जोधपुर. प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी जोधपुर में मंगलवार रात को धींगा गवर मेला देखने बड़ी संख्या में नगर वासी (Jodhpur Dhinga Gavar Carnival Concludes) उमड़े. भीतरी शहर में गवर की पूजा करने के बाद महिलाएं अलग अलग स्वांग और वेश धारण कर सड़कों पर उतरीं. कुंवारे लड़कों पर बेंत बरसाई. ये सिलसिला अलसुबह तक चलता रहा. जोधपुर में धींगा गवर को बड़ी गणगौर भी कहते हैं. धींगा गवर मेले में कई रंग देखने को मिलते हैं. कोई स्वांग रच पैदल मेले में चलती हैं, तो कोई स्कूटर बैठी नजर आती है इसीलिए इस मेले को जोधपुर का कार्निवाल कहा जाए तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी. महिला शक्ति का प्रतीक ये मेला अपने आप में अनूठा है. इस तरह का आयोजन राजस्थान में कहीं पर भी नहीं होता है. इस मेले में भांग युक्त प्रसाद का वितरण होता है. जिसे मोई कहा जाता है.
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सुनारों की घाटी आकर्षण का केंद्र:16 दिन तक चलने वाले इस रंगारंग समारोह के आखिरी दिन हमेशा की तरह (Dhinga Gavar Carnival) सर्राफा बाजार से आगे स्थित सुनारों की घाटी आकर्षण के केन्द्र रही. मोहल्ला में बेंतमार गणगौर मेले का मुख्य केंद्र बना रहा. ज्यों ज्यों रात चढ़ती गई यहां भीड़ बढ़ती गई. यहां स्थापित की गई गणगौर को नवलख हार सहित लगभग दो—ढाई करोड़ के आभूषणों से सजाया गया. सुरक्षा के इंतजाम भी कड़े किए गए थे. जगह जगह पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे.साथ ही पुलिस का जाब्ता तैनात किया गया.
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दिन भर की तैयारी कर मेले में पहुंची महिला मंडली: मेले में स्वांग रचाने वाली तीजणियों ने आखिरी दिन इसकी पूरी तैयारी की. शाम को सजधज कर पारम्परिक और अपनी पसंद के मुताबिक मेकअप कर मेले में शामिल हुईं. मुख्यत: धार्मिक और पौराणिक पात्रों के गेटअप में सजी दिखीं महिलाएं. 16 वें दिन, 16 श्रृंगार में सजी तिजणियों ने पारम्परिक अंदाज में पूजा पाठ किया. कलश के साथ आगे बढ़ीं महिलाओं का उत्साहवर्धन करती महिला ब्रिगेड ने भी खूब रंग जमाया. धमा चौकड़ी करती महिलाओं ने मन्नतें भी मांगी.
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जगह जगह सम्मान, गलियों में उमड़ी भीड़:मेले के दौरान हर मोहल्ले कि अपनी गणगौर सजाई हुई नजर आई. इसके अलावा मोहल्ला विकास समितियों में तिजणियों का सम्मान करने की होड़ लगी रही. पूरे शहर से आने वाले लोगों की भीड़ से भीतरी शहर की संकरी गलियां अट गईं. व्यवस्था बनाने के लिए पुलिस के बड़े अधिकारी से लेकर कांस्टेबल तक तैनात किए गए. कुल मिलाकर महिलाओं की शाम रही महिलाओं के ही नाम. परम्परा संग आधुनिकता का सुघड़ मेल देखने लायक रहा.
दरअसल, लगभग 80-100 साल पहले ये मान्यता (Belief of Dhinga Gavar festival) थी कि धींगा गवर के दर्शन पुरुष नहीं करते, क्योंकि तत्कालीन समय में ऐसा माना जाता था कि जो भी पुरुष धींगा गवर के दर्शन कर लेता था उसकी मृत्यु हो जाती थी. ऐसे में धींगा गवर की पूजा करने वाली सुहागिनें अपने हाथ में बेंत या डंडा ले कर आधी रात के बाद गवर के साथ निकलती थी. वे पूरे रास्ते गीत गाती हुई और बेंत लेकर उसे फटकारती हुई चलती. बताया जाता है कि महिलाएं डंडा फटकारती थी, जिससे पुरुष सावधान हो जाए और गवर के दर्शन करने की बजाय किसी गली, घर या चबूतरी की ओट ले लेते थे. कालांतर में यह मान्यता स्थापित हुई कि जिस युवा पर बेंत डंडा की मार पड़ती उसका जल्दी ही विवाह हो जाता. इसी परंपरा के चलते युवा वर्ग इस मेले का अभिन्न हिस्सा बन गया है.