जोधपुर. गणगौर राजस्थान में आस्था प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का सबसे बड़ा उत्सव है. गण यानी कि शिव और गौर यानी कि पार्वती के इस पर्व में कुंवारी लड़कियां मनपसंद वर पाने की कामना करती हैं. विवाहित महिलाएं चैत्र शुक्ल तृतीया को गणगौर पूजन और व्रत कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं, लेकिन इस पर्व को जोधपुर में दो अलग-अलग नाम से मनाने की परम्परा चली आ रही है. पहले पखवाड़े में पूजे जाने वाली गणगौर घुड़ला गवर कहलाती है. जबकि दूसरे पखवाड़े में धींगा गवर का पूजन (Dhinga Gavar festival in Jodhpur) होता है. पहले पखवाड़े में गवर का पूजन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से आरंभ होकर चैत्र शुक्ल तीज तक किया जाता है.
गणगौर का त्यौहार हाल ही में संपन्न हुआ है, लेकिन जोधपुर में अलग तरह की गवर का त्यौहार मनाया जाता है. जोधपुर के परकोटा के भीतरी शहर में गणगौर की तर्ज पर धींगा गवर की 16 दिन तक पूजा होती है. धींगा गवर (Dhinga Gavar festival in Jodhpur) को गौरी मां के रूप में पूजा जाता है. इस पूजा की खास बात यह है कि इसमें सिर्फ विवाहित और विधवा ही शामिल होती है. कुंवारी कन्याएं इसका पूजन नहीं करती हैं. यह पंरपरा वर्षों से चली आ रही है. इस दौरान 16 दिन तक पूजन करने वली तिजणियां कठोर नियम का पालन करती है. विधवाओं को इसलिए इस पूजन से जोड़ा गया है कि वे अपने आप को समाज में उपेक्षित महसूस नहीं करें क्योंकि पति के जीवित रहने के दौरान वे नियमित रूप से इसका हिस्सा रहती हैं.
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आज लोटिया का मेला, कल बेंतमार: जोधपुर के भीतरी शहर में इन दिनों इस त्यौहार को लेकर भारी हलचल है. घर-घर में महिलाओं का पूजन जारी है. आज सोमवार को इस पूजन का 15वां दिन है. आज तिजणियां लोटियां लेकर जाएगी. वे सरोवर से पानी लेकर आती हैं और गवर माता केा अर्पण करती हैं. पूजा करने वाली तीजणियां 16 दिन व्रत रखती हैं. सुबह से जब तक पूजा नहीं कर लेती तब तक कुछ नहीं खाती. नमक से दूर रहती हैं. इसके पीछे कारण यह है कि माता की पूजा में मीठे का भोग चढ़ता है. जो भोग धींगा गवर माता को लगाया जाता है, वही खाती हैं. जब तक पूजा न हो जाए तब तक कई महिलाएं पानी भी नहीं पीती हैं.