जोधपुर.25 जून, 1975 को भारत में इमरजेंसी लागू हुई थी. केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इमरजेंसी को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि यह दिन कांग्रेस की काली करतूत और भारतीय लोकतंत्र का सबसे दुःखद अध्याय है. वे आपातकाल के विरोध में उठे हर स्वर का हृदय से वंदन करते हैं. सोशल मीडिया पर वीडियो शेयर करके शेखावत ने इसे भारतीय इतिहास का सबसे काला दिन बताया.
शेखावत ने कहा कि आज आपातकाल दिवस है और आज ही के दिन 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया था, जो लोकतंत्र के इतिहास में सबसे काला दिन माना जाता है. सोशलिस्ट नेता राज नारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज उठाई थी. उन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था, लेकिन इंदिरा गांधी ने अपनी शक्तिओं का दुरुपयोग करके चुनाव में जीत हासिल कर ली थी.
जिसके बाद राज नारायण ने उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दर्ज करवाई थी. जिस पर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए रायबरेली से हुए चुनाव को खारिज कर दिया था. जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस्तीफा देने के बजाय देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी.
यह भी पढ़ें :आपातकाल को लेकर मोदी-शाह का कांग्रेस पर निशाना, कहा- नहीं बदली मानसिकता
गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि अपालकाल के दौरान नागरिकों के सभी मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे. मीसा कानून के तहत गिरफ्तारियां की गईं और सभी विपक्षी नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था. जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में सभी विपक्षी दल एक हुए और 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई थी. 19 महीने की इस अवधि के दौरान देश में पूरी तरह तानाशाही हावी रही थी.
आपातकाल का इतिहास...
बता दें कि भारत के लिहाज से 25 जून 1975 का दिन एक विवादास्पद फैसले के लिए जाना जाता है. यही वह दिन था जब देश में आपातकाल की घोषणा हुई. इमरजेंसी का मुख्य कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक फैसला था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जनता को बेवजह मुश्किलों के समुंदर में धकेल दिया था. 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा की गई और 26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक यानी 21 महीने की अवधि तक आपातकाल जारी था.
यह भी पढ़ें :आपातकाल के 45 साल : स्वतंत्र भारत के सबसे विवादास्पद दौर पर एक नजर
उस दौर में कई ऐसी घटनाएं थीं जिन्हें अपातकाल के लिए जिम्मेदार माना जाता है. जैसे देश में लगातार बढ़ रहे अपराध, बेरोजगारी, हिंसा, दंगे और भूखमरी. आपातकाल का सबसे आलोचनात्मक पहलू प्रेस पर लगाई गई पाबंदी थी. बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया था.