जयपुर. 12 जून को हर साल विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (World Day Against Child Labour) पूरे विश्व मे मनाया जाता है. यह दिन बाल श्रमिकों (Child Labour) को काम करने से रोकने और उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए मनाया जाता है. लेकिन लाखों प्रयास के बाद भी देश में और खासकर राजस्थान में बाल श्रम का दंश कम नहीं हो रहा है. बाल श्रम को रोकने के लिए Etv भारत ने बाल श्रम पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल से खास बात की. बातचीत में उन्होंने कहा कि जब तक बच्चों को शिक्षा और परिवारों को सामाजिक सुरक्षा से नही जोड़ा जाएगा, तब तक बालश्रम रोकना संभव नही है .
जागरूकता के लिए बाल श्रम दिवस:सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल कहते हैं कि, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठनों ने लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए 2002 से हर साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की. इसके पीछे का मकसद हर साल विश्व में बाल श्रमिकों की बढ़ती संख्या को रोकना है, लेकिन इतने प्रयासों के बावजूद भी बाल श्रम का दंश कम नहीं हो रहा है. अगर भारत की बात की जाए तो भारत में बाल मजदूरी बहुत बड़ी समस्या है. 1 दिन बाल श्रम दिवस मनाने या वर्कशॉप करने से इस बाल श्रम के दंश को भारत में खत्म नहीं किया जा सकता. इसके लिए जरूरी है कि सामूहिक रूप से प्रयास किए जाएं और खासकर बच्चों को शिक्षा और गरीब (World Day Against Child Labour) तबके के परिवार को सामाजिक सुरक्षा से जोड़ा जाए.
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राजस्थान में 28 लाख बाल मजदूर :भारत में बाल मजदूरी की समस्या सदियों से चली आ रही है. सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल कहते हैं कि कहने को तो भारत देश में बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है . लेकिन फिर भी भारत में बच्चों से बाल मजदूरी कराई जाती है. जो उम्र बच्चों की पढ़ने, खेलने और कूदने की होती हैं, उन्हें उसी उम्र में बाल मजदूर बनना पड़ रहा है. कहने को सरकार बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए बड़े-बड़े वादे और घोषणाएं करती हैं. लेकिन होता कुछ नही है.
गोयल कहते हैं कि अगर बात राजस्थान की करे तो प्रदेश मे 28 लाख से ज्यादा बच्चे बाल श्रम से जुड़े हुए हैं, जिनकी उम्र 5 से 18 वर्ष है. वहीं 5 से 10 साल के बच्चों की बात की जाए, तो यह संख्या 10 लाख के करीब है. राजस्थान उन राज्यों में पहले पायदान पर है जहां सबसे ज्यादा बाल मजदूरी कराई जाती है. विजय गोयल कहते हैं कि प्रदेश के 33 जिलों में से 9 जिले ऐसे हैं जहां एक लाख से ज्यादा बच्चों के साथ बाल मजदूरी कराई जा रही है. जिसमे अलवर में 1 लाख 82 हजार , बाड़मेर में 1 लाख 51 हजार , जयपुर में 1 लाख 45 हजार, जोधपुर में 1 लाख 45 हजार, जालौर में 1 लाख 36 हजार, उदयपुर में 1 लाख 33 हजार, नागौर में 1 लाख 27 हजार, बांसवाड़ा में 1 लाख 17 हजार, बीकानेर में 1 लाख 15 हजार हैं.
क्या है बाल श्रम निषेध दिवस?:विश्व स्तर पर बाल श्रम को रोकने के लिए यह दिवस मनाया जाता है. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की ओर से विश्व स्तर पर 5 से 17 साल की उम्र तक के बच्चों को काम करने से रोकने के लिए 2002 में इस दिवस को मनाने की शुरुआत की थी. बाल श्रम की वजह से बच्चों को पर्याप्त शिक्षा, उचित स्वास्थ्य देख भाल जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं. जिसकी वजह से उनका शारीरिक और मानसिक विकास भी बाधित होता है. इतनी जागरुकता के बाद भी भारत देश में बाल मजदूरी का खात्मा दूर-दूर तक नहीं होता दिखता है. बल्की बाल मजदूरी घटने के बजाय दिन पर दिन बढ़ती ही जा (World Day Against Child Labour) रही है.
मौजूदा समय में गरीब बच्चे सबसे अधिक इस शोषण का शिकार हो रहे हैं. जो गरीब बच्चियां होती हैं उनको पढ़ने भेजने की जगह घर में ही उनसे बाल श्रम कराया जाता है. छोटे-छोटे गरीब बच्चे स्कूल छोड़कर मजदूरी करने पर मजबूर हैं. बाल मजदूरी बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, बौद्धिक और सामाजिक हितों से प्रभावित कर रही है. जो बच्चे बाल मजदूरी करते हैं, वो मानसिक रूप से अस्वस्थ रहते हैं, एसे में उनके यह समस्या उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास पर एक बाधा बनकर खड़ी हो जाती है. बालश्रम की समस्या बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों से भी वंचित करती है, जो कि संविधान के विरुद्ध है और मानवाधिकार का सबसे बड़ा (World Day Against Child Labour) उल्लंघन भी है.
आर्थिक परिस्थितियों की वजह से बढ़ रहा बाल श्रम:विजय गोयल कहते है कि स्कूल जाने और खेलने-कूदने की उम्र में बच्चों की एक बड़ी आबादी दो रोटी के लिए बाल मजदूरी करने पर मजबूर है. आज भी देश में ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिनसे जबरन बाल मजदूरी कराई जा रही है. वही बच्चों की बड़ी संख्या परिस्थितियों के आगे भी अपने बचपन को भुलाकर खतरनाक परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं. उन्होंने कहा कि राजस्थान में पिछले तीन सालों में देखा जाए तो बाल श्रम मुक्ति के लिए कई तरह के प्रयास किए गए हैं. 2019 में 1651 , 2020 में 1803 और 2021 में 1291 बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया गया था. लेकिन यह संख्या काफी नहीं है. आज भी आप कारखानों, आईटी के भट्टों पर बच्चों के बचपन को रिसता हुआ देख सकते है. उन्होंने कहा कि जबतक गरीब परिवार को सामाजिक सुरक्षा से नहीं जोड़ा जायेगा, तब तक बाल मजदूरी पर रोक लगाना मुश्किल है. गरीब परिवार को सामाजिक सुरक्षा और बच्चों को स्कूल शिक्षा से जोड़ना ही इस अभिशाप का उपचार है .