए. मेजर का शव पत्थर से सटा हुआ मिला था.उनके पांव में रस्सी थी जिससे मशीनगन बंधी थी। जिससे अंदाजा लगाया गया कि जब हाथ काम नहीं कर रहे थे तो उन्होंने पांव से मशीनगन चलाई. उनके इस साहस और बलिदान से ही सीमा सुरक्षित रही. इस रेजिमेंट ने चीन को लद्दाख में घुसने नहीं दिया.

1962 का वो युद्ध और मेजर की जिम्मेदारी

दरअसल 1962 में भारत-चीन के बीच युद्ध चल रहा था. करीब 17 हजार फीट की उंचाई वाले चुशूल सेक्टर (Chushul Sector) के रेजांग्ला (Rezang La) में कुमाऊं बटालियन (Kumaon Battalion) के साथ मेजर शैतानसिंह (Major Shaitan Singh) अपने 114 सैनिकों के साथ डटे हुए थे. 18 नवंबर 1962 को उन्होंने चीनी सेना का जमकर मुकाबला किया. उनकी पलटन ने करीब 1300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारा.

परिस्थितियां विषम थीं और भारतीय टुकड़ी के पास कोई सहायता नहीं पहुंच सकती थी लेकिन मेजर भाटी पीछे नहीं हटे. उन्होंने अपनी टुकड़ी का हौसला बनाए रखा. अगले दो दिन में ही सीज फायर (Cease Fire) हो गया. तीन महीने बाद भारतीय सपूतों के शव मिले और भारतीय चौकी के सामने बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों के शव भी मिले जो हमारे शूरवीरों की गौरव गाथा बयान कर रहे थे.

महज 38 साल के थे शैतान सिंह

मेजर शैतानसिंह का जन्म 1 दिसंबर 1924 को जोधपुर (Jodhpur) के फलोदी के पास हुआ था. उनके पिता तत्कालीन सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल हेमसिंह भाटी थे. जिन्होने प्रथम विश्व युद्ध (I WW) में भाग लिया. जिसके लिए उन्हें ब्रिटीश सरकार ने ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (ओबीई) दिया गया था. शैतानसिंह को 1 अगस्त 1949 में सेना में कमिश्न मिला. उन्हें कुमायूं रेजिमेंट में शामिल किया गया था.

जोधपुर कर रहा सलाम

मेजर शैतानसिंह को आज उनकी 59वीं पुण्यतिथि पर जोधपुर में श्रद्धांजलि दी गई. उनके इस बलिदान दिवस पर जिले में पावटा स्थित मेजर शैतानसिंह सर्किल पर सेना और पूर्व सैन्य अधिकारियों ने उन्हें याद कर स्मारक पर पुष्पचक्र भेंट किया. जोधपुर स्थिति सेना मुख्यालय के जवान और अधिकारी प्रतिवर्ष इस दिन यहां श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित कर अपने वीर योद्धा को याद करते हैं.

जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कर्नल दिलीप सिंह खंगारौत ने बताया कि मेजर शैतानसिंह व उनकी टुकड़ी और चीनी सेना के बीच हुई लड़ाई पूरी दुनिया में मशहूर है. महज 114 सैनिकों ने 17 हजार फीट की ऊंचाई पर सैंकड़ों चीनियों का मुकाबला किया था.

Last Updated : Nov 18, 2021, 2:26 PM IST

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