गांव की सरकार : कांग्रेस के सामने दबदबा कायम रखने की चुनौती...क्या कहते हैं आंकड़े, यहां जानिये
राजस्थान में कांग्रेस पार्टी को गांव की पार्टी माना जाता है. ऐसे में भाजपा भले ही सरकार में रही हो, लेकिन बीते 4 चुनावों में से 3 चुनावों में कांग्रेस ने ही बाजी मारी है. साल 2000 में कांग्रेस राजस्थान में शासन में थी. ऐसे में कांग्रेस के 19 और भाजपा के 10 जिला प्रमुख बने थे. इसी तरीके से साल 2005 में जब भाजपा का शासन था तो भी कांग्रेस के 16 और भाजपा के 13 जिला प्रमुख बने थे. सरकार होते हुए भी भाजपा अपने जिला प्रमुख नहीं बना सकी थी.
कांग्रेस क्या इस बार भी बना पाएगी रिकॉर्ड ?
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Published : Nov 23, 2020, 6:14 PM IST
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Updated : Nov 23, 2020, 10:44 PM IST
जयपुर. राजस्थान के 21 जिलों में सोमवार को पंचायत समिति सदस्यों और जिला परिषद के चुनाव हो रहे हैं. इन चुनाव में जीत कर आने वाले पंचायत समिति सदस्य 222 प्रधान और जिला परिषद सदस्य 21 जिला प्रमुख चुनेंगे. चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है जिला परिषद के चुनाव. जहां चुनकर आने वाले मेंबर जिला प्रमुख का फैसला करते हैं. ऐसे में 21 जिलों में 21 जिला प्रमुख बनेंगे, जिनका फैसला 10 दिसंबर को होगा.
10 दिसंबर को जिला प्रमुख और 11 दिसंबर को उप जिला प्रमुख के लिए मतदान इन 21 जिलों में होगा. इसी तरीके से 222 प्रधान चुनने के लिए भी 10 दिसंबर को प्रधान का और 11 दिसंबर को उप प्रधान का चुनाव होगा. खास बात यह है कि जिस पार्टी के पंचायत समिति और जिला परिषद के सदस्य ज्यादा जीतकर आएंगे, उसी पार्टी के जिला प्रमुख और प्रधान ज्यादा बनेंगे. इन चुनाव में भी निर्दलीयों की भूमिका अहम रहेगी जो जिला प्रमुख और प्रधान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
कांग्रेस क्या इस बार भी बना पाएगी रिकॉर्ड ?
21 जिलों में जिला प्रमुख कौन होगा?
बात करें जिला परिषद सदस्यों की तो इनमें 21 जिले जिनमें अजमेर, चूरू, नागौर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, पाली, बाड़मेर, हनुमानगढ़, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, जैसलमेर, राजसमंद बीकानेर, जालोर, सीकर, बूंदी, झालावाड़, टोंक, चित्तौड़गढ़, झुंझुनू और उदयपुर शामिल है. ऐसे में हर किसी की नजर सत्ताधारी दल कांग्रेस पर रहेगी की वह कितनी जगह अपने जिला प्रमुख बना पाते हैं.
इसी तरीके से साल 2010 में कांग्रेस के 24 और बीजेपी के 8 जिला प्रमुख बने थे. लेकिन साल 2015 में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कांग्रेस को गांव में मिल रही जीत का तिलिस्म तोड़ा था और साल 2015 में सत्ताधारी भाजपा को पहली बार कांग्रेस से ज्यादा 21 जिला प्रमुख जीते थे. जबकि कांग्रेस की संख्या 12 थी. अब इस बार क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है तो ऐसे में देखना होगा कि गांव में जिस कांग्रेस पार्टी को सबसे मजबूत माना जाता है उसके नतीजे क्या रहते हैं.
निर्दलीयों की स्थिति साल दर साल होती गई खराब...
एक समय था जब जिला परिषद और पंचायत समिति सदस्यों में नेता के चेहरे पर वोट गिरते थे. अगर नेता निर्दलीय भी है और जनता का चाहता है तो वह चुनाव जीत जाता था. लेकिन राजस्थान में अब मतदाता कांग्रेस और भाजपा पर ही सीधा दांव खेलता है. जहां साल 2000 में 3 निर्दलीय जिला प्रमुख बने थे. तो साल 2005 में भी 3 निर्दलीय जिला प्रमुख बने. इसके बाद साल 2010 में निर्दलीय जिला प्रमुखों की संख्या घटकर 1 रह गई.
साल 2015 में तो एक भी जिला प्रमुख निर्दलीय नहीं जीत सका. इसी तरीके से उप जिला प्रमुख की बात की जाए तो साल 2000 में चार निर्दलीय उप जिला प्रमुख बने थे. साल 2005 में दो निर्दलीय उप जिला प्रमुख बने. साल 2010 में दो निर्दलीय उपजिला प्रमुख बने तो एक सीपीआई का उप जिला प्रमुख बना. लेकिन साल 2015 में एक भी निर्दलीय उप जिला प्रमुख नहीं बन सका था.
इसी तरीके से निर्दलीय जिला परिषद सदस्यों की बात की जाए तो साल 2000 में 365 बीजेपी के, 584 कांग्रेस के, 5 जनता दल यूनाइटेड के, 5 मार्क्सवादी पार्टी के, 2 बसपा के और 45 निर्दलीय जिला परिषद सदस्य बने थे. इसी तरीके से साल 2005 में भाजपा के 459, कांग्रेस के 494, बीएसपी के 8, मार्क्सवादी पार्टी का 1 और निर्दलीय 33 जिला परिषद सदस्य बने थे.
यह रही बीते 4 चुनाव में जिला प्रमुख की पार्टी वार स्थिति...
साल
कांग्रेस
बीजेपी
निर्दलीय
जिले
2000
19
10
3
32
2005
16
13
3
32
2010
24
8
1
33
2015
12
21
0
33
यह है बीते 4 चुनाव में उप जिला प्रमुख की पार्टी वार स्थिति
साल
कांग्रेस
बीजेपी
सीपीआईएम
निर्दलीय
जिले
2000
20
8
0
04
32
2005
17
13
2
2
32
2010
24
6
1
2
33
2015
9
24
0
0
33
बीते 3 चुनाव से यह रही है राजस्थान में प्रधान और उपप्रधान की पार्टी वार स्थिति