राजस्थान

rajasthan

ETV Bharat / city

Women's Day Special: 'जब तक समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक महिलाओं के साथ अत्याचार होता रहेगा'

प्रदेश में लगातार बढ़ रहे घरेलू हिंसा के मामले आए दिन किसी ना किसी बहू, बेटी, पत्नी की जान ले रहा है. कुछ मामलों में दहेज के लोभी उन्हें जान से मार डालते हैं तो कुछ केसों में महिलाएं अपनों से इतनी तंग आ जाती हैं कि उन्हें जीने से ज्यादा रुचि मौत में दिखने लगती है. समाज में फैल रहे इस दंश को किस तरह से खत्म किया जाए, इस पर ईटीवी भारत ने महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात की. देखिए ये पूरी रिपोर्ट...

International Womens Day 2021,  Jaipur News
Womens Day Special

By

Published : Mar 7, 2021, 12:58 PM IST

जयपुर.हनुमानगढ़ में एक युवती को जिंदा जला दिया गया तो दौसा में एक पिता ने अपने झूठे सामाजिक सम्मान के खातिर अपनी बेटी को गला दबा कर मौत के घाट उतार दिया. प्रदेश में हो रही इस तरह की घटना ने एक बार यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर क्या ऐसा कुछ किया जा सकता था कि आज ये दोनों युवती जिंदा होती. इस तरह के मुद्दों पर ईटीवी भारत ने एक्सपर्ट से बात की. इस दौरान सामने आया कि जब तक समाज की मानसिकता नहीं बदली जाएगी तब तक इसे रोक पाना मुश्किल है.

महिलाओं को नहीं है जीने की आजादी: लाडकुमारी

पढ़ें- आधी आबादी की लड़ाई में तालीम की दरकार, महिला दिवस पर यूं हुई अधिकारों पर बात

प्रदेश में लगातार बढ़ रहे घरेलू हिंसा के मामले में आए दिन किसी ना किसी बहू, बेटी, पत्नी की जान ले रहा है. कुछ मामलों में दहेज के लोभी उन्हें जान से मार डालते हैं तो कुछ मामलों में महिलाएं अपनों से इतनी तंग आ जाती हैं कि उन्हें जीने से ज्यादा रुचि मौत में दिखने लगती है. एक तरफ हम महिला सशक्तिकरण और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी बातें करते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ पैसों के लालच में दहेज के तले उसी बेटी की जान ले लेते हैं.

महिलाओं को नहीं है जीने की आजादी: लाडकुमारी

समाज में फैल रहे इस दंश को किस तरह से खत्म किया जाए, इस पर ईटीवी भारत ने महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात की. इस दौरान सामने आया कि आज भी बेटियों को उनकी मर्जी से जीने की आजादी नहीं है. पूर्व राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष लाडकुमारी जैन कहती है समाज में आज भी एक महिला को अपने स्तर पर जीवन जीने की स्वतंत्रता नहीं है. इसी का परिणाम है कि दौसा में पिता ने अपनी बेटी की गला दबा कर हत्या कर दी, वो भी इसलिए क्योंकि वो अपनी पसंद के लड़के के साथ जीवन जीना चाहती थी. इस तरह की पुरुष प्रधान की सोच की वजह से आज भी महिलाओं को आजादी से जीवन जीना मुश्किल हो रहा है.

सोच बदलने की जरूरत है: लाडकुमारी

लाडकुमारी ने कहा कि कानून बने हुए हैं, लेकिन जरूरी है सोच बदलने की. पहले की तुलना में दहेज के मामलों में कमी आई है, लेकिन सब कुछ सोच का है. बेटी की शादी होती है, कन्यादान की बात होती है जबकि दान शब्द ही एक बेटी को उसकी कमजोरी का अहसास कराती है.

हमेशा लड़की की गलती दिखाई जाती है: सुमन

पढ़ें- Womens Day Special: इस महिला पुलिस अधिकारी ने आसाराम को पहुंचाया था सलाखों के पीछे

हमेशा लड़की की गलती दिखाई जाती है: सुमन

वहीं, दलित महिलाओं को लेकर काम करने वाली सुमन देवठिया कहती हैं कि आजादी के इतने सालों बाद भी महिलाओं को आजादी से जीने का सही तरीके से अधिकार नहीं मिला है. जब भी लड़की के साथ कोई भी छेड़छाड़ की बात होगी तो दोष लड़कियों पर मंड दिया जाता है. कहा जाता है कि उसने ऐसे कपड़े पहने होंगे, देर शाम घर से बाहर निकलेगी तो यही होगा मतलब सब जगह गलती लड़की की दिखाई जाती है. जबकि लड़कों से यही सवाल नहीं किए जाते.

महिलाओं को उनके अधिकार दिए जाएं: सुमन

देवठिया ने कहा कि जब तक अधिकार नहीं देंगे तब तक सामज में बेटियों को इसी तरह से कोई जिंदा जलाता रहेगा तो कोई दहेज के लोभ के कारण मार देगा, इसलिए जरूरी है कानून की सख्ती के साथ बेटियों को जीवन जीने की आजादी दी जाए. उन्हें वो अधिकार दिए जाएं जो उनके हैं. माता-पिता हो या भाई सबको इस बात को समझना होगा बेटी है कोई सामान नहीं है. उसकी भी अपनी आजादी है जो हमारे संविधान ने उन्हें दिया है.

सख्त कदम उठाना पड़ेगा: सौम्या गुर्जर

दौसा और हनुमानगढ़ की घटना पर जयपुर ग्रेटर महापौर सौम्या गुर्जर ने कहा कि जिस तरह की घटना सामने आई उसने सभी को हिला कर रख दिया है. आखिर अपराधियों में कानून का खौफ क्यों नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार को इस तरह की घटनाओं में सख्ती दिखाकर सख्त कदम उठाना पड़ेगा, तब कुछ डर बनेगा.

पढ़ें- Women Day Special: जब लोगों की जान आफत में थी, तब वसुंधरा कर रही थी खौफ का खात्मा, 'ताकत सिर्फ हमारे माइंड की होती है'

महिलाओं के सामने है ये समस्या

सौम्या गुर्जर ने प्रदेश में ढाई साल से खाली चल रहे महिला आयोग के अध्यक्ष पद को लेकर भी कहा कि इस तरह के महत्वपूर्ण आयोग में अध्यक्ष का पद खाली रहना भी ठीक नहीं है. आयोग के खाली पड़े पदों की वजह से पीड़ित महिलाओं के सामने समस्या है कि वो अपनी पीड़ा कहां कहे, किसके पास न्याय की गुहार लगाए. इस तरह के प्रकरणों पर रोकथाम में आयोग की भूमिका बढ़ जाती है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details