जोधपुर. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) नित नए प्रयोग करता आया है. एक बार फिर काजरी ने फ्रांस और जर्मनी में पैदा होने वाली कैमोमाइल चाय की सफलता पूर्वक खेती शुरू कर दी है. वैज्ञानिकों के करीब तीन साल की अथक मेहनत के बाद काजरी परिसर में यूरोप में होने वाली इस चाय की सुगंध महकने लगी है.
काजरी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एसपीएस तंवर के निर्देश में रेगिस्थान में विकसित हुई इस चाय की खेती की तकनीक से शुष्क क्षेत्र के किसान भी इसकी खेती कर सकेंगे. वर्तमान में दवा निर्माता कंपनियों के लिए लखनउ और नीमच में खेती होती है. इसके अलावा जर्मनी व फ्रांस से इसका आयात होता है. लोगों के पास इसकी खेती की तकनीक नहीं होने से बडे स्तर पर इसकी खेती नहीं हो पा रही है. जल्द ही काजरी अगले साल से इसके बीज किसानों के लिए उपलब्ध करवाएगी. इसके अलावा इसके फूलों को एकत्र करने के लिए उपकरण भी विकसित करने पर काम चल रहा है. ईटीवी भारत ने काजरी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एसपीएस तंवर से इस कैमोमाइल की खेती को लेकर खास बातचीत की.
वैज्ञानिक डॉ. एसपीएस तंवर ने कैमोमाइल की खूबियों को लेकर बताया कि कैमोमाइल चाय नींद की बीमारी में असरकारक होती है. यह चाय यूरोप में गर्मियों में पैदा होती है लेकिन अब कैमोमाइल चाय रेगिस्तान में थार में सर्दियों में पैदा होगी. डॉ. एसपीएस तंवर के मुताबिक कैमोमाइल की खेती में गेहूं से कम और सरसों से ज्यादा पानी लगता है.
50 हजार रुपए प्रति लिटर बिकता है कैमोमाइल का तेल