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PCPNDT Act मामलों में सीधे FIR नहीं हो सकती दर्ज, शिकायत के बाद सक्षम न्यायालय करेगा कार्रवाई - Court dismissed FIR in PCPNDT Act

पीबीआई चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं थाना पुलिस ने 22 अप्रैल, 2022 को डिकॉय कार्रवाई करते हुए डॉ मोहम्मद इम्तियाज के खिलाफ एफआईआर दर्ज की और उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया. उन्‍हें जेल भेज दिया गया. इस मामले पर सुनवाई करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने डॉ इम्तियाज के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करते हुए तत्काल रिहा करने का आदेश पारित किया है.

Rajasthan High Court
पीसीपीएनडीटी मामलो में सीधे एफआईआर नहीं हो सकती दर्ज, शिकायत के बाद सक्षम न्यायालय करेगा कार्रवाई

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Published : Sep 24, 2022, 8:09 PM IST

जोधपुर.राजस्थान हाईकोर्ट ने एक आदेश पारित करते हुए पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम (PCPNDT Act) के तहत गिरफ्तार डॉ मोहम्मद इम्तियाज की याचिका को मंजूर करते हुए उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि अधिनियम के अनुसार ऐसे मामलों में शिकायत दर्ज करने के बाद सम्बंधित न्यायालय द्वारा ही कानून अनुसार तय किया (Court dismissed FIR in PCPNDT Act) जाएगा.

जस्टिस दिनेश मेहता की अदालत में डॉ इम्तियाज की ओर से अधिवक्ता शीतल कुम्भट ने याचिका पेश करते हुए उनके खिलाफ पीबीआई चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं थाना पुलिस जयपुर में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी. कोर्ट के समक्ष अधिवक्ता ने बताया कि पीसीपीएनडीटी एक्ट के अनुसार ऐसे मामलों में शिकायत दर्ज करने के बाद आगे की कार्रवाई की जाती है, लेकिन इस मामले में सीधे एफआईआर दर्ज करते हुए गिरफ्तार कर न्यायिक अभिरक्षा में भेजा गया है.

पढ़ें:पीसीपीएनडीटी सेल की जयपुर में कार्रवाई, भ्रूण लिंग परीक्षण करते चिकित्सक और दलाल गिरफ्तार

पीबीआई चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं थाना पुलिस ने 22 अप्रैल, 2022 को डिकॉय कार्रवाई करते हुए गिरफ्तार किया और एफआईआर दर्ज कर जेल भेज दिया गया. जबकि अधिनियम के अनुसार ऐसे मामलों में शिकायत दर्ज होती है ना कि एफआईआर. जबकि एक्ट में प्रावधान है कि पुलिस का रोल न्यूनतम रखा जाएगा. लेकिन इस मामले में पुलिस ने सीधे भ्रूण के लिंग निर्धारण मामले को लेकर डिकॉय कार्रवाई करते हुए जेल भेज दिया गया. कोर्ट ने मामले पर सुनवाई के बाद डॉ इम्तियाज के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करते हुए तत्काल रिहा करने का आदेश पारित किया है. संभवत पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत यह पहला मामला है, जिसमें एफआईआर अधिनियम के तहत निरस्त की गई है.

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