जयपुर. साइकिल की सवारी भले ही स्टेटस सिंबल के कारण बीते दिनों की बात बनती जा रही है. लेकिन शहरों में और विदेशों में अभी भी सेहत बनाने से लेकर रोजमर्रा के कामों में कई लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. मजदूरों के लिए तो साइकिल ही इनका सबसे बड़ा साधन है. भले ही दौड़ती भागती जिंदगी में सड़कों पर साइकिल कम देखने को मिलती है.
पर्यावरण को बचाना है तो साइकिल चलाना है मजदूर वर्ग साइकिल पर आश्रित...
समय के साथ जीवन शैली बदली और साइकिल की जगह मोटरसाइकिल ने ले ली. तेज रफ्तार वाले वाहनों ने लोगों को जल्दी गंतव्य स्थान तक पहुंचाना शुरू किया. जिससे लोग साइकिल को भूलते चले गए. हालांकि आज भी घर के किसी कोने में साइकिल को खड़ा देखा जा सकता है. इतना ही नहीं, एक बच्चे का सड़क पर सफर भी साइकिल के साथ ही शुरू होता है.
इनके रोजगार के लिए रिक्शा ही एकमात्र साधन वहीं मजदूर वर्ग आज भी इसी साइकिल पर पूरी तरह आश्रित है. घर के लिए सामान लाने से लेकर अपने कार्यक्षेत्र तक जाने में यही साइकिल उसका सबसे बड़ा साधन बनती है. खासियत ये है कि एक तो सेहत बनी रहती है, दूसरा पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दाम देखकर सांसें नहीं फूंलती.
बच्चों की सड़क पर शुरुआत साइकिल के साथ साइकिल पर जुगाड़...
इसी साइकिल में ट्रॉली लगा कर आज भी सैकड़ों लोग जीविकोपार्जन कर रहे हैं. छोटे-बड़े हर तरह के सामान इस पर रख कर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाया जा रहा है. लेकिन यहां भी साइकिल की जगह स्कूटर और ट्रॉली ने ले ली. जुगाड़ ही सही, लेकिन इससे कम समय में दूर तक सामान पहुंचाने में आसानी होती है, साथ ही आमदनी भी अधिक होती है. यही वजह है कि चालक 14 से 15 हजार रुपए खर्च कर अपने रिक्शा-ट्रॉली को स्कूटर-रिक्शा में तब्दील करते जा रहे हैं. शहर की सड़कों पर ये जुगाड़ अब आसानी से देखने को मिल जाता है.
ट्रॉली रिक्शा को स्कूटर रिक्शा में तब्दील करते जा रहे ई-रिक्शा की शुरुआत...
सड़कों पर कम पैसों में शाही सवारी का मजा देने वाला साइकिल-रिक्शा भी अब लुप्त होता जा रहा है. धीरे-धीरे रिक्शों की तादाद घटती चली जा रही है. उसकी जगह ई-रिक्शा लेते जा रहा है. कारण यहां भी वही है कि लोग अपने गंतव्य तक कम समय में जल्दी पहुंचना चाहते हैं. हालांकि कभी-कभार ये साइकिल-रिक्शे पर्यटकों को सैर कराते देखने को मिल जाते हैं. सुबह से धूप में पसीना बहाते हुए कुछ सवारी भी मिल जाती है, जिससे रिक्शा चालकों का गुजर बसर चलता है.
ई-रिक्शा के बाद लुप्त होती साइकिल रिक्शा वैसे तो साइकिल-रिक्शा की लागत महज 20 से 25 हजार होती है. लेकिन इनके चालक ये राशि भी वहन नहीं कर सकते. यही वजह है कि दिन के 30 से 40 रुपए किराए पर रिक्शा लाते हैं. साइकिल के पैडल पर मेहनत करते हुए, सड़कों पर पसीना बहाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं.
मजदूरों के रोजगार का साधन है साइकिल अपने अस्तित्व को तलाशती साइकिल...
हालांकि साइकिल से पर्यावरण को कभी कोई नुकसान नहीं हुआ. यही वजह है कि सरकार की ओर से समय-समय पर साइकिल को लेकर कई योजनाएं लाई जाती हैं. फिर चाहे होनहार छात्रों को नि:शुल्क साइकिल वितरण करना हो या फिर स्मार्ट सिटी के तहत स्मार्ट साइकिल प्रोजेक्ट. अपनी सेहत का ध्यान रखने वाले भी सुबह घंटों जिम में साइकिल पर कसरत करते देखे जा सकते हैं. लेकिन इन सबके बीच आज भी साइकिल अपने अस्तित्व को सड़कों पर खोजती दिखती है.