जयपुर. अक्सर हम सब सोचते हैं कि बीड़ी, सिगरेट, पान, गुटखा, धूम्रपान आदि उत्पादों के सेवन से कैंसर हो सकता है, लेकिन इससे भी अधिक खतरा बढ़ रहा है हमारे पर्यावरण पर, जिससे हम सब प्रभावित हो रहे हैं. तंबाकू व अन्य चबाने वाले उत्पादों के सेवन से देशभर में करीब 13 लाख लोग अकारण ही मौत के शिकार हो जाते हैं. वहीं राजस्थान में करीब 65 हजार लोगों की मौत हो जाती है. इस पर राजस्थान के ईएनटी चिकित्सकों, सुखम फाउंडेशन, एसोसियेशन ऑफ आटोलंरेंगोलेजिस्ट ऑफ इंडिया (एओआई) सहित कई सामाजिक संगठनों ने 'विश्व तंबाकू निषेध दिवस' (World No Tobacco Day 2022) के मुद्दे पर गंभीर चिंता जताई है.
सवाई मान सिंह चिकित्सालय जयपुर के कान, नाक और गला विभाग आचार्य डॉ. पवन सिंघल ने बताया कि प्रदेश में ही नहीं देशभर में आज सिगरेट, बीड़ी के बट्स, गुटखे के खाली पाउच, पान मसाला, धूम्रपान उत्पादों को उपभोग के बाद खुले में फेंक दिया जाता है. कुछ ही समय बाद ये सब नालियों में जमा हो जाते हैं, जिससे नालियां भी अवरुद्ध हो जाती है. इसके विषैले पदार्थ मिट्टी में और उसके जरिए भूमिगत पानी में भी चले जाते हैं. जैसा कि हम जानते हैं कि तंबाकू उत्पादों में करीब 7 हजार से अधिक विषैले रसायन होते हैं, जोकि न केवल मानव स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण पर भी बड़े खतरे के रुप में उभर रहे हैं.
तंबाकू उत्पाद पर्यावरण पर बड़ा खतरा- उन्होंने बताया कि सिगरेट, बीड़ी के टुकड़े, लोगों द्वारा पान सुपारी, गुटखे की पीक जमीन पर थूकने से जमीन का पानी विषैला होता जा रहा है. सिगरेट के बट में प्लास्टिक होता है, जोकि कभी गलता नहीं है. सिगरेट बट को बनाने वाले पदार्थ सेल्यूलोज एसीटेट, पेपर और रेयाॅन के साथ मिलकर पानी और जमीन को भी प्रदूषित और विषैला बना रहे हैं. तंबाकू के सेवन से मुंह का कैंसर, फेफड़े, हृदय, गले का कैंसर तो होता ही है. यह हमारे पर्यावरण को भी कैंसर बनाता जा रहा है. हवा से लेकर पानी तक पर भी इसका प्रभाव सामने आ रहा है. सिगरेट के बट माइक्रोप्लास्टिक से जुड़े प्रदूषण की बड़ी समस्या बनता जा रहा है.
डॉ.सिंघल ने बताया कि टुथ इनीशियेटिव की रिसर्च में भी सामने आया है कि सिगरेट बट और धूम्रपान के अन्य उत्पादों से जितना विषैला जहर निकलता है, वह हमारे ताजे पानी और नमकीन पानी की 50 फीसदी मछलियों को भी मार सकता है. इसका दूरगामी परिणाम पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है और पर्यावरण की खाद्य श्रृंखला पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है. वर्ष 2022 में राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल ने भी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी इसके लिए दिशा निर्देश जारी किए थे.