जोधपुर.कृष्ण मृगों के लिए राजस्थान में प्रसिद्ध तालछापर वन्य अभ्यारण्य के वन क्षेत्र को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर मुख्यपीठ ने स्वप्रेरणा से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद निस्तारित करते हुए विस्तृत निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने 29 नवम्बर को अनुपालना रिपोर्ट मांगी है. वरिष्ठ न्यायाधीश संदीप मेहता व न्यायाधीश कुलदीप माथुर की खंडपीठ ने विस्तृत सुनवाई के साथ याचिका पर राज्य सरकार व वन विभाग को आवश्यक निर्देश जारी किए हैं, जिनकी पालना रिपोर्ट भी मांगी है.
कृष्ण मृगों के लिए चूरू में सबसे छोटा वन्य जीव अभ्यारण्य तालछापर बना हुआ है. जिसका क्षेत्र महज 7.9 किलोमीटर का है, जहां करीब 3500 कृष्ण मृग विचरण करते (Blackbucks in Talchhapar Sanctuary) हैं. सरकार ने ईको सेंसिटिव जोन को लेकर एक प्रपोजल तैयार किया था जिसको लेकर खबर प्रकाशित होने पर हाईकोर्ट ने स्व प्रेरणा से प्रसंज्ञान लेकर सरकार से जवाब तलब किया था. इस मामले में लम्बी सुनवाई के बाद सहयोग के लिए जहां अधिवक्ता ऋतुराज सिंह राठौड़ को न्यायमित्र नियुक्त किया गया. वहीं विशेषज्ञ के रूप में सेवानिवृत मुख्य वन्यजीव वार्डन आरएन मेहरोत्रा को नामित किया गया.
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सरकार की ओर से एएजी संदीप शाह, एएजी सुनील बेनीवाल ने भी वन्य जीवों के लिए कई आवश्यक सुझावों के साथ सरकार की पैरवी की. हाईकोर्ट ने विस्तृत सुनवाई के बाद आवश्यक रूप से 8 निर्देश दिए हैं. जिसमें तालछापर वन्य जीव अभ्यारण्य की सीमा को किसी भी स्थिति में कम नहीं किए जाने का निर्देश शामिल (HC directions to save Talchhapar Sanctuary) है. ईको सेंसिटिव जोन की घोषणा को लेकर औपचारिकताएं जल्द से जल्द पूरी करे. अभ्यारण्य के अन्दर 2.7 किमी राज्य मार्ग जो कि नोखा से सीकर तक जाता है, उसे 24 जनवरी, 2018 के आदेश से डीनोटिफाई किया था, लेकिन बिना किसी वैध कारण के 30 सितंबर 2019 फिर से शुरू किया गया है. उस आदेश को तत्काल निरस्त करें और इस सड़क को अविलम्ब डीनोटिफाई किया जाए. क्योकि अभ्यारण्य के समीप ही वैकल्पिक सड़क पहले से मौजूद है.
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वन विभाग, राजस्व विभाग व जिला उद्योग केन्द्र के अधिकारी मिलकर तालछापर से लगते नमक क्षेत्र को यथासंभव अधिक से अधिक क्षेत्र को तालछापर से जोड़ें. जिला कलेक्टर नागौर की सहमति से राज्य सरकार जसवंतगढ़ वन क्षेत्र से जुड़ी राजस्व भूमि को वन क्षेत्र में परिवर्तित करे और वन भूमि में विलय करे. जसवंतगढ़ के आसपास की भूमि को वन भूमि में विलय के साथ ही वहां पर जूलीफ्लोरा की झाड़ियों को हटाने की कवायद शुरू करे. पूरे क्षेत्र में कृष्ण मृगों के लिए व्यापक वृक्षारोपण और चरने के लिए उपयुक्त घास, देशी जामुन व बेर आदि फल देने वाले वृक्षों को लगाए. इन सभी निर्देशों की प्रगति की निगरानी के लिए सरकार 5 सदस्यों का एक विशेषज्ञ पैनल बनाए जिसमें दो वन विभाग के सेवारत या सेवानिवृत कर्मचारी शामिल होगें.
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इसके साथ ही याचिका को निस्तारित करते हुए 29 नवम्बर, 2022 को पालना रिपोर्ट पेश करने के लिए निर्देश दिए हैं. गौरतलब है कि तालछापर अभ्यारण्य में 820 हेक्टेयर में अभी 3500 काले हिरण विचरण करते हैं. जिनके लिए एरिया बढा़ने के बजाय ईको सेंसिटिव जोन घटाकर 3 किलोमीटर करने की तैयारी चल रही (Report of decreasing area of Talchhapar Sanctuary) है. इसको लेकर केन्द्र सरकार को जल्द प्रपोजल भेजा जायेगा. इसके पीछे मकसद यह है कि डूंगर बालाजी की पहाड़ियों में खनन मंजूरी दी जा सकती है.
यदि ऐसा हुआ तो माइनिंग के धमाकों से काले हिरणों की जान भी जा सकती है. जिस पर राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर मुख्यपीठ ने प्रसंज्ञान लेकर जनहित याचिका दायर की थी. अधिवक्ता ऋतुराज सिंह राठौड़ (न्याय मित्र) का कहना है कि राजस्थान के सबसे छोटे अभयारण्य के वन्यजीवों के लिए माननीय न्यायालय का यह आदेश एक जीवनदायिनी घुट्टी के समान है. जसवंतगढ़ के रूप में कृष्ण मृगों को एक नया आसरा मिल पाएगा.