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लूनी नदी पर अतिक्रमण का मामला, HC ने तहसीलदार को रिकॉर्ड के साथ किया तलब - Rajasthan News

राजस्थान हाईकोर्ट ने लूनी नदी के किनारों पर किए गए अतिक्रमणों को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए अगली सुनवाई पर तहसीलदार लूनी को रिकार्ड के साथ पेश होने के निर्देश जारी किए हैं.

Case of encroachment on Luni river,  Rajasthan High Court Order
राजस्थान हाईकोर्ट

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Published : Apr 6, 2021, 10:56 PM IST

जोधपुर.राजस्थान उच्च न्यायालय ने लूनी नदी के किनारों पर किए गए अतिक्रमणों को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए अगली सुनवाई पर तहसीलदार लूनी को रिकार्ड के साथ पेश होने के निर्देश जारी किए हैं. मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत मोहंती और न्यायाधीश विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ ने सुमेरलाल की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्देश जारी किए हैं.

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अधिवक्ता एसपी शर्मा और विपुल सिंघवी ने याचिकाकर्ता की ओर से याचिका पेश कर लूनी नदी के किनारों को अतिक्रमण मुक्त कराने का अनुरोध किया था. जिस पर उच्च न्यायालय ने समय-समय पर निर्देश दिए हैं. वहीं, सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता रेखा बोराणा ने राज्य सरकार की ओर से 2 जनवरी 2021 को अंतिम अनुपालना रिपोर्ट पेश कर दी थी, जिसमें बताया गया कि सभी अवैध अतिक्रमण हटा दिए गए हैं.

27 लोगों की ओर से प्रार्थना पत्र पेश किए गए हैं, जिन पर सरकार को जवाब पेश करना है. इसके लिए समय चाहा गया है. इस पर न्यायालय ने कहा कि कोई जवाब है तो शपथ पत्र पेश करें. न्यायालय ने अतिरिक्त महाधिवक्ता बोराणा को निर्देश दिए हैं कि अगली सुनवाई पर 11 मई को तहसीलदार को रिकार्ड के साथ पेश करें. उनके ओर से निपटाए गए 12 मामलों का रिकॉर्ड पेश करें. 1967 के सेकेंड सेटलमेंट का रिकार्ड भी मांगा है तब तक अंतरिम आदेश जारी रखा जाएगा.

अनुकंपा नियुक्ति के लिए विवाहित पुत्री को नहीं माना पात्र, HC ने किया जवाब तलब

राजस्थान उच्च न्यायालय ने मृतक आश्रित अनुकंपा नियुक्ति के लिए विवाहित पुत्री को पात्र नहीं माने जाने वाले नियमों को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है. मुख्य न्यायाधीश इन्द्रजीत मोहंती और न्यायाधीश विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ ने प्रारंभिक सुनवाई करते हुए मीनाकंवर की याचिका में नोटिस जारी किया है.

अधिवक्ता भरत देवासी ने याचिका पेश कर बताया कि नियम 2 सी के अनुसार विवाहित पुत्री को मृत राज्य कर्मचारी का आश्रित नहीं मानना संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के विपरीत है. वैवाहिक स्थिति के आधार पर पुत्री को अनुकंपा नियुक्ति से वंचित करना न्यायोचित नहीं है, जबकि राज्य सरकार की ओर से विवाहित पुत्र को आश्रित की श्रेणी में माना गया है.

विवाह के आधार पर पुत्र और पुत्री की अनुकंपा नियुक्ति देने में भेदभाव करना संविधान की मूल भावना के विपरीत है. प्रार्थीया मीना कंवर मृत राज्य कर्मचारी की इकलौती पुत्री है. परिवार की स्थिति भी दयनीय है. ऐसे में राज्य सरकार की ओर से बनाए गए नियम भेदभाव पूर्ण है. पुत्री को भी मृतक आश्रित में शामिल करते हुए याचिकाकर्ता को अनुकंपा नियुक्ति दी जाए. उच्च न्यायालय ने नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया है.

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