जोधपुर. जोधपुर रेल मंडल के मुख्य रेलवे स्टेशन जोधपुर से रोजाना 30 से 35 यात्री ट्रेनों की आवाजाही लॉकडाउन से पहले होती थी. इस स्टेशन पर काम करने वाले 93 कुली, जिन्हें अब यात्री सहायक कहा जाता है उनकी आजीविका चलती थी. लेकिन लॉकडाउन के चलते अब इनकी परेशानियां बढ़ गई हैं और आमदनी भी पूरी तरह से ठप हो गई है. आगे नियमित ट्रेनें कब चलेंगी, चलेंगी तो कुली कैसे काम करेंगे. इसे लेकर किसी प्रकार को कोई नियम अभी तक नहीं आया है.
कुलियों के सामने रोजी-रोटी का संकट ऐसे में कुली वर्ग कोरोना का बेजा दंश झेल रहा है. इनके लिए रेलवे या सरकार की ओर से किसी प्रकार की कोई मदद की घोषणा नहीं हुई है. इसके चलते ज्यादातर कुली जो आसपास के गांव के हैं, वे यहां से जा चुके हैं. सिर्फ जोधपुर शहर में रहने वाले 15 कुली कभी-कभार यहां नजर आते हैं.
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कुली संघ के ओमप्रकाश आचार्य बताते हैं कि यहां काम करते हुए प्रतिमाह प्रत्येक कुली 12 से 15 हजार रुपए कमा लेता था, जिससे उसका घर चलता था. लेकिन लॉकडाउन की घोषणा के दिन से ही हमारी आमदनी बंद हो गई. बीते दिनों में एक बार जोधपुर रेल मंडल के अधिकारियों ने यूनियन के मार्फत जोधपुर में रह हे कुलियों को राशन उपलब्ध करवाया था. रेलवे या राज्य सरकार की ओर से कोई मदद नहीं हुई. जबकि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने कुलियों के लिए भी राशि जारी की, जिससे वे परिवार चला सकें.
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कुली कैलाशचंद बताते हैं कि दो माह से घर चलाना मुश्किल हो गया है. इधर- उधर से उधार मांगकर काम चला रहे हैं. कोई मदद नहीं मिली है, अब आगे ट्रेनें शुरू हो रही हैं, लेकिन सिर्फ चार ट्रेन, उसमें भी हम काम करेंगे या नहीं. इसको लेकर कोई निर्देश नहीं मिले हैं. इसी तरह से जोधपुर रेलवे स्टेशन के सामने करीब 45 छोटे होटल और ढाबों के कामगारों की परेशानी है. करीब 1 हजार से ज्यादा छोटे मोट कर्मचारी हैं. जो इनमें काम करते हैं. लॉकडाउन के चलते सभी ढाबे अभी बंद हैं.
होटल और ढाबों पर काम करने वाले भी हुए परेशान इन होटलों में उत्तराखंड के कारिगर काम करते हैं, जो यहां अटके हुए हैं. हाल ही में कुछ बसों से लोग जोधपुर से रवाना हुए हैं. उत्तराखंड के निवासी नितेश राय बताते हैं कि घर जाना है, लेकिन अभी फंसे हुए हैं. सरकार की ओर से हमें कोई मदद नहीं मिल रही है.